Kargil Vijay Diwas: मां-बाप ने कभी नहीं भुनाया कारगिल युद्ध के हीरो सौरभ कालिया का वो आखिरी चेक!

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: July 26, 2019 07:55 IST2019-07-26T07:54:25+5:302019-07-26T07:55:27+5:30

कारगिल युद्ध के प्रारंभ में देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करनेवाले कैप्टन सौरभ कालिया भले ही दुनिया के लिए एक नायक रहे हों लेकिन अपने माता-पिता के लिए शरारती थे.

Kargil Vijay Diwas: Hero of Kargil War Saurabh Kalia was a naughty son for mother and father | Kargil Vijay Diwas: मां-बाप ने कभी नहीं भुनाया कारगिल युद्ध के हीरो सौरभ कालिया का वो आखिरी चेक!

Kargil Vijay Diwas: मां-बाप ने कभी नहीं भुनाया कारगिल युद्ध के हीरो सौरभ कालिया का वो आखिरी चेक!

Highlightsसौरभ 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान शुरुआत में शहीद हुए सैनिकों में एक थे.वह भारतीय थल सेना के उन छह कर्मियों में एक थे, जिनका क्षत-विक्षत शव पाकिस्तान द्वारा सौंपा गया था.

कारगिल युद्ध के प्रारंभ में देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करनेवाले कैप्टन सौरभ कालिया भले ही दुनिया के लिए एक नायक रहे हों लेकिन अपने माता-पिता के लिए शरारती थे. कैप्टन सौरभ के माता-पिता आज भी उनके हस्ताक्षर वाला एक चेक अपने बेटे की याद में सहेजकर रखे हुए हैं. सौरभ ने कारगिल के लिए रवाना होने के दिन ही इस पर हस्ताक्षर किए थे.

सौरभ 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान शुरुआत में शहीद हुए सैनिकों में एक थे. वह भारतीय थल सेना के उन छह कर्मियों में एक थे, जिनका क्षत-विक्षत शव पाकिस्तान द्वारा सौंपा गया था. सौरभ के पिता नरेंद्र कुमार और मां विजय कालिया को आज भी वह क्षण अच्छी तरह याद है, जब 20 वर्ष पहले उन्होंने अपने बड़े बेटे (सौरभ) को आखिरी बार देखा था. वह (सौरभ) 23 वर्ष के भी नहीं हुए थे और अपनी ड्यूटी पर जा रहे थे लेकिन यह नहीं जानते थे कि कहां जाना है.

हिमाचल प्रदेश के पालमपुर स्थित अपने घर से उनकी मां विजय ने फोन पर बताया, ''वह (सौरभ) रसोई में आया और हस्ताक्षर किया हुआ लेकिन बिना रकम भरे एक चेक मुझे सौंपा और मुझे उसके बैंक खाते से रुपए निकालने को कहा क्योंकि वह फील्ड में जा रहा था.'' सौरभ के हस्ताक्षर वाला यह चेक, उसके द्वारा लिखी हुई आखिरी निशानी है, जिसे कभी भुनाया नहीं गया.

उनकी मां ने कहा, ''...यह चेक मेरे शरारती बेटे की एक प्यारी सी याद है.'' 23वें जन्मदिन पर आने का किया था वादा उनके पिता ने कहा, ''30 मई 1999 को उनकी उससे आखिरी बार बात हुई थी, जब उसके छोटे भाई वैभव का जन्मदिन था. उसने 29 जून को पड़ने वाले अपने जन्मदिन पर आने का वादा किया था. लेकिन 23वें जन्मदिन पर आने का अपना वादा वह पूरा नहीं कर सका और देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दे दिया.''

छोट भाई को डांट से बचाता था

हिप्र कृषि विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक वैभव ने कहा, ''वह (सौरभ) मां-पापा की डांट से मुझे बचाया करता था. हम अपने घर के अंदर क्रिकेट खेला करते थे और कई बार उसने मेरे द्वारा खिड़कियों की कांच तोड़े जाने की जिम्मेदारी अपने सिर ले ली.'' उन्होंने ही अपने भाई की चिता को मुखाग्नि दी थी.

Web Title: Kargil Vijay Diwas: Hero of Kargil War Saurabh Kalia was a naughty son for mother and father

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