लद्दाख: 1962 के भारत-चीन युद्ध में एलएसी पर दबी बारूदी सुरंगों को सेना ने हटाया, लोगों में फैली खुशी

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: October 12, 2023 16:52 IST2023-10-12T16:44:07+5:302023-10-12T16:52:22+5:30

भारतीय सेना ने लद्दाख में साल 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान दबाई गई पौने दो सौ से अधिक बारूदी सुरंगें निकाल कर उन्हें निष्क्रिय कर दिया है।

Ladakh: Army removed landmines buried on LAC during the India-China war of 1962, people happy | लद्दाख: 1962 के भारत-चीन युद्ध में एलएसी पर दबी बारूदी सुरंगों को सेना ने हटाया, लोगों में फैली खुशी

फाइल फोटो

Highlightsसेना ने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान दबाई गई पौने दो सौ बारूदी सुरंगों को नष्ट कियालेकिन जम्मू कश्मीर के 1900 वर्ग किमी के इलाके में अब भी बड़ी संख्या में लैंड माइन्स मौजूद हैंजम्मू के 160 वर्ग किमी और कश्मीर के 1730 वर्ग किमी में अब भी दबी हैं हजारोंं बारूदी सुरंगें

जम्मू: लद्दाख के बर्फीले रेगिस्तान के करीब तीन इलाकों में सेना ने साल 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान दबाई गई पौने दो सौ से अधिक बारूदी सुरंगें निकाल कर उन्हें निष्क्रिय कर दिया। जिसके कारण आसपास के लोगों में भारी खुशी है। वहीं सेना से जानकारी के मुताबिक लद्दाख के अलावा अभी भी जम्मू कश्मीर में लगभग 1900 वर्ग किमी क्षेत्र में रहने वाले लाखों लोग इन बारूदी सुरंगों के साए में जीने के लिए मजबूर हैं।

सेना ने बताया की उसके जवानों ने लेह जिले के तीन इलाकों में एक अभियान चला कर 175 बारूदी सुरंगों को नष्ट कर दिया। अधिकारियों ने गुरुवार को खुद इसकी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि ऐसा लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर रहने वाले स्थानीय लोगों की मांग पर किया गया है लेकिन यह एक कड़वी सच्चाई है कि जम्मू कश्मीर की जनता खतरनाक बारूदी सुरंगों के साए तले जिन्दगी काट रही है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू कश्मीर में करीब 1900 वर्ग किमी के एरिया में लाखों बारूदी सुरंगें दबी पड़ी हैं जिनके आसपास लाखों लोगों की जिन्दगी रोजाना घूमती है। हालांकि इससे अधिक एरिया और संख्या में बारूदी सुरंगें उस कश्मीर में दबी पड़ी हैं।

लेह के उपायुक्त संतोष सुखदेव ने बताया कि सेना की फायर एंड फ्यूरी कोर ने फोब्रांग, योरगो और लुकुंग में 175 से अधिक बारूदी सुरंगों को सफलतापूर्वक नष्ट किया है। पर यह भी सच है कि जम्मू संभाग की 160 वर्ग किमी तथा कश्मीर की 1730 वर्ग किमी भूमि में लाखों की तादाद में दबाई गई बारूदी सुरंगें भी प्रदेश के उन नागरिकों के लिए अब भी खतरा बनी हुई हैं, जो इन इलाकों में रहते हैं।

ये लाखों बारूदी सुरंगें भारत-पाक युद्धों के दौरान दबाई गई थीं और अभी भी वे वहां पर इसलिए हैं क्योंकि इंटरनेशनल बार्डर और एलओसी पर सीजफायर के बावजूद खतरा कभी टला ही नहीं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लेंडमाइन्स अर्थात बारूदी सुरंगों पर प्रतिबंध लागू करवाने के लिए जुटे करीब 1000 संगठनों की रिपोर्ट के मुताबिक इतनी संख्या में बारूदी सुरंगों का इस्तेमाल करने और उनका भंडारण करने वाले देशों में भारत का स्थान अगर छठवें नंबर पर आता है तो पाकिस्तान पांचवें स्थान पर है।

रिपोर्ट के मुताबिक, कश्मीर को बांटने वाली एलओसी तथा जम्मू सीमा के हजारों गांवों में लाखों लोग प्रतिदिन इन बारूदी सुरंगों के साए में अपना दिन आरंभ करते हैं और रात भी इसी पांव तले दबी मौत के साए तले काटते हैं। ऐसा भी नहीं है कि ये बारूदी सुरंगें आज कल में बिछाई गई हों बल्कि देश के बंटवारे के बाद से ऐसी प्रक्रिया अपनाई गई थी और रिपोर्ट के मुताबिक भारत व पाकिस्तान की सरकारों ने माना है कि हजारों बारूदी सुरंगें अपने स्थानों से लापता हैं।

एलओसी और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बारूदी सुरंगों के संजाल की बात तो समझ में आती है लेकिन इस रिपोर्ट के मुताबिक कश्मीर में कई ऐसे गांव हैं जिनके चारों ओर बारूदी सुरंगें बिछाई गई हैं। रिपोर्ट कहती है कि इनमें से अगर आतंकवादग्रस्त क्षेत्र भी हैं तो वे गांव भी हैं जिन्हें एलओसी पर लगाई गई तारबंदी दो हिस्सों में बांटती है।

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