कुछ कांग्रेसी विधायक बहुमत परीक्षण के दौरान मार गए बीजेपी की तरफ पलटी तो क्या होगा?
By खबरीलाल जनार्दन | Updated: May 17, 2018 16:31 IST2018-05-17T16:31:08+5:302018-05-17T16:31:08+5:30
चुनाव प्रचार के दौरान कलबुर्गी में 19 अप्रैल को बीएस येदियुरप्पा ने यह घोषणा की कि वे 17 मई को कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे।

कुछ कांग्रेसी विधायक बहुमत परीक्षण के दौरान मार गए बीजेपी की तरफ पलटी तो क्या होगा?
बेंगलुरु, 17 मईः चुनाव प्रचार के दौरान कलबुर्गी में 19 अप्रैल को बीएस येदियुरप्पा ने यह घोषणा की कि वे 17 मई को कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। येदियुरप्पा की यह भविष्यवाणी राज्यपाल वजुभाई वाला के दम पर सच साबित हो गई। उन्हें कांग्रेस और जेडीएस की ओर से आधी रात को सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका भी नहीं रोक पाई। सुप्रीम कोर्ट ने सुबह 4 बजे तक की गई सुनवाई में बीएस येदियुरप्पा को शपथ लेने से नहीं रोका।
सुप्रीम कोर्ट ने यदियुरप्पा से वह लेटर मांगे, जिसमें बहुमत साबित करने का दावा कर रहे हैं। भाजपा के पास 104 सीटें हैं और कर्नाटक की कुल विधानसभा सीटें 222 हैं। कर्नाटक में बहुमत साबित करने के लिए 112 विधायकों की जरूरत होगी। जबकि कांग्रेस और जेडीएस का दावा है कि चुनाव बाद हुए उनके गठबंधन के पास 116 विधायक हैं। लेकिन राज्यपाल वजुभाई वाला ने भारतीय जनता पार्टी को पहले सरकार बनाने का मौका दिया।
भारतीय जनता पार्टी सुप्रीम कोर्ट में और सुप्रीम कोर्ट के बाहर भी सदन में बहुमत सिद्ध कर देने का दावा कर रही है। इसका आशय होता है कि विश्वासमत पारित करने के दौरान भारतीय जनता पार्टी को कांग्रेस या जेडीएस का कोई विधायक समर्थन देगा।
लेकिन इस तरह का दल बदल भारत की नई राजनीति में मान्य नहीं है। 1980 के दशक में इस तरह के कई ऐसे सामने आए। लेकिन भारतीय संविधान में दसवीं अनुसूची जुड़ने के बाद इस तरह के सभी मामले रुक गए। संविधान में भावेश 52 वें संशोधन के तहत साल 1985 में दसवीं अनुसूची जोड़ी गई। इसमें दलबदल करने के लिए इसमें दलबदल करने वाले नेताओं को दंडित करने के बारे में बताया गया। (जरूर पढ़ेंः संविधान के दुहाई देने वाले कांग्रेसी उस दिन कहां थे, जब 7 प्रदेशों में सरकारें बर्खास्त हुई थीं)
दल बदल कानून
दल बदल कानून में संविधान के 52 वें संशोधन के तहत कुछ ऐसे नियम बनाए गए जिनके आधार पर अगर कोई विधायक या सांसद दलबदल करता है तो सदन से उसकी सदस्यता रद्द कर दी जाएगी। वह आधार इस तरह हैं-
- यदि कांग्रेस या जेडीएस का कोई नवनिर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़ते हैं,
- अगर कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य बीजेपी में शामिल हो जाता है,
- अगर कोई कांग्रेस या जेडीएस का कोई नवनिर्वाचित सदस्य सदन में पार्टी के पक्ष के विपरीत वोट करता है,
- अगर कोई कांग्रेस या जेडीएस का कोई नवनिर्वाचित सदस्य स्वयं को वोटिंग से अलग रखता है,
-तो उसकी सदस्या विधानसभा से जा सकती है।
इन नियमों के अनुसार अगर कर्नाटक में कांग्रेस के विधायक, या जेडीएस का कोई विधायक, भाजपा सरकार बनवाने में कुछ इस तरह का करते हैं तो उनकी सदस्यता को विधानसभा से निरस्त किया जा सकता है। लेकिन इसमें आखरी फैसला विधानसभा अध्यक्ष का होता है।