झारखंड की राजधानी रांची से करीब 150 किलोमीटर की दूरी पर चतरा शहर स्थित है। चतरा झारखंड की बात करें तो कृषि व खनिज संपदा के मामले में झारखंड के बेहद संपन्न जिलों में से एक है। यहां की स्थानीय राजनीति में एक बड़ा नाम सत्यानंद भोक्ता का भी है।
आज जब झारखंड के 11 वें मुख्यमंत्री के रूप में हेमंत सोरेन अपने पद की शपथ ली तो इस समय सत्यानंद अचानाक प्रदेश की राजनीति में चर्चा में आ गए हैं। दरअसल, ऐसा इसलिए क्योंकि सत्यानंद भोक्ता ने भी आज झारखंड सरकार के मंत्री पद की शपथ ली है।
कौन हैं सत्यानंद भोक्ता!
सत्यानंद भोक्ता चतरा के विधायक हैं। महागठबंधन में राजद की तरफ से जितने वाले एकलौते प्रदेश के विधायक भी हैं। भोक्ता इससे पहले भी विधायक व प्रदेश की सरकार में अहम विभागों के मंत्रालय को संभाल चुके हैं। चतरा के लोगों के बीच सत्यानंद भोक्ता एक लोकप्रिय उम्मीदवार हैं। यही वजह है कि दर्जनों उम्मीदवारों के बीच भाजपा को यदि छोड़ दिया जाए तो भोक्ता के खिलाफ चुनाव लड़ रहे बाकी सभी उम्मीदवारों के जमानत जब्त हो गए। 15 साल के राजनीतिक वनवास के बाद हुई वापसी आपको बता दें कि सत्यानंद भोक्ता का वनवास समाप्त हो गया है। पंद्रह वर्षों के बाद उनका राजतिलक हुआ है। इस दौरान वह लगातार राजनीति में वापसी का प्रयास करते रहे। इसके लिए उन्होंने कई दल भी बदले। भाजपा से लेकर झारखंड विकास मोर्चा तक का सफर किया, परंतु सफलता राजद में मिली।भाजपा से हुई राजनीतिक करियर स्टार्टभाजपा से उन्होंने राजनीतिक करियर की शुरूआत की। 2000 में पहली बार पार्टी ने उम्मीदवार बनाया और यहीं उनका भाग्य बदला। राजद के तत्कालीन विधायक जनार्दन पासवान को चतरा सीट बेदखल कर दिया। कुछ समय बाद झारखंड अस्तित्व में आया। बाबूलाल मरांडी के हाथों में सत्ता की बागडोर मिली। बाबूलाल अधिक समय तक शासन में नहीं रह सके। नेतृत्व परिवर्तन हुआ। सत्यानंद भोक्ता पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री बने। 2004 के चुनाव में भी उन्होंने अपने चिरपरिचित प्रतिद्वंद्वी राजद उम्मीदवार जनार्दन को हराया। उसके बाद कृषि गन्ना विकास मंत्री बने। 2009 से उनका पतन शुरू हुआ।
सिमरिया विधानसभा से भी भाग्य आजमायाचतरा छोड़कर सिमरिया विधानसभा से भाग्य आजमाया। झाविमो उम्मीदवार जयप्रकाश सिंह भोक्ता के हाथों मात खा गए। 2014 में चतरा से टिकट के लिए जोर आजमाइश कर रहे थे। भाजपा ने उनसे मुंह मोड़ लिया। सत्यानंद भोक्ता की जगह पार्टी ने जयप्रकाश सिंह भोक्ता को उम्मीदवार बनाया। सत्यानंद के लिए राजनीतिक अस्तित्व बचाने की चुनौती थी। भाजपा को छोड़कर झाविमो में चले गए। मुकाबला भाजपा और झाविमो के बीच हुआ, परंतु जीत भाजपा को मिली।
चुनाव हारने के बाद भी लोगों के बीच रहेचुनाव हारने के बाद सत्यानंद क्षेत्र से जुड़े रहे। भविष्य की राजनीति की नब्ज पकड़ते हुए हालिया लोकसभा चुनाव में झाविमो को अलविदा कह राजद में शामिल हो गए। राजद ने उन्हें विधानसभा से उम्मीदवार बनाया। भोक्ता ने जीत दर्ज की। इसके साथ ही उनका वनवास टूट गया।