स्वतंत्रता दिवस: वास्तविक स्वतंत्रता क्या है?-आचार्य प्रशांत
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: August 14, 2025 17:24 IST2025-08-14T17:23:52+5:302025-08-14T17:24:14+5:30
Independence Day: क्या 15 अगस्त को तिरंगे के सम्मान में खड़े हो जाना, राष्ट्रगान गा लेना और परेड देख लेना ही स्वतंत्रता का पर्याय है, या इसके गहरा भी कुछ है?

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Independence Day: देश का 79वां स्वतंत्रता दिवस हमारे सामने है। हमारा यह राष्ट्रीय पर्व केवल अतीत की स्मृति का अवसर नहीं है। यह वर्तमान में आत्म-मूल्यांकन और भविष्य की दिशा तय करने का भी क्षण है। कवि धूमिल की आज़ादी पर पंक्ति, "क्या आज़ादी सिर्फ तीन थके हुए रंगों का नाम है, जिन्हें एक पहिया ढोता है", दशकों पहले जितनी प्रासंगिक थी, आज भी उतनी ही तीखी है। यह सवाल सीधे हृदय में उतरता है और हमें सोचने को बाध्य करता है कि क्या 15 अगस्त को तिरंगे के सम्मान में खड़े हो जाना, राष्ट्रगान गा लेना और परेड देख लेना ही स्वतंत्रता का पर्याय है, या इसके गहरा भी कुछ है?
राजनीतिक स्वतंत्रता निस्संदेह एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी, किंतु यह केवल पहला पड़ाव है। यदि भीतर की स्वतंत्रता अनुपस्थित है तो बाहरी स्वतंत्रता भी धीरे-धीरे क्षीण हो जाएगी, और हमें इसका आभास भी नहीं होगा। ब्रिटिश शासन से मिली आज़ादी निर्णायक मोड़ थी। परंतु जब विचार, आदतें और भय हमें जकड़े हुए हों, तब राजनीतिक स्वतंत्रता भी अधूरी रह जाती है। यह दिवस तभी सार्थक होगा जब हम स्वयं से यह प्रश्न पूछें कि आज हम वास्तव में कितने स्वतंत्र हैं।
पहली आवश्यकता: अतीत से मुक्ति
हमारे जीवन का बड़ा हिस्सा अतीत के बोझ तले दबा है। जातीय पहचान, वंश, ऐतिहासिक गौरव और पुरानी चोटें: ये सब वर्तमान में स्वतंत्र जीवन जीने की राह में बाधा बनती हैं। इतिहास का ज्ञान आवश्यक है, लेकिन उसका दास बनना विनाशकारी है। अतीत से सीखना ज़रूरी है ताकि वही गलतियां न दोहराई जाएं।
लेकिन अतीत को बार-बार जीने की ज़िद हमें वर्तमान के अवसरों से वंचित करती है। राष्ट्र के स्तर पर भी यही समस्या है। अनेक राष्ट्रीय विमर्श आज भी हजारों वर्ष पुराने विवादों में उलझे रहते हैं, बजाय इसके कि हम वर्तमान की वास्तविक चुनौतियों पर ध्यान दें।
तयशुदा भविष्य से मुक्ति
जिस प्रकार हम अतीत की पटकथा में जीते हैं, वैसे ही हम भविष्य को भी पहले से लिखकर रखना चाहते हैं: सुरक्षित, पूर्वानुमेय और भीड़ के अनुरूप। यही कारण है कि लगभग हर कोई वही चाहता है जो बाकी सब चाहते हैं। लेकिन स्वतंत्रता का सार अनिश्चितता को स्वीकारने और नयेपन को गढ़ने के साहस में है। पूर्वलिखित जीवन-मंत्र मशीनों के लिए उपयुक्त है, मनुष्य के लिए नहीं।
पूर्वनिर्धारित भविष्य केवल कल्पना की सीमाएं तय नहीं करता, यह अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा को भी तीव्र बना देता है, क्योंकि सबको एक ही लक्ष्य चाहिए। मौलिकता और सृजनशीलता वहीं संभव है जहां भविष्य अवरोधमुक्त हो, और व्यक्ति को अपनी राह स्वयं बनाने का साहस हो।
भय और सुरक्षा की परिभाषा
अक्सर हम सुरक्षा को स्वतंत्रता का प्रतिस्थापन मान बैठते हैं, मानो सुरक्षित रहना ही स्वतंत्र होना हो। परन्तु वह सुरक्षा जो हमें पिंजरे में बंद चिड़िया की तरह स्थायी रूप से रोक दे, स्वतंत्रता नहीं दे सकती। ऐसी स्थिति में जीवन भले ही जोखिम-मुक्त लगे, पर उसमें उड़ान का आनंद, खुले आकाश की संभावना और नए क्षितिज देखने का अवसर समाप्त हो जाता है।
सही सुरक्षा वह है जो हमें ऊंची उड़ान भरने में सक्षम बनाए, जैसे एक विमान के इंजनों और पंखों की तकनीकी सुरक्षा, जो उसे 36,000 फुट की ऊंचाई तक पहुंचाती है और लंबी दूरी तय करने का सामर्थ्य देती है। यह वह सुरक्षा है जो स्वतंत्रता को सहारा देती है, न कि उसका स्थान लेती है।
