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लोकसभा चुनाव 2019: नेता जिन्होंने टिकट के लिए किया दल बदल फिर भी पूरी नहीं हुई मन की मुराद

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: April 11, 2019 19:40 IST

लोकसभा चुनाव 2019 में लवली आनंद बिहार के शिवहर से चुनाव लड़ना चाहती थीं लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला। लवली आनंद के पति आनंद मोहन सांसद रह चुके हैं।

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ठळक मुद्देलोकसभा चुनाव 2019 के पहले चरण के लिए मतदान 11 अप्रैल को शुरू हो गया।चुनाव से पहले कई नेताओं ने दल-बदल किया ताकि मनमाफिक सीट से टिकट पा सकें लेकिन कई नेताओं को इसमें निराशा हाथ लगी।

लोकसभा चुनाव में हर पार्टियां सत्ता पर काबिज होने की रणनीति बना रही हैं। तमाम ऐसे सियासतदां हैं जिन्होंने हवा का रुख भांपकर पाला बदला। नेताओं को अपनी-अपनी जीत की फिक्र सता रही है, कौन कहां से जीत सकता है। हर दल के नेता पार्टियां बदल रहे हैं। चुनावों के मौसम का रोमांच किसी एक्शन थ्रिलर फिल्म से कम नहीं होता। कोई बाज़ी मारने के लिए सुर्खियों में रहता है तो कोई नेता पलटी मारने के लिए।

पहले भी होता रहा है और लोकसभा चुनाव 2019 के आम चुनावों की बेला में भी नेताओं का एक दल से दूसरे में जाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। एकमात्र ध्येय सत्ता हो उस सियासत में निष्ठा और समर्पण की बातें बेमानी लगने लगी हैं। यह गुजरे दिनों की बात है जब लोकप्रिय, समाजसेवी, जनता के हमदर्द जैसे कुछ शब्द जनप्रतिनिधियों के लिए होते थे लेकिन उनकी जगह दलबदलू, मौकापरस्त और अवसरवादी जैसी उपमाओं ने ले ली है।

राजनीति एक बहुत ही पवित्र शब्द है, लेकिन अब अगर किसी से कह दो कि राजनीति मत करो तो उसे बुरा लग सकता है। चुनाव में कई नेता ऐसे भी हैं, जो चले थे हरिभजन को, ओटन लगे कपास। नेताओं ने दल बदलकर अपने निजाम तो बदल लिए, लेकिन उन्हेकहीं ठौर-ठिकाना नहीं मिला।

बिहार में परेशान नजर आ रहे हैं ये नेता

कई दलबदलू नेता अभी भी अपने ठौर को लेकर परेशान नजर आ रहे हैं। बिहार विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी शरद यादव के खेमे में चले गए। चौधरी जमुई से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन टिकट नहीं मिला। पूर्व सांसद आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद का हुआ है।  लवली शिवहर से चुनाव लड़ने की इच्छा लिए कांग्रेस में शामिल तो हो गईं, लेकिन टिकट नहीं मिला।

रालोसपा के टिकट पर पिछले लोकसभा चुनाव में जहानाबाद से जीते अरुण कुमार की भी हालत कुछ ऐसी ही हो गई है। उपेंद्र कुशवाहा का साथ छोड़ा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी बन गए। बाद में नीतीश से खटपट हो गई। नागमणि की भी हालत कमोबेश यही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पिछले दो-तीन महीने से गुणगान कर रहे थे। मगर बेटिकट रह गए।

कीर्ति आजाद हर जगह हुए बेगाने

भाजपा से निलंबित सांसद कीर्ति आजाद कांग्रेस का हाथ थाम चुके हैं, लेकिन उन्हें वहाँ से टिकट नहीं मिला जहाँ से वो चाहते थे। उन्हें उम्मीद थी कि दरभंगा से उम्मीदवार बनाया जाएगा, लेकिन राजद ने अब्दुल बारी सिद्दीकी को उम्मीदवार बनाया है। आजाद धनबाद से चुनाव लड़ेंगे।

पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रामजतन सिन्हा ने भी लोकसभा चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस का कांग्रेस छोड़कर जदयू का दामन थामा था, लेकिन उन्हें भी टिकट को लेकर निराशा हाथ लगी है। रालोसपा के नेता रहे भगवान सिंह कुश्वाहा को भी उम्मीद थी, मगर उन्हें भी इसका लाभ नहीं मिला।

टॅग्स :लोकसभा चुनावभारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)कांग्रेसराष्ट्रीय लोक समता पार्टीदरभंगाजहानाबाद लोकसभा सीट
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