बेंगलुरु: कर्नाटक विधानसभा चुनाव का नतीजा (Karnataka Election Result 2023) कांग्रेस के लिए खुशखबरी लेकर आया है। पार्टी अपने दम पर सरकार बनाने की ओर है। भाजपा को नाकमी हाथ लगी है। यह नतीजे इसलिए भी अहम हैं क्योंकि अगले साल की लोकसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में कर्नाटक समेत इसी साल कुछ अन्य राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले दोनों पाटियों के लिए ‘अग्नि परीक्षा’ के रूप में देखा जा रहा है। कांग्रेस की जीत के साथ एक बार फिर कर्नाटक में सत्तारूढ़ पार्टी की सत्ता में वापसी नहीं होने का 38 साल पुराना मिथक कायम रहने जा रहा है। जबकि दक्षिण भारत के एकमात्र राज्य से भाजपा सत्ता से बेदखल हो रही है। कर्नाटक में कांग्रेस की इस जीत के पीछे क्या अहम कारण रहे, इसे लेकर भी चर्चा जारी है। बजरंग दल पर बैन की कांग्रेस की बात से भाजपा को चुनाव में ध्रुवीकरण का मौका मिला था, हालांकि नतीजों ने साफ कर दिया है भाजपा का दांव उलटा पड़ गया। आईए, एक नजर उन वजहों पर डालते हैं जिन्होंने कांग्रेस की जीत में अहम भूमिका निभाई।
महिलाओं को 2000 रुपये, बेरोजगारी भत्ता
कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस का घोषणापत्र बेहद अहम रहा। इसमें ‘गृह ज्योति’ योजना के तहत हर महीने 200 यूनिट मुफ्त बिजली, ‘गृह लक्ष्मी’ योजना के तहत परिवार की प्रत्येक प्रमुख महिला को 2,000 रुपये प्रति माह, ‘अन्न भाग्य’ के तहत बीपीएल परिवार के प्रत्येक सदस्य को हर महीने 10 किलोग्राम चावल की पेशकश आकर्षक रहे। इसके अलावा ‘युवा निधि’ के तहत बेरोजगार स्नातकों को प्रति माह 3,000 रुपये और डिप्लोमा धारकों को दो साल के लिए 1,500 रुपये प्रति माह देने की भी घोषणा कांग्रेस ने की।
भाजपा में अफरातफरी का माहौल, कई लिंगायत नेताओं ने छोड़ा साथ
जगदीश शेट्टार, पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावडी और कप्पाल से सांसद कारडी संगन्ना ने टिकट नहीं मिलने पर भाजपा का साथ छोड़ दिया। कांग्रेस ने उस समुदाय के साथ संबंधों को एक बार सुधारने की कोशिश की जिसने 1990 तक इसका खूब समर्थन किया था। तत्कालीन सीएम वीरेंद्र पाटिल को पार्टी प्रमुख राजीव गांधी द्वारा कथित तौर पर अपमानित और बर्खास्त किए जाने के बाद कांग्रेस ने लिंगायतों पर अपना प्रभाव खो दिया था। ऐसे में भाजपा से इस बार कई हाई-प्रोफाइल नेताओं के बाहर जाने से बीजेपी को लेकर नकारात्मक बातें फैली। लिंगायत वोट कर्नाटक में 17-18 प्रतिशत है और इन्हें भाजपा का मजबूक स्तंभ माना जाता रहा है। कांग्रेस ने इस बार इसमें सेंध लगाई है।
मुस्लिम कोटा
मुस्लिम कोटा पर बहस से भाजपा को मतदाताओं के ध्रुवीकरण की उम्मीद थी। हालांकि यही बात अब कांग्रेस के पक्ष में जाती दिख रही है। भाजपा द्वारा कर्नाटक में मुसलमानों के लिए 4% आरक्षण हटाने के बाद कांग्रेस पार्टी ने इस कदम की आलोचना की थी और कहा कि अगर वह राज्य में सत्ता में आती है तो अल्पसंख्यक समुदाय के लिए कोटा बहाल करेगी। कांग्रेस पार्टी ने एससी के लिए आरक्षण 15% से बढ़ाकर 17%, एसटी के लिए 3% से 7%, 4% के अल्पसंख्यक आरक्षण को बहाल करने और लिंगायत, वोक्कालिग्गास और अन्य समुदायों के लिए आरक्षण बढ़ाने का वादा किया था।
पुरानी पेंशन योजना
पंजाब और हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा शुरू की गई राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) की जगह पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को वापस लाने का वादा करने के बाद पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बन गई है। भाजपा ने ओपीएस को फिर से शुरू करने की हमेशा आलोचना की है और कहती रही है कि यह आगे जाकर अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाएगी। हालांकि मतदाताओं के बीच बड़ी संख्या में पेंशनभोगी है जिनमें ओपीएस को चुनावी वादे के रूप में देखना एक बड़ा आकर्षण है। कर्नाटक में कुल 9 लाख सरकारी कर्मचारियों में से लगभग 3 लाख एनपीएस के अंतर्गत आते हैं। ओपीएस को बहाल करने के कांग्रेस के वादे ने इस साल की शुरुआत में हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों में उसे महत्वपूर्ण लाभ देने में मदद की थी और कर्नाटक में भी इसने मदद की।
बजरंग दल पर यूटर्न, भ्रष्टाचार का मुद्दा छाया
बजरंग दल पर बैन के कांग्रेस के चुनावी घोषणा को जैसे ही भाजपा ने भुनाना शुरू किया, पार्टी सतर्क हो गई। पीएम नरेंद्र मोदी ने भी अपने कई चुनावी रैलियों में इसका जिक्र किया। कांग्रेस ने इस मुद्दे को चतुरता से कम करने की कोशिश की और सफल रही। विरप्पा मोइली ने कहा कि राज्य सरकार बजरंग दल को बैन नहीं कर सकती क्योंकि उसके पास इसका अधिकार ही नहीं है। दूसरी ओर डीके शिवकुमार ने हर विधानसभा क्षेत्र में हनुमान मंदिर बनाने की बात कही।
इसके अलावा कांग्रेस ने कर्नाटक में भ्रष्टाचार का मुद्दा जोर-शोर से उठाया। 40 प्रतिशत कमिशन का आरोप भाजपा सरकार पर खूब लगा। कांग्रेस नेताओं ने आरोप लगाया कि राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने पिछले चार वर्षों में 1,50,000 करोड़ रुपये की लूट की है। कांग्रेस ने यह तक आरोप लगाया कि सीएम पद की कीमत 2,500 करोड़ रुपये है जबकि मंत्री पद की कीमत 500 करोड़ रुपये है।