भारतीयता का हो अभिमान, तभी बनेगा देश महान

By विजय दर्डा | Updated: September 3, 2018 08:34 IST2018-09-03T05:41:32+5:302018-09-03T08:34:09+5:30

जब मैं पलटकर भारत को देखता हूं तो स्थिति बहुत खराब नजर आती है। अपनी भाषा और भूषा को तो हम बड़ी तेजी से छोड़ ही रहे हैं, सभ्यता और संस्कृति से भी दूर होते जा रहे हैं। निश्चित रूप से देशप्रेम तो हर व्यक्ति के भीतर है लेकिन हर किसी में भारतीयता नजर नहीं आती है।

Indians should proud yourself then will the country become great | भारतीयता का हो अभिमान, तभी बनेगा देश महान

Photo: Dreams Times

मैं दुनिया में जहां भी जाता हूं यह कोशिश करता हूं कि वहां की सभ्यता, संस्कृति और जनजीवन को करीब से जानूं और समझूं। वहां के आम लोगों से मिलूं। मुझे दुनिया के बहुत से देशों में जाने का मौका मिला है और मैंने पाया है कि ज्यादातर देशों के नागरिक अपने देश पर अभिमान करते हैं और खुद की भाषा, सभ्यता और संस्कृति को लेकर काफी सजग हैं। आप जापान जाएं, चीन, रूस और अमेरिका से लेकर छोटे से छोटे देशों में जाएं, वहां की संस्कृति उनके जीवन का अभिन्न अंग है। अपने देश को लेकर गजब का प्रेम नजर आता है उन लोगों में। 

जब मैं पलटकर भारत को देखता हूं तो स्थिति बहुत खराब नजर आती है। अपनी भाषा और भूषा को तो हम बड़ी तेजी से छोड़ ही रहे हैं, सभ्यता और संस्कृति से भी दूर होते जा रहे हैं। निश्चित रूप से देशप्रेम तो हर व्यक्ति के भीतर है लेकिन हर किसी में भारतीयता नजर नहीं आती है। अपने देश के प्रति अभिमान के भाव का अभाव नजर आता है। अभी मेरे पास एक फ्रेंच पत्रकार का वीडियो आया। अपने वीडियो संदेश में वह फ्रेंच पत्रकार कह रहा है कि भारत में सुपर नेशन बनने की क्षमता है लेकिन दुर्भाग्य यह है कि भारत इस वक्त केवल नकल करने में लगा हुआ है। जो भारत कभी इनोवेशन की धरती हुआ करता था, वहां अब वेस्टर्न क्लोन पैदा हो रहे हैं। 

मुझे लगता है कि वह फ्रेंच पत्रकार सही कह रहा है। किसी जमाने में हिंदुस्तान में तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय हुआ करते थे जहां पूरी दुनिया के विद्वानों का जमावड़ा हुआ करता था। आज हमारे देश में एक भी विश्वविद्यालय ऐसा नहीं है जिसे विश्व स्तर का कहा जा सके। मैथमेटिक्स से लेकर एस्ट्रो फिजिक्स और अध्यात्म के क्षेत्र में भारत ने दुनिया को कई नायाब खोजों से अवगत कराया। उसी हिंदुस्तान में अब ऐसा कुछ दिखाई नहीं देता। हम ऐसी पीढ़ी तैयार कर रहे हैं जिसे एक्सपोर्ट क्वालिटी वाली पीढ़ी कह सकते हैं। हर कोई अमेरिका चले जाना चाहता है। ऐसा क्यों? 

दरअसल ब्रिटेन ने जब हम पर राज शुरू किया तो उन्हें यह समझ आ गया था कि भारत की भाषाई और सांस्कृतिक विरासत काफी मजबूत है और जब तक इसे नष्ट नहीं किया जाता तब तक हिंदुस्तान को गुलामी का पाठ ठीक से नहीं पढ़ाया जा सकता है। इसीलिए ब्रिटिश शिक्षाविद् लॉर्ड मैकाले ने ऐसी शिक्षा पद्धति की वकालत की जो केवल क्लोन तैयार कर सके। 

2 फरवरी 1835 को कोलकाता में मैकाले ने कहा था कि संस्कृत और अरबी पुरानी भाषाएं हैं और इस देश (भारत) को यदि आधुनिक बनाना है तो उसे अंग्रेजी पढ़ानी होगी। नए वैल्यूज बताने होंगे। मैकाले के इस कथन में भारत को बेहतर बनाने की कोई मंशा नहीं थी। उसकी मंशा थी कि भारत अपने इतिहास को भूल जाए और उसे लगे कि अंग्रेजी से बेहतर तो कोई भाषा है ही नहीं! वह अंग्रेजी पढ़ेगा तो अंग्रेजियत के करीब आएगा। 

मैकाले की शिक्षा पद्धति भारत में लागू कर दी गई और इस तरह भविष्य में ऐसी पीढ़ियां तैयार होने लगीं जिनके लिए अंग्रेजी सर्वोच्च थी। वे शेक्सपीयर को पढ़ने लगे, वे वर्ड्सवर्थ को पढ़ने लगे, वे कीट्स को पढ़ने लगे। कालिदास हमारी पढ़ाई से बाहर हो गए जबकि दुनिया आज भी मानती है कि कालिदास की टक्कर का कोई कवि पैदा ही नहीं हुआ। मैकाले की शिक्षा के कारण  संस्कृत धीरे-धीरे दम तोड़ने लगी। आज गिने-चुने लोग ही संस्कृत जानते हैं। 

यह कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि हम अपने बच्चों को वेस्टर्न हीरोज के बारे में तो पढ़ा रहे हैं लेकिन शिवाजी, महाराणा प्रताप जैसे शूरवीरों के बारे में ठीक से कुछ भी नहीं पढ़ा रहे हैं। बुद्ध की फिलॉसफी कहीं हमारे जीवन में अब नजर ही नहीं आती। महर्षि अरविंद की तो हम बात भी नहीं करते। जब बच्चे अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता और अपनी आध्यात्मिकता के बारे में नहीं पढ़ेंगे तो वे संपूर्ण रूप से भारतीय कैसे बनेंगे?

यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि बच्चों को अपनी जड़ों से परिचित कराने में हमारी शिक्षा पद्धति असफल साबित हुई है। इसके लिए कोई कोशिश भी नहीं हो रही है। इसी का नतीजा है कि हमारे बच्चों को अमेरिका ज्यादा अच्छा लगता है, उन्हें यूरोप ज्यादा अच्छा लगता है। भारत से वे प्रेम तो करते हैं लेकिन भारतीयता का अभाव उनके भीतर साफ नजर आता है। वे अपने देश की खोज प्राणायाम के बारे में नहीं जानते। मेडिटेशन के बारे में कुछ नहीं जानते। ध्यान रखिए कि जड़ों से कटे हुए पेड़ में कभी फल नहीं लगते। भारत के युवा जब तक खुद के भारतीय होने पर अभिमान नहीं करेंगे तब तक देश महान कैसे बनेगा?

Web Title: Indians should proud yourself then will the country become great

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे