अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस: भारत के 5 बड़े मजदूर नेता जिनके एक इशारे पर हजारों मजदूर उतर जाते थे सड़क पर

By निखिल वर्मा | Updated: April 28, 2020 16:14 IST2020-04-28T16:10:33+5:302020-04-28T16:14:25+5:30

1 मई को दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस मनाया जाता है. भारत में भी इस दिन राष्ट्रीय अवकाश रहता है. भारत में कई बड़े मजदूर नेता हुए जिनकी एक अपील पर कारखानों में ताला लग जाता था. इनमें से कुछ लोग संसद सदस्य भी रहे हैं.

labour day 2020 india 5 big union leader datta samant shankar guha niyogi | अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस: भारत के 5 बड़े मजदूर नेता जिनके एक इशारे पर हजारों मजदूर उतर जाते थे सड़क पर

लोकमत फाइल फोटो

Highlights1970 के दशक में भारत में शीर्ष मजदूर नेता रहे दत्ता सामंत और शंकर गुहा नियोगी की हत्या हो गई थी.एनडीए के संयोजक रहे जॉर्ज फर्नांडीस ने भारत के सबसे बड़े रेलवे हड़ताल का नेतृत्व किया था जिसमें 15 लाख कर्मचारी शामिल हुए थे

भारत में मजदूर आंदोलनों की शुरुआत 20वीं सदी के शुरुआत में हो चुकी थी। 1919 में अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के गठन के बाद एम एन जोशी के नेतृत्व में 1920 में पहली बार अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना हुई। 1923 मे सरकार द्वारा ट्रेड यूनियन एक्ट पास हुआ जिससे ट्रेड यूनियन को संवैधानिक मान्यता प्राप्त हुई। इसके बाद 1990 तक भारत में ट्रेड यूनियनों का स्वर्णिम इतिहास रहा और इस दौरान कई बड़े मजदूर नेता उभरे।

आज हम आपको बताने जा रहे हैं देश के उन पांच बड़े मजदूर नेताओं के बारे में जिनका व्यापक प्रभाव था:-

दत्ता सामंत: जिनके घर पर जाकर मिल मालिक करते थे समझौता

मजदूरों के नेता दत्ता सामंत की लोकप्रियता की अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है जब इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद कांग्रेस को अकेले 400 से ज्यादा सीटें मिली थीं तब मुंबई दक्षिण-मध्य सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सामंत ने लोकसभा चुनाव जीता था। भारत के बड़े ट्रेड यूनियन नेताओं में दत्ता सामंत का कद काफी बड़ा था। पेशे से डॉक्टर सामंत को मिलों के कामगार 'डॉक्टर साहब' कहकर बुलाते थे, उनकी एक आवाज पर कारखानों का काम तुरंत रूक जाता था।

दत्ता सामंत 1972 में कांग्रेस के टिकट पर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मुलुंड से जीत हासिल की थी लेकिन जल्द ही उनका दलीय राजनीति से मोहभंग हो गया। आपातकाल के दौरान सामंत को जेल भी रहना पड़ा। 1980 के दशक में दत्ता सामंत महाराष्ट्र के सबसे बड़े मजदूर नेता बनकर उभरे। एक समय ऐसा भी था जब मिल के मालिक उनके घर पर जाकर मजदूरों की मांगों पर अपनी रजामंदी देकर आया करते थे। सामंत के नेतृत्व में ही जनवरी 1982 में मुंबई के कपड़ा मिलों के दो लाख से ज्यादा मजदूर अपनी विभिन्न मांगों को लेकर अनिश्चिकालीन हड़ताल पर गए थे। यह हड़ताल दो साल से ज्यादा चली थी। उन्होंने न्यूनतम मजदूरी को 670 रुपये से बढ़ाकर 940 रुपये करने को कहा था जिसे मानने से मिल मालिकों ने इंकार कर दिया था। इस हड़ताल को खत्म करने के लिए अर्धसैनिकों बलों को बुलाना पड़ा था।

सामंत की 16 जनवरी 1997 को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उस वक्त वह अपनी जीप से मुंबई के पंत नगर इलाके में स्थित अपने दफ्तर जा रहे थे। मोटरसाइकिल पर आए हमलावरों ने श्रमिक नेता पर 17 गोलियां दागी थीं। इस मामले में  छोटा राजन गैंग के हाथ होने की बात सामने आई थी। 

शंकर गुहा नियोगी: ठेके पर काम करने वालों मजदूरों का मसीहा

शंकर गुहा नियोगी महाराष्ट्र के मजदूर नेता दत्ता सामंत के समकालीन थे। छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के संस्थापक और मजदूर नेता नियोगी पश्चिम बंगा लके न्यू जलपाईगुड़ी के रहने वाले थे और उनका असल नाम धीरेश था। 1970 के दशक में वह भिलाई स्टील प्लांट (बीएसपी) में काम करने के दौरान मजदूर नेता के तौर पर पहचाने जाने लगे। बीएसपी में मजदूरों की आवाज उठाने के कारण उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया जिसके बाद वह छत्तीसगढ़ में घूम-घूमकर मजदूरों को अपने अधिकारों के लिए जागरूक करते करने लगे।

