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वाहन का ‘फिटनेस सर्टिफिकेट’ और ‘परमिट’ का नवीनीकरण नहीं रहने पर भी बीमा कंपनी को मुआवजा देना होगा, कर्नाटक उच्च न्यायालय का अहम फैसला

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: August 1, 2022 17:22 IST

निचली अदालत ने एक स्कूल बस के मालिक को दुर्घटना के पीड़ित परिवार को मुआवजा देने का आदेश दिया था। हालांकि, घटना के दिन स्कूल बस का फिटनेस सर्टिफिकेट और परमिट नहीं था।

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ठळक मुद्देबीमा कंपनी को मुआवजे की पूरी राशि का भुगतान कर स्कूल बस मालिक की क्षतिपूर्ति करने का निर्देश दिया। परमिट और फिटनेस सर्टिफिकेट (प्रमाणपत्र) की समयसीमा खत्म हो चुकी थी।पॉलिसी जारी होने के बाद फिटनेस प्रमाणपत्र की समय सीमा खत्म हो गई।

बेंगलुरुः कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा है कि यदि किसी वाहन का ‘फिटनेस सर्टिफिकेट’ और ‘परमिट’ का नवीनीकरण नहीं कराया गया हो लेकिन बीमा पॉलिसी प्रभावी हो, उस स्थिति में भी बीमा कंपनी मुआवजा देने की जिम्मेदारी से भाग नहीं सकता है। उच्च न्यायालय ने इस सिलसिले में निचली अदालत के एक फैसले को दरकिनार करते हुए यह कहा।

उल्लेखनीय है कि निचली अदालत ने एक स्कूल बस के मालिक को दुर्घटना के पीड़ित परिवार को मुआवजा देने का आदेश दिया था। हालांकि, घटना के दिन स्कूल बस का फिटनेस सर्टिफिकेट और परमिट नहीं था। उच्च न्यायालय ने बीमा कंपनी को मुआवजे की पूरी राशि का भुगतान कर स्कूल बस मालिक की क्षतिपूर्ति करने का निर्देश दिया।

अदालत ने कहा, ‘‘ इस मामले में हालांकि बीमा पॉलिसी दुर्घटना के दिन प्रभाव में थी लेकिन परमिट और फिटनेस सर्टिफिकेट (प्रमाणपत्र) की समयसीमा खत्म हो चुकी थी।’’ उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि फिटनेस प्रमाणपत्र प्रभाव में नहीं रहता, तो बीमा कंपनी ‘पॉलिसी जारी नहीं करती’, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि पॉलिसी जारी होने के बाद फिटनेस प्रमाणपत्र की समय सीमा खत्म हो गई।

उच्च न्यायालय ने कहा कि जहां तक परमिट की बात है कि वर्तमान परमिट की समय सीमा खत्म हो जाने के बाद जब नये परमिट के लिए आवेदन दिया गया था, तब ‘उस बीच की अवधि के लिए अस्थायी परमिट जारी किया गया और उसका नवीनीकरण से कोई लेना-देना नहीं था।’’

उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘ यह माना जाना चाहिए कि जिस दिन हादसा हुआ, उस दिन परमिट प्रभाव में था’’ और ‘‘बीमा कंपनी अपीलार्थी को क्षतिपूर्ति करने की अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकती है।’’ उल्लेखनीय है कि सैयद वली 28 सितंबर, 2015 को मोटरसाइकिल पर मोहम्मद शाली को बिठा कर कहीं जा रहा था तभी उसके दोपहिया वाहन की स्कूल बस से टक्कर हो गयी।

इस हादसे में वली की मौत हो गयी। वली की पत्नी बानू बेगम और उनकी संतान मलान बेगम तथा मौला हुसैन ने मुआवजे का दावा दायर किया था। बीमा कंपनी द न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी ने दावा किया था कि स्कूल बस के पास फिटनेस प्रमाणपत्र नहीं था और इसका परमिट भी प्रभाव में नहीं था, हालांकि बीमा पॉलिसी प्रभाव में थी।

वली के परिवार के सदस्यों को 6,18,000 रुपये मुआवजा अदा करने संबंधी द्वितीय अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ डॉ नरसिमुलू नंदिनी मेमोरियल एजुकेशन ट्रस्ट, रायचूर ने उच्च न्यायालय का रुख किया था। न्यायमूर्ति श्रीनिवास हरीश कुमार और न्यायमूर्ति एस रचैया ने 2016 में दायर की गई अपील का हाल में निस्तारण किया।

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