भूमि अधिग्रहण कानून: जस्टिस अरुण मिश्रा ने संविधान पीठ की सुनवाई से खुद को अलग करने से इंकार किया

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: October 23, 2019 11:39 IST2019-10-23T11:17:59+5:302019-10-23T11:39:00+5:30

किसानों के संगठन सहित कुछ पक्षकारों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने न्यायिक नैतिकता के आधार पर न्यायमूर्ति मिश्रा से सुनवाई से हटने का अनुरोध करते हुये कहा है कि संविधान पीठ उस फैसले के सही होने के सवाल पर विचार कर रही है जिसके लेखक वह खुद हैं।

Justice Arun Mishra Won't Recuse From Hearing Land Acquisition Case | भूमि अधिग्रहण कानून: जस्टिस अरुण मिश्रा ने संविधान पीठ की सुनवाई से खुद को अलग करने से इंकार किया

फाइल फोटो

Highlightsन्यायमूर्ति मिश्रा ने मंगलवार को इस प्रकरण की सुनवाई के दौरान कहा था, ‘‘यदि इस संस्थान की ईमानदारी दांव पर होगी तो मैं त्याग करने वाला पहला व्यक्ति होऊंगा। उन्होंने पक्षकारों से कहा था कि वे उन्हें इस बारे में संतुष्ट करें कि उन्हें इस प्रकरण की सुनवाई से खुद को क्यों अलग करना चाहिए। 

सुप्रीम कोर्ट ने  बुधवार को कहा कि न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा भूमि अधिग्रहण कानून के प्रावधानों को चुनौती देने संबंधी मामले की संविधान पीठ में सुनवाई से अलग नहीं होंगे। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया और कहा, “मैं मामले की सुनवाई से अलग नहीं हट रहा हूं।” कई किसान संगठनों और व्यक्तियों ने मामले की सुनवाई में न्यायमूर्ति मिश्रा के शामिल होने पर आपत्ति जताई है। 

उनकी दलील है कि वह पिछले साल फरवरी में शीर्ष अदालत की तरफ से सुनाए गए फैसले में पहले ही अपनी राय रख चुके हैं। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी, न्यायमूर्ति विनीत सरण, न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट शामिल हैं। संविधान पीठ ने मामले से जुड़े पक्षों से कानूनी प्रश्न सुझाने को कहा है जिन पर अदालत फैसला सुनाएगी।

इससे पहले 16 अक्टूबर को किसानों के संगठन सहित कुछ पक्षकारों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने न्यायिक नैतिकता के आधार पर न्यायमूर्ति मिश्रा से सुनवाई से हटने का अनुरोध करते हुये कहा है कि संविधान पीठ उस फैसले के सही होने के सवाल पर विचार कर रही है जिसके लेखक वह खुद हैं। न्यायमूर्ति मिश्रा पिछले साल फरवरी में वह फैसला सुनाने वाली पीठ के सदस्य थे जिसने कहा था कि सरकारी एजेन्सियों द्वारा किया गया भूमि अधिग्रहण का मामला अदालत में लंबित होने की वजह से भू स्वामी द्वारा मुआवजे की राशि स्वीकार करने में पांच साल तक का विलंब होने के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता। 

इससे पहले, 2014 में एक अन्य पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि मुआवजा स्वीकार करने में विलंब के आधार पर भूमि अधिग्रहण रद्द किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने पिछले साल छह मार्च को कहा था कि समान संख्या के सदस्यों वाली उसकी दो अलग-अलग पीठ के भूमि अधिग्रहण से संबंधित दो अलग-अलग फैसलों के सही होने के सवाल पर वृहद पीठ विचार करेगी। 

न्यायमूर्ति मिश्रा ने मंगलवार को इस प्रकरण की सुनवाई के दौरान कहा था, ‘‘यदि इस संस्थान की ईमानदारी दांव पर होगी तो मैं त्याग करने वाला पहला व्यक्ति होऊंगा। मैं पूर्वाग्रही नहीं हूं और इस धरती पर किसी भी चीज से प्रभावित नहीं होता हूं। यदि मैं इस बात से संतुष्ट होऊंगा कि मैं पूर्वाग्रह से प्रभावित हूं तो मैं स्वयं ही इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लूंगा।’’ उन्होंने पक्षकारों से कहा था कि वे उन्हें इस बारे में संतुष्ट करें कि उन्हें इस प्रकरण की सुनवाई से खुद को क्यों अलग करना चाहिए। 

Web Title: Justice Arun Mishra Won't Recuse From Hearing Land Acquisition Case

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