J&K Assembly Elections 2024: जम्मू-कश्मीर में पैराशूट नेताओं के भरोसे बीजेपी, मुस्लिम उम्मीदवारों के सहारे कश्मीर फतह करने की रणनीति
By सुरेश एस डुग्गर | Updated: August 29, 2024 16:36 IST2024-08-29T16:36:44+5:302024-08-29T16:36:48+5:30
J&K Assembly Elections 2024: भाजपा ने कश्मीर पंचायत चुनाव में भी मुस्लिम बहुल इलाकों में मुस्लिमों पर भी दांव खेला था। इसमें पार्टी कुछ हद तक कामयाब रही थी। इसलिए विधानसभा चुनाव में भी इस रणनीति पर काम किया जा रहा है।

J&K Assembly Elections 2024: जम्मू-कश्मीर में पैराशूट नेताओं के भरोसे बीजेपी, मुस्लिम उम्मीदवारों के सहारे कश्मीर फतह करने की रणनीति
J&K Assembly Elections 2024: हालांकि भातीय जनता पार्टी ने इन विधानसभा चुनावों में कश्मीर फतह करने की खातिर मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतार कर अन्य राजनीतिक दलों को हैरान किया है पर जम्मू संभाग में उसने पैराशूट नेताओं को मैदान में उतार कर पार्टी के भीतर विद्रोह को बढ़ावा दिया है। यह सच हे कि जम्मू कश्मीरविधानसभा चुनाव में भाजपा ने दूसरे दलों से आए नेताओं पर दांव खेला है। दूसरे दलों से आए ये नेता भाजपा की उस रणनीति का हिस्सा हैं, जिसके तहत वह जम्मू के हिंदू गढ़ माने जाने वाले क्षेत्र में अपनी सियासी जमीन बचाए रखना चाहती है।
भाजपा ने आधा दर्जन सीटों पर दूसरे दल से आए नेताओं को टिकट दिया है, जिसमें नेशनल कांफ्रेंस के पूर्व प्रांतीय अध्यक्ष देवेंद्र राणा और पीडीपी के पूर्व नेता चौधरी जुल्फिकार, कांग्रेस के पूर्व नेता शाम लाल शर्मा, नेशनल कांफ्रेंस से आए सुरजीत सिंह सलाथिया जैसे नाम शामिल हैं।
भाजपा ने भले ही दूसरे दलों के दिग्गज नेताओं को अपने साथ लेकर चुनावी मैदान में उतार दिया है, लेकिन इसके चलते अंदरूनी बनाम बाहरी की समस्या पैदा हो गई है। भाजपा के इन सीटों पर अपने नेताओं के साथ-साथ कार्यकर्ताओं को भी साधकर रखने ही नहीं बल्कि चुनाव में उन्हें एक्टिव रखने की भी टेंशन है। इसके अलावा भाजपा ने जिन सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट उतारने का दांव चला है, उन सीटों पर हिंदू वोटों को साधकर रखने की चुनौती खड़ी हो गई है।
जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने अभी तक अपने 45 उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। भाजपा ने अपने दिग्गज नेताओं को दरकिनार कर दूसरे दल से आए नेताओं को खास तवज्जो दी है। भाजपा जम्मू संभाग में पूरा दमखम लगाएगी और कश्मीर घाटी को लेकर इस बार अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव करते हुए मुस्लिमों पर दांव खेला है।
ऐसे में कई जगहों पर पार्टी को नेताओं के विरोध भी झेलने पड़ रहे हैं, लेकिन पार्टी डैमेज कन्ट्रोल में जुट गई है। भाजपा की बदली राजनीति मिशन कश्मीर में मददगार साबित होगी या फिर सियासी कन्फ्यूजन का खामियाजा भुगतना पड़ेगा यह आने वाला समय बताएगा?
यह सच है कि कश्मीर के भाजपा में हिंदू वोटों का प्रभाव बहुत नहीं है। लिहाजा इस बार भाजपा ने अपनी रणनीति बदली है। कश्मीर घाटी में मुस्लिम उम्मीदवारों पर भी दांव लगाया गया है, क्योंकि इन सीटों पर मुस्लिम वोटर ही निर्णायक भूमिका में है। भाजपा ने कश्मीर पंचायत चुनाव में भी मुस्लिम बहुल इलाकों में मुस्लिमों पर भी दांव खेला था।
इसमें पार्टी कुछ हद तक कामयाब रही थी। इसलिए विधानसभा चुनाव में भी इस रणनीति पर काम किया जा रहा है।
ऐसे में भाजपा ने भले ही सियासी पशोपेस की स्थिति हो, लेकिन इसको कश्मीर को फतह करने की रणनीति मानी जा रही है। भाजपा ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर जरूर कांग्रेस और नेकां के लिए टेंशन बढ़ाई है, लेकिन अपने लिए भी जोखिम भरा कदम उठाया है।
परिसीमन के बाद जम्मू कश्मीर की सियासी तस्वीर बदल गई है। जम्मू संभाग में 6 सीटें बढ़ी हैं तो कश्मीर में सिर्फ एक सीट का इजाफा हुआ है। जम्मू संभाग में सीटें अब 37 से बढ़कर 43 हो गई है जबकि कश्मीर संभाग में 46 सीटों से बढ़कर 47 हो गई हैं। भाजपा का सियासी आधार जम्मू संभाग की तुलना में कश्मीर संभाग में बहुत ज्यादा नहीं है। जम्मू में भाजपा 2014 में विपक्ष का सफाया कर दिया था, लेकिन कश्मीर क्षेत्र वाले इलाके में खाता नहीं खोल सकी थी।