स्वतंत्रता और असुरक्षा साथ-साथ चलती हैं, क्योंकि अनिश्चितता के बिना सृजन और विस्तार संभव नहीं। वर्तमान की चुनौतियों से जूझने, नए प्रयोग करने और अप्रत्याशित परिस्थितियों को स्वीकारने का साहस ही हमें वास्तविक स्वतंत्रता देता है।
झूठे ज्ञान और अज्ञान से मुक्ति
हम अपने बारे में और दुनिया के बारे में जितना जानते हैं, उससे कहीं अधिक मानते हैं कि हम जानते हैं। राजनीति, इतिहास, विज्ञान, इन विषयों पर हमारी राय अक्सर सुनी-सुनाई बातों, मीडिया के त्वरित निष्कर्षों और कल्पना पर आधारित होती है। यह प्रवृत्ति हमें तथ्य-जांच और अध्ययन से दूर करती है।
हमारे समाज में सार्वजनिक पुस्तकालयों की कमी, गंभीर पठन की आदत का अभाव और सतही स्रोतों पर निर्भरता ने हमें ‘विश्वासपूर्ण अज्ञानी’ बना दिया है। और भी खतरनाक यह है कि झूठा ज्ञान अक्सर पूर्ण आत्मविश्वास के साथ परोसा जाता है, जिससे उसे चुनौती देना कठिन हो जाता है। इससे निकलना तभी संभव है जब हम तथ्यों के प्रति सजग हों और अपनी धारणाओं को निरंतर परखते रहें।
आत्म-अज्ञान से मुक्ति
स्वयं को देखने की आदत लगभग समाप्त हो चुकी है। हम बाहरी परिस्थितियों को बदलने में तो व्यस्त हैं, लेकिन अपने भीतर झांकने से कतराते हैं। आत्म-अवलोकन अध्यात्म का आधार है। अपने निर्णयों, इच्छाओं और संबंधों की जड़ तक ईमानदारी से जाना: यही भीतर की स्वतंत्रता का प्रारंभ है। यदि भीतर प्रकाश नहीं है तो बाहरी उत्सव केवल आडंबर रह जाएंगे।
सामाजिक अनुकरण से मुक्ति
भीड़ के पीछे चलना, सामाजिक मान्यताओं के दबाव में निर्णय लेना, और अलग सोचने से डरना: ये सब भीतर की दृष्टिहीनता के लक्षण हैं। स्वतंत्रता तभी संभव है जब व्यक्ति में इतना साहस हो कि वह अकेले भी नये मार्ग पर चल सके।
स्वतंत्रता आंदोलन से सीख
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में लाखों लोगों की भागीदारी के बावजूद, वास्तविक समर्पण कुछ ही लोगों तक सीमित था। 40 करोड़ की आबादी में गिने-चुने ही थे जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर किया। सच यह है कि क्रांतिकारियों को अक्सर अपने ही देशवासियों द्वारा पकड़ा गया।
पुलिस, वकील और मुखबिर: अक्सर ये सब भारतीय ही थे। यह इतिहास हमें सिखाता है कि स्वतंत्रता की कद्र बिना उसके लिए व्यक्तिगत प्रयास किए संभव नहीं है।
स्वतंत्रता का दुरुपयोग और आज का संदर्भ
आज स्वतंत्रता दिवस कई लोगों के लिए केवल एक लंबा अवकाश बनकर रह गया है। देश के सामने जलवायु परिवर्तन जैसी वास्तविक और गंभीर चुनौतियां मौजूद हैं, लेकिन राष्ट्रीय विमर्श अक्सर इनसे दूर रहता है। स्वतंत्रता का उत्सव केवल तभी सार्थक होगा जब हम अपनी ऊर्जा और संसाधन इन्हीं वास्तविक खतरों के समाधान की ओर केंद्रित करें।
निष्कर्ष: स्वतंत्रता अर्जित करनी होती है
स्वतंत्रता कोई उपहार नहीं, बल्कि एक उपलब्धि है जिसे प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं अर्जित करना पड़ता है। राजनीतिक स्वतंत्रता हमें विरासत में मिल सकती है, किंतु मानसिक और आध्यात्मिक स्वतंत्रता के लिए सतत प्रयास आवश्यक है।
15 अगस्त का दिन केवल प्रतीकात्मक गतिविधियों का दिन न रहे। यह अवसर हो कि हम भीतर की गुलामी की पहचान करें और उसे तोड़ने का संकल्प लें: अतीत की कैद से, तयशुदा भविष्य से, अज्ञान और झूठे आत्मविश्वास से, सामाजिक अनुकरण और आत्म-अज्ञान से। क्योंकि स्वतंत्रता केवल उसी के लिए है जो स्वयं को जीत चुका है। वही बाहरी स्वतंत्रता का सच्चा संरक्षक बन सकता है।
आचार्य प्रशांत एक वेदान्त मर्मज्ञ और दार्शनिक हैं, तथा प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक हैं। उन्होंने अनेक पुस्तकों की रचना की है और उन्हें विभिन्न सम्मानों से सम्मानित किया गया है, जिनमें Most Influential Vegan Award (PETA), OCND Award (IIT Delhi Alumni Association), और Most Impactful Environmentalist Award (Green Society of India) शामिल हैं।