जानिए सबरीमला मंदिर के बारे में, कब क्या-क्या हुआ, महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध क्यों

By भाषा | Published: November 14, 2019 03:30 PM2019-11-14T15:30:40+5:302019-11-14T15:30:40+5:30

सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ के पास भेजते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि धार्मिक स्थलों में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध केवल सबरीमला तक ही सीमित नहीं है बल्कि अन्य धर्मों में भी ऐसा है।

Know about Sabarimala temple, when and what happened, why the entry of women is banned | जानिए सबरीमला मंदिर के बारे में, कब क्या-क्या हुआ, महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध क्यों

उच्चतम न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगाने की प्रथा पर सवाल उठाए।

Highlightsएस. महेंद्रन ने केरल उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगाने की मांग की।केरल उच्च न्यायालय ने मंदिर में एक निश्चित आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर रोक को बरकरार रखा।

उच्चतम न्यायालय ने सबरीमला मामले में दिए गए उसके फैसले पर पुनर्विचार की मांग करने वाली याचिकाएं सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ के पास भेजते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि धार्मिक स्थलों में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध केवल सबरीमला तक ही सीमित नहीं है बल्कि अन्य धर्मों में भी ऐसा है।

मामले में घटनाक्रम इस प्रकार है

 1990 : एस. महेंद्रन ने केरल उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगाने की मांग की।

पांच अप्रैल 1991 : केरल उच्च न्यायालय ने मंदिर में एक निश्चित आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर रोक को बरकरार रखा।

चार अगस्त 2006 : इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन ने सबरीमला के भगवान अयप्पा मंदिर में 10 से 50 वर्ष की आयु वर्ग की महिला श्रद्धालुओं के प्रवेश की मांग करने वाली याचिका उच्चतम न्यायालय में दायर की।

नवंबर 2007 : केरल की एलडीएफ सरकार ने महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध पर सवाल उठाने वाली जनहित याचिका का समर्थन करते हुए हलफनामा दायर किया।

11 जनवरी 2016 : उच्चतम न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगाने की प्रथा पर सवाल उठाए।

छह फरवरी : कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ सरकार ने यू-टर्न लिया, उच्चतम न्यायालय में कहा कि ‘‘इन श्रद्धालुओं के अपने धर्म का पालन करने के अधिकार की रक्षा’’ करना उसका कर्तव्य है।

11 अप्रैल : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि महिलाओं पर रोक से लैंगिक समानता खतरे में है।

13 अप्रैल : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कोई परंपरा महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को न्यायोचित नहीं ठहरा सकती।

21 अप्रैल : हिंद नवोत्थान प्रतिष्ठान और नारायणश्रम तपोवनम ने महिलाओं के प्रवेश का समर्थन करते हुए उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की।

सात नवंबर : एलडीएफ सरकार ने उच्चतम न्यायालय में ताजा हलफनामा दाखिल करते हुए कहा कि वह सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश के पक्ष में है।

13 अक्टूबर 2017 : उच्चतम न्यायालय ने मामला संविधान पीठ को भेजा।

27 अक्टूबर : मामले पर सुनवायी के वास्ते लैंगिक रूप से समान पीठ के लिए उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर।

17 जुलाई 2018 : पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने मामले पर सुनवायी शुरू की।

19 जुलाई : न्यायालय ने कहा कि मंदिर में प्रवेश करना महिलाओं का मौलिक अधिकार है और उसने आयु वर्ग के पीछे के तर्क पर सवाल उठाए।

24 जुलाई : न्यायालय ने स्पष्ट किया कि महिलाओं के प्रवेश पर रोक को ‘‘संवैधानिक प्रकृति’’ के आधार पर परखा जाएगा।

25 जुलाई : नायर सर्विस सोसायटी ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि सबरीमला मंदिर के देवता भगवा अयप्पा की ब्रह्मचर्य प्रकृति की संविधान में रक्षा की गयी है।

26 जुलाई : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध से अनजान बना नहीं रह सकता क्योंकि उन्हें माहवारी के ‘‘शारीरिक आधार’’ पर प्रवेश से रोका गया है।

एक अगस्त : उच्चतम न्यायालय ने अपना आदेश सुरक्षित रखा।

28 सितंबर : उच्चतम न्यायालय ने 4:1 के बहुमत से सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को अनुमति देते हुए कहा कि मंदिर में महिलाओं को प्रवेश करने से रोकना लैंगिक भेदभाव है और यह हिंदू महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करने वाली प्रथा है।

आठ अक्टूबर : नेशनल अयप्पा डिवोटीज एसोसिएशन ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर फैसले की समीक्षा की मांग की।

23 अक्टूबर : उच्चतम न्यायालय 13 नवंबर को पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवायी के लिए राजी हुआ।

13 नवंबर : उच्चतम न्यायालय ने फैसले पर रोक लगाने से इनकार करते हुए 22 जनवरी को खुली अदालत में पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवायी करने पर सहमति जतायी।

14 नवंबर : उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले पर रोक लगाने से इनकार किया।

तीन दिसंबर : केरल सरकार ने संबंधित मामलों को उच्च न्यायालय से शीर्ष न्यायालय में स्थानांतरित करने की मांग को लेकर न्यायालय का रुख किया।

22 जनवरी 2019 : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह 30 जनवरी तक मामले पर सुनवायी शुरू नहीं कर सकता क्योंकि पांच सदस्यीय संविधान पीठ में इकलौती महिला न्यायाधीश इंदु मल्होत्रा मेडिकल आधार पर छुट्टी पर गयी हैं।

31 जनवरी : उच्चतम न्यायालय छह फरवरी को पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवायी करेगा।

छह फरवरी : उच्चतम न्यायालय ने पुनर्विचार याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा।

14 नवंबर : उच्चतम न्यायालय ने सबरीमला मंदिर, मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश तथा दाऊदी बोहरा समाज में स्त्रियों के खतना सहित विभिन्न धार्मिक मुद्दे बृहस्पतिवार को नये सिरे से विचार के लिये सात सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप दिये।

पांच सदस्यीय पीठ ने 3:2 के बहुमत के फैसले में पुनर्विचार की याचिकाओं को लंबित रखने का निश्चय किया। 

Web Title: Know about Sabarimala temple, when and what happened, why the entry of women is banned

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