जन्मदिन विशेष: पढ़ें जे कृष्णमूर्ति के प्रेम और जीवन के बारे में 8 विचार
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: May 11, 2018 05:36 PM2018-05-11T17:36:52+5:302018-05-11T17:40:36+5:30
जे कृष्णमूर्ति की शिक्षा-दीक्षा थियोसोफिकल सोसाइटी की देखरेख में हुई था। थियोसोफिकल सोसाइटी उन्हें बुद्ध के अवतार मैत्रेय बुद्ध के रूप में दुनिया के सामने पेश करना चाहती थी लेकिन स्वंय कृष्णमूर्ति ने इससे इनकार कर दिया।
जे कृष्णमूर्ति (11 मई 1895-17 फरवरी 1986) को बहुत से बुद्धिजीवी बीसवीं सदी का सर्वाधिक मौलिक भारतीय दार्शनिक मानते हैं। वेद, उपनिषद, बौद्ध, जैन, भक्ति, सूफी, अघोर आदि-इत्यादि धर्मों और दर्शनों की जन्मभूमि भारत में पिछले कुछ सौ सालों में किसी मौलिक दर्शन का उदय नहीं हुआ था। बीसवीं सदी में राजनीतिक क्षेत्र में अगर मोहनदास गांधी अगर हिंदुस्तान का विश्व राजनीति को दिया मौलिक योगदान थे तो दर्शन के क्षेत्र में निस्संदेह रूप से कृष्णमूर्ति दुनिया को भारत की देन थे। कृष्णमूर्ति ने पहले से चले आ रहे सभी दर्शनों और विचारधाराओं को सम्पूर्ण मनुष्य बनने की राह में बाधा माना। कृष्णमूर्ति ऐसे दार्शनिक थे जो अनुयायियों को सबसे बड़ा अभिशाप मानते थे। नीचे पढ़ें कृष्णमूर्ति के दर्शन की झलक देने वाले आठ कथन। उन्हें जानने समझने के लिए ये कथन पूरी तरह नाकाफी हैं फिर भी कृष्णमूर्ति के इन कथनों को पेश करने का मकसद युवा पीढ़ी को उनसे परीचित कराना है।
1- केवल स्वतंत्र मस्तिष्क जानता है कि प्रेम क्या है।
2- मानवीय बुद्धिमत्ता का सर्वोच्च स्वरूप है तटस्थ होकर आत्मनिरिक्षण करना।
3- एकांत सुंदर अनुभूति है। एकांत में होने का अर्थ अकेले होना नहीं है। इसका अर्थ है मस्तिष्क समाज द्वारा प्रभावित और प्रदूषित नहीं है।
4- जब आप किसी को पूरे ध्यान से सुन रहे होते हैं तो आप केवल शब्द नहीं सुन रह होते, आप उनके साथ व्यक्त की जा रही भावनाओं को महसूस कर रहे होते हैं, सम्पूर्ण भावनाओं को न कि उसके एक हिस्से के।
5- क्या आपने ध्यान दिया है कि प्रेम मौन है? ये किसी का हाथ हाथों में लेते वक्त होता है या किसी बच्चे को प्यार से निहारते समय होता है या किसी शाम की सुंदरता को महसूस करते समय होता है। प्रेम का कोई अतीत या भविष्य नहीं होता और इसीलिए यह असाधारण मौन की स्थिति है।
6- हम सब प्रसिद्ध होना चाहते हैं और जिस वक्त हम कुछ होने की चाहत पालते हैं उसी समय हम आजाद नहीं रह जाते।
7- धर्म इंसान के पत्थर बन चुके विचार हैं जिनसे लोग मंदिर बना लेते हैं।
8- जिस पल आप अपने हृदय में वो विलक्षण भाव महसूस करते हैं जिसे प्रेम कहते हैं, इसकी गहनता, इसके उल्लास, इसके परमानंद को महसूस करते हैं, आप पाते हैं कि आपके लिए दुनिया बदल चुकी है।
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