संविधान के दुहाई देने वाले कांग्रेसी उस दिन कहां थे, जब 7 प्रदेशों में सरकारें बर्खास्त हुई थीं

By खबरीलाल जनार्दन | Published: May 17, 2018 12:43 PM2018-05-17T12:43:19+5:302018-05-17T12:43:19+5:30

कर्नाटक में बीजेपी विधायक दल के नेता बीएस येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। कांग्रेस का पुरजोर विरोध कर रही है।

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कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री बनने और उससे पहले कर्नाटक चुनाव हारने के बाद जेडीएस की सरकार बनवाने पर अमादा कांग्रेस नेता लगातार लोकतंत्र और संविधान की दुहाई दे रहे हैं। वे गोवा, मणिपुर, मेघालय में अल्पमत में रहने के बाद भी बीजेपी को सरकार बनाने का मौका देने और कर्नाटक में अपने गठबंधन के पास बहुमत होने के बाद भी सरकार बनाने का न्योता ना मिलने से खफा हैं। कांग्रेस ने राज्यपाल के फैसले खिलाफ आधी रात को सुप्रीम कोर्ट खुलवाई।  

लेकिन कांग्रेस एसआर बोम्मई मामला भूल गई। जब राज्य में कांग्रेस के नियुक्त राज्यपाल पी वेंकेटसुबैया ने स्वविवेक से राष्ट्रपति शासन लगाने की संस्तुति की थी। सु्प्रीम कोर्ट ने मामले पर फैसले में टिप्पणी की थी- किसी भी सरकार के बहुमत साबित करने के लिए सदन सही जगह है, राजभवन नहीं। और उतना दूर क्यों जाना साल 2009 में बीएस येदियुरप्पा के सदन में बहुमत साबित करने के बाद कांग्रेस की ओर से नियुक्त राज्यपाल हंसराज भारद्वाज ने गलत तरीके से बहुमत साबित करने की बात कहते हुए उन्होंने दोबारा फ्लोर टेस्ट के लिए कहा।

कांग्रेस नेताओं को एक बार ये आंकड़े जरूर पढ़ने चाहिए-

1- उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार की साल 1998 में राज्यपाल रोमेश भंडारी ने बर्खास्त किया। वे कांग्रेस से जुड़े रहे हैं। राज्यपाल के इस फैसले के खिलाफ कल्याण सिंह इलाहाबाद हाई कोर्ट गए। कोर्ट ने राज्यपाल के फैसले को असंवैधानिक करार दिया। दो दिन के भीतर नवनियुक्त मुख्यमंत्री जगदंबिका पाल को पद छोड़ना पड़ा।

2- हरियाणा के राज्यपाल जीडी तापसे ने 1980 के दशक में देवीलाल सरकार को बर्खास्त कर भजनलाल को सरकार बनाने का न्योता भेजा था। तब देवीलाल लगातार राज्यपाल पर भजनलाल का पक्ष लेने का आरोप लगाते रहे। (जरूर पढ़ेंः 'मार्गदर्शक मंडल में जाने की उम्र' में येदियुरप्पा बने तीसरी बार सीएम, 75 वर्षीय बीजेपी नेता का राजनीतिक सफर)

3- साल 1983 में आंध्र प्रदेश के राज्यपाल ठाकुर रामलाल थे। उन्होंने बहुमत की सरकार चला रहे एनटी रामराव को बर्खास्त कर दिया। उस वक्त एनटी रामाराव हार्ट सर्जरी के लिए अमेरिका गए हुए थे। लौटने पर पता चला कि उन्हीं के सरकार के वित्त मंत्री एन भास्कर राव मुख्यमंत्री बन चुके हैं। लौटते ही रामाराव विद्रोह किया। ठाकुर रामलाल राज्यपाल बनने से पहले कांग्रेस से जुड़े रहे थे।

4- यह मामला साल 2005 का ही है जब ‌बिहार के राज्यपाल बूटा सिंह ने 22 मई, 2005 की आधी रात को राज्य में विधायकों की खरीदफरोख्त रोकने का हवाला देते हुए विधानसभा भंग कर दी थी। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने बूटा सिंह के फैसले को असंवैधिक करार दिया। बूटा सिंह राज्यपाल बनने से पहले कांग्रेस से जुड़े रहे।

5- झारखंड के राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने साल 2005 के झारखंड चुनावों के बाद त्रिशंकु विधानसभा में शिबू सोरेन की सरकार बनाने का न्योता दिया। लेकिन इसके बाद सदन में वे बहुमत साबित करने में असफल रहे। उन्हें नौ दिनों की मुख्यमंत्री पद भी गंवाना पड़ा। बाद में अर्जुन मुंडा की सरकार बनी। (जरूर पढ़ेंः कर्नाटक में खुद को दोहरा रहा है इतिहास, एसआर बोम्मई मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया था ऐतिहासिक फैसला)

6- कर्नाटक साल 1952 से ही कांग्रेस का रहा है। लेकिन पहली बार साल 1983 में यह जनता पार्टी ने सेंध लगाई। जब रामकृष्ण हेगड़े की सरकार बनी। लेकिन हेगड़े के एक टेलीफोन टैपिंग मामले में पद छोड़ना पड़ा। उनके बाद एसआर बोम्मई ने सीएम की गद्दी संभाली। लेकिन तत्कालीन राज्यपाल पी वेंकटसुबैया ने बोम्मई को बर्खास्त कर दिया। राज्यपाल ने स्वविवेक से कहा कि बोम्मई सरकार विधानसभा में बहुमत खो चुकी है।

तब बोम्मई राज्यपाल के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट में गए। कोर्ट ने बोम्मई के पक्ष में फैसला दिया और वे फिर से मुख्यमंत्री बने। तब कोर्ट ने राज्यपाल को सलाह देते हुए कहा था- बहुमत का फैसला सदन में होना चाहिए, कहीं और नहीं।

7- कर्नाटक के राज्यपाल हंसराज भारद्वाज ने साल 2009 में बीजेपी सरकार को बर्खास्त कर दिया था। तब केंद्र यूपीए की सरकार थी। कभी यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे हंश भारद्वाज की नियुक्त‌ि यूपीए सरकार ने ही की थी। राज्यपाल ने तब बीएस येदियुरप्पा पर गलत तरीके से बहुमत हासिल करने के आरोप लगाते हुए उन्हें दोबारा बहुमत साबित करने को कहा था।

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