जामिया हिंसा मामलाः दिल्ली पुलिस ने कहा- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की आड़ में दंगाई गतिवधियों को अनुमति नहीं दे सकते
By भाषा | Published: June 5, 2020 05:37 AM2020-06-05T05:37:28+5:302020-06-05T05:37:28+5:30
Jamia Violence Case: हिंसा की जांच के लिये न्यायिक आयोग गठित करने की मांग करने वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए पुलिस ने कहा कि पुलिस द्वारा नृशंसता करने का दावा सरासर झूठ हैं।
नई दिल्लीः दिल्ली पुलिस ने बृहस्पतिवार को दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा कि असहमति के मूल अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए, लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की आड़ में किसी व्यक्ति को हिंसक या दंगाई गतिविधियों में संलिप्त होने की अनुमति नहीं दी जा सकती। पुलिस ने पिछले साल दिसंबर में हुए जामिया मिल्लिया इस्लामिया हिंसा के सिलसिले में अदालत में एक हलफनामा दाखिल किया है।
दिल्ली पुलिस ने यह भी कहा कि अभिव्यक्ति और लोगों के एकत्र होने के मूल अधिकार का इस्तेमाल करने की आड़ में किसी भी व्यक्ति को कानून का उल्लंघन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। पुलिस ने प्राथमिकी रद्द करने की मांग करने वाली याचिकाओं को खारिज करने और संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को लेकर प्रदर्शनों के दौरान विश्वविद्यालय में पुलिस की कथित नृशंसता के खिलाफ निर्देश देने का अनुरोध किया।
पुलिस ने कहा कि ये याचिकाएं जनहित याचिका अधिकार क्षेत्र का घोर दुरूपयोग हैं क्योंकि विश्वविद्यालय परिसर के अंदर और बाहर हुई हिंसा की सुनियोजित साजिश रची गई थी और यह कुछ लोगों द्वारा स्थानीय सहयोग से की गई कोशिश थी। उनका उद्देश्य इलाके मे इरादतन हिंसा भड़काना था।
हिंसा की जांच के लिये न्यायिक आयोग गठित करने की मांग करने वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए पुलिस ने कहा कि पुलिस द्वारा नृशंसता करने का दावा सरासर झूठ हैं। पुलिस ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने पुलिस नृशंसता की एक झूठी तस्वीर की पेश की और अदालत को गुमराह करने की कोशिश की गई। यह हलफनामा उप पुलिस आयुक्त, अपराध शाखा, राजेश देव ने दाखिल किया।
इसमें कहा गया है कि असहमति के मूल अधिकार के इस्तेमाल का सम्मान किया जाना चाहिए। हालांकि, किसी भी व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं एकत्र होने की स्वतंत्रता के मूल अधिकार का इस्तेमाल करने की आड़ में कानून का उल्लंघन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। पुलिस ने छह याचिकाओं के जवाब में हलफनामा दाखिल किया है।
अधिवक्ता अमित महाजन और रजत नायर के मार्फत दाखिल हलफनामा में कहा गया है कि इस तरह के मूल अधिकार संविधान के तहत तार्किक प्रतिबंधों के योग्य हैं। पुलिस ने कहा कि साक्ष्य से यह प्रदर्शित होता है कि 13 और 15 दिसंबर 2019 को बड़े पैमाने पर हिंसा, आगजनी और पथराव की घटनाएं हुई थी, जिसके बाद तीन प्राथमिकी दर्ज की गई थी। हलफनामा में कहा गया है, ‘‘यह अब स्पष्ट हो गया है कि यह कोई छिटपुट घटना नहीं थी, बल्कि एक सुनियोजित घटना थी’’