आपातकाल के दिनों में बीएसपी में मजदूरों की स्थिति बेहद दर्दनाक थी और 15 घंटे काम करने पर सिर्फ दो रुपये मजदूरी दी जाती थी। नियोगी ने मजदूरों को अपने साथ लेकर 1977 में छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ (सीएमएसएस) का गठन किया। यह संगठन सितंबर, 1977 में उस समय देशभर में चर्चा में आया भिलाई के खदानों में काम करने वाले हजारों मजदूरों ने अनिश्विचितकालीन हड़ताल कर दी। यह ठेके पर काम करने वाले मजदूरों की देश में सबसे बड़ी हड़ताल थी। उस समय भिलाई स्टील प्लांट प्रबंधन को मजदूरों की सारी बातें माननी पड़ी।

नियोगी का भी हश्र दत्ता सामंत की तरह ही हुआ। छत्तीसगढ़ के सबसे प्रभावशाली मजदूर नेता बन चुके नियोगी की 1991 में गोली मारकर हत्या कर दी गई। सितंबर, 1991 में पल्टन मल्लाह नाम के व्यक्ति ने उनके भिलाई वाले आवास पर हत्या कर दी। इस घटना में पल्टन मल्लाह के अलावा कुछ उद्योगपतियों को भी आरोपी बनाया गया था लेकिन बाद में सबको रिहा कर दिया गया।

जॉर्ज फर्नांडीस: एक आवाज पर जब पूरे देश में हुआ रेलवे का चक्का जाम

कर्नाटक के मंगलुरु में जन्मे जॉर्ज फर्नांडीस सिर्फ 19 साल की उम्र में रोजगार की तलाश में मुंबई पहुंच थे। आजीवन समाजवादी रहे फर्नांडीस के प्रेरणा स्त्रोत राममनोहर लोहिया थे। 1960 के दशक में फर्नांडीस ने कई मजदूर आंदोलनों और हड़तालों का नेतृत्व किया। फर्नांडीस पहली बार देशव्यापी स्तर पर चर्चा में तब आए जब उन्होंने रेल कर्मचारियों की ऐतिहासिक हड़ताल का नेतृत्व किया। वे ऑल इंडिया रेलवे मेन्स फेडरेशन के अध्यक्ष थे और उनके आह्वान पर 1974 में रेलवे के 15 लाख कर्मचारी हड़ताल पर चले गए। रेलवे के इस हड़ताल के देश कई यूनियनों को साथ मिला था। रेलवे के हड़ताल को तोड़ने के लिए सेना तक बुलानी पड़ी थी। हालांकि यह हड़ताल तीन हफ्ते में खत्म हो गया। 

जॉर्ज को जायंट किलर भी कहा जाता था। 1967 के लोकसभा चुनाव में दक्षिण मुंबई से उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता एस के पाटिल को हराया था। रेलवे हड़ताल के बाद आपातकाल में जेल जाने तक जॉर्ज विद्रोह का चेहरा बन चुके थे। जेल में रहते ही उन्होंने 1977 लोकसभा चुनाव में बिहार के मुजफ्फरपुर से जीत हासिल की। जनता पार्टी सरकार में उन्होंने उद्योग मंत्री भी बनाया गया था। इसके अलावा अटल बिहारी सरकार में जॉर्ज फर्नांडीस रक्षा मंत्री भी रहें।

दत्तोपंत ठेंगड़ी: पूरा जीवन मजदूरों के उत्थान को समर्पित

भारतीय मजदूर संघ (1955), भारतीय किसान संघ (1979) और स्वदेशी जागरण मंच (1991) जैसे संगठनों के नींव रखने वाले दत्तोपंत ठेंगड़ी संघ प्रचारक और राज्यसभा सदस्य भी रहे हैं। दत्‍तोपंत ठेंगड़ी ने संघ के दूसरे सरसंघचालक माधवराव सदाशिव गोलवरकर के कहने पर मजदूर क्षेत्र में काम करना शुरू किया था। दत्तोपंत ठेंगड़ी मजदूरों के मुद्दे पर अपनी भी सरकार की आलोचना करने से नहीं चूकते थे।

अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री थे तो दिल्ली के रामलीला मैदान में भारतीय मजदूर संघ की एक रैली में उन्होंने तत्कालीन वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा को खुलेआम अपराधी तक कहा था। 1964 से 1976 तक राज्यसभा सदस्य ठेंगड़ी विभिन्न भाषाओं के जानकार थे और उन्होंने कई किताबें लिखी थी। उन्होंने 2002 में अटल सरकार द्वारा दिए जा रहे पद्मभूषण सम्मान को ठुकरा दिया था।

एनएम जोशी: भारत में ट्रेड यूनियन आंदोलन के जन्मदाता

नारायण मल्हार जोशी को भारत में 'ट्रेड यूनियन आंदोलन' के जन्मदाता कहा जाता। 20वीं सदी के शुरुआत में उन्होंने मजदूर आंदोलनों को संगठित करने का काम शुरू किया था। उन्होंने 1920 में ' अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस' की स्थाना की और 1929 तक उसके सचिव रहे। कांग्रेस छोड़कर उन्होंने 1929 में 'इंडियन ट्रेड यूनियन फेडरेशन (ITUF नामक एक नया संगठन बनाया था। एम एन जोशी केन्द्रीय वेतन आयोग' के एक सदस्य भी रहे। 

English summary :
Interesting Facts about Labour Day: After the formation of the International Labor Organization (ILO) in 1919, the All India Trade Union Congress was established for the first time in 1920 under the leadership of MN Joshi. In 1923, the Trade Union Act was passed by the government, which gave constitutional recognition to the trade union.


Web Title: labour day 2020 india 5 big union leader datta samant shankar guha niyogi

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