लाइव न्यूज़ :

संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष जोड़े जाने से भारत की आध्यात्मिक छवि की विशालता सीमित हो गई: जम्मू कश्मीर चीफ जस्टिस

By विशाल कुमार | Updated: December 6, 2021 07:35 IST

जम्मू, कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पंकज मिथल ने कहा कि पांडवों से लेकर मौर्य, गुप्त, मुगलों और अंग्रेजों ने इस पर शासन किया, लेकिन भारत को कभी भी धर्म के आधार पर मुस्लिम, ईसाई या हिंदू राष्ट्र के रूप में परिभाषित नहीं किया गया, क्योंकि इसे एक आध्यात्मिक देश के रूप में स्वीकार किया गया था।

Open in App
ठळक मुद्देजम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने भारत को अनादि काल से एक आध्यात्मिक देश बताया।भारत को धर्म के आधार पर मुस्लिम, ईसाई या हिंदू राष्ट्र के रूप में परिभाषित नहीं किया गया।भारत का नाम आध्यात्मिक गणराज्य भारत होना चाहिए था।

श्रीनगर: जम्मू, कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पंकज मिथल ने भारत को अनादि काल से एक आध्यात्मिक देश बताते हुए कहा कि 1976 में संविधान की प्रस्तावना में पहले से ही उल्लिखित 'संप्रभु, लोकतांत्रिक, गणतंत्र' में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' को जोड़ने से इसकी आध्यात्मिक छवि की विशालता सीमित हो गई।

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की अधिवक्ता परिषद द्वारा यहां आयोजित एक समारोह में 'धर्म और भारत का संविधान: परस्पर क्रिया' पर मुख्य व्याख्यान देते हुए उन्होंने कहा कि भारत अपने सभी नागरिकों की देखभाल करने में सक्षम है और इसमें समाजवादी प्रकृति निहित है। 

मिथल ने कहा कि पांडवों से लेकर मौर्य, गुप्त, मुगलों और अंग्रेजों ने इस पर शासन किया, लेकिन भारत को कभी भी धर्म के आधार पर मुस्लिम, ईसाई या हिंदू राष्ट्र के रूप में परिभाषित नहीं किया गया, क्योंकि इसे एक आध्यात्मिक देश के रूप में स्वीकार किया गया था।

उन्होंने कहा कि 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द जोड़कर, हमने आध्यात्मिक स्वरूप की अपनी विशालता को संकुचित कर दिया है। इसे संकीर्ण सोच कहा जा सकता है। वरना भारत अनादि काल से एक आध्यात्मिक देश रहा है और इसका नाम आध्यात्मिक गणराज्य भारत होना चाहिए था।

संशोधनों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि संशोधनों का होना अच्छा है क्योंकि ये मददगार साबित होते हैं, लेकिन जो राष्ट्रीय हित में नहीं हैं, वे किसी काम के नहीं हैं। कभी-कभी हम अपनी जिद के कारण संशोधन लाते हैं।

1976 में संविधान में किए गए चैप्टर 14 में मौलिक कर्तव्यों और उसके साथ 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द जोड़े जाने जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि बहुत अच्छे शब्द, लेकिन हमें देखना होगा कि क्या इन संशोधनों की आवश्यकता थी, या इन्हें सही जगह पर जोड़ा गया है।

टॅग्स :जम्मू कश्मीरहाई कोर्टभारत
Open in App

संबंधित खबरें

भारतजीवन रक्षक प्रणाली पर ‘इंडिया’ गठबंधन?, उमर अब्दुल्ला बोले-‘आईसीयू’ में जाने का खतरा, भाजपा की 24 घंटे चलने वाली चुनावी मशीन से मुकाबला करने में फेल

क्रिकेटवैभव सूर्यवंशी की टीम बिहार को हैदराबाद ने 7 विकेट से हराया, कप्तान सुयश प्रभुदेसाई ने खेली 28 गेंदों में 51 रन की पारी, जम्मू-कश्मीर को 7 विकेट से करारी शिकस्त

भारतबाबासाहब ने मंत्री पद छोड़ते ही तुरंत खाली किया था बंगला

भारतIndiGo Crisis: इंडिगो ने 5वें दिन की सैकड़ों उड़ानें की रद्द, दिल्ली-मुंबई समेत कई शहरों में हवाई यात्रा प्रभावित

भारतPutin Visit India: भारत का दौरा पूरा कर रूस लौटे पुतिन, जानें दो दिवसीय दौरे में क्या कुछ रहा खास

भारत अधिक खबरें

भारतकथावाचक इंद्रेश उपाध्याय और शिप्रा जयपुर में बने जीवनसाथी, देखें वीडियो

भारत2024 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव, 2025 तक नेता प्रतिपक्ष नियुक्त नहीं?, उद्धव ठाकरे ने कहा-प्रचंड बहुमत होने के बावजूद क्यों डर रही है सरकार?

भारतजमीनी कार्यकर्ताओं को सम्मानित, सीएम नीतीश कुमार ने सदस्यता अभियान की शुरुआत की

भारतसिरसा जिलाः गांवों और शहरों में पर्याप्त एवं सुरक्षित पेयजल, जानिए खासियत

भारतउत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोगः 15 विषय और 7466 पद, दिसंबर 2025 और जनवरी 2026 में सहायक अध्यापक परीक्षा, देखिए डेटशीट