Chandrayaan 3 के साथ चांद के साउथ पोल पर पहुंचा भारत, अब सूर्य पर जाने की तैयारी! जानें इसरो का अगला प्लान
By अंजली चौहान | Published: August 23, 2023 09:09 PM2023-08-23T21:09:33+5:302023-08-23T21:13:38+5:30
चंद्रमा पर विक्रम लैंडर की सफल लैंडिंग ने भारत को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतरने वाला एकमात्र देश बना दिया है। चंद्रयान 3 मिशन की सफलता का मतलब यह भी है कि इसरो अब अपनी खुद की एक लीग में है।
Chandrayaan 3: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आज इतिहास रच दिया है। भारतीय वैज्ञानिकों ने चंद्रमा पर चंद्रयान-3 मिशन को सफलतापूर्वक लैंड करा दिया है।
इसके साथ ही भारत दुनिया का पहला देश बन गया है जो चांद के साउथ पोल पर पहुंचा है। आज का दिन इतिहास के पन्नों में हमेशा-हमेशा के लिए दर्ज हो गया है।
इसरो द्वारा कहा गया है, विक्रम लैंडर मॉड्यूल ने शाम 5:44 बजे प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग होना शुरू कर दिया और चंद्र सतह तक अपना रास्ता बना लिया, अंत में चंद्र सतह को छू लिया।
इसके साथ ही भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतरने वाला पहला देश बन गया है।
इसरो का पहला सूर्य मिशन आदित्य एल1
ऐसे में अब इसरो ने अपने अगले मिशन की तैयारी शुरू कर दी है। इसरो अब भारत की पहली अंतरिक्ष-आधारित सूर्य वेधशाला, आदित्य-एल1 लॉन्च करने की तैयारी कर रहा है।
यह उपग्रह को श्रीहरिकोटा स्थित इसरो के अंतरिक्ष लॉन्च पैड पर भेजा गया है। आदित्य एल1 सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष आधारित भारतीय मिशन होगा।
अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंज बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में रखा जाएगा, जो पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किमी दूर है।
लगातार सूर्य पर रखेगा नजर
L1 बिंदु के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा में रखे गए उपग्रह को बिना किसी ग्रहण के सूर्य को लगातार देखने का प्रमुख लाभ होता है। इससे वास्तविक समय में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम पर इसके प्रभाव को देखने का अधिक लाभ मिलेगा।
इससे वास्तविक समय में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम पर इसके प्रभाव को देखने का अधिक लाभ मिलेगा। अंतरिक्ष यान विद्युत चुम्बकीय और कण और चुंबकीय क्षेत्र डिटेक्टरों का उपयोग करके प्रकाशमंडल, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों (कोरोना) का निरीक्षण करने के लिए सात पेलोड ले जाता है।
एल 1 के जरिए चार पेलोड सीधे सूर्य को देख सकेंगे और बाकि तीन पेलोड लैग्रेंज बिंदु L1 पर कणों और क्षेत्रों का इन-सीटू अध्ययन करेंगे। इस प्रकार अंतरग्रहीय माध्यम में सौर गतिशीलता के प्रसार प्रभाव का महत्वपूर्ण वैज्ञानिक अध्ययन प्रदान करेगा।
सूर्य पर इसरो के मिशन का क्या होगा काम?
इसरो द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, इस मिशन से उम्मीद है कि आदित्य एल1 पेलोड के सूट कोरोनल हीटिंग, कोरोनल मास इजेक्शन, प्री-फ्लेयर और फ्लेयर गतिविधियों और उनकी विशेषताओं, अंतरिक्ष मौसम की गतिशीलता, कण और क्षेत्रों के प्रसार आदि की समस्या को समझने के लिए सबसे महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे।
आदित्य-एल1 के उपकरणों को सौर वातावरण मुख्य रूप से क्रोमोस्फीयर और कोरोना का निरीक्षण करने के लिए ट्यून किया गया है। इन-सीटू उपकरण एल1 पर स्थानीय वातावरण का निरीक्षण करेंगे। जहाज पर कुल सात पेलोड हैं जिनमें से चार सूर्य की रिमोट सेंसिंग करते हैं और तीन इन-सीटू अवलोकन करते हैं।
आदित्य-एल1 मिशन का वैज्ञानिक उद्देश्य
लैगरेंज बिंदु पृथ्वी और सूर्य के खगोलीय तंत्र के खास अंतरिक्ष बिंदु होते हैं। इनकी खास बात यह है कि अगर किसी वस्तु को वहां रख दिया जाए तो वह वहां स्थिर हो जाएगी यानि सूर्य और पृथ्वी की तुलना में वह वस्तु उसी स्थान पर रहेगी। इन बिंदुओं पर दोनों पिंडों की गुरुत्व एक तरह का संतुलन लाने में काम करेगा।