लॉकडाउन के दौरान तमिलनाडु में घर जाने की उम्मीद में पैदल की गांव को निकले प्रवासी मजदूर

By भाषा | Published: May 20, 2020 08:45 PM2020-05-20T20:45:52+5:302020-05-20T20:45:52+5:30

लॉकडाउन में मजदूर की हालात बहुत ही ज्यादा खराब हो चुकी है काम न होने का कारण देश भर मजदूर निराश होकर पैदल ही अपने घर को निकल चुके हैं। मजदूरों की दुर्दशा की दर्दनाक तस्वीर सामने आयी है।

in Tamil Nadu during coronavirus lockdown Migrant laborers migrate village going home to | लॉकडाउन के दौरान तमिलनाडु में घर जाने की उम्मीद में पैदल की गांव को निकले प्रवासी मजदूर

किसी के पास कुछ पैसे हैं, तो किसी के पास वो भी नहीं, फिर भी ये लोग जिंदगी की आखिरी आस लिए अपने घर की तरफ बढ़े जा रहे हैं। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Highlightsदेशभर में लगे लॉकडाउन के बीच, यहां चेन्नई-कोलकाता राजमार्ग पर प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा की दर्दनाक तस्वीर सामने आयी है।हजारों प्रवासी श्रमिक अपने गांव जाने की उम्मीद में राजमार्ग पर पैदल चलते हुए नजर आए।

तमिलनाडु देशभर में लगे लॉकडाउन के बीच, यहां चेन्नई-कोलकाता राजमार्ग पर प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा की दर्दनाक तस्वीर सामने आयी है। हजारों प्रवासी श्रमिक अपने गांव जाने की उम्मीद में राजमार्ग पर पैदल चलते हुए नजर आए, जो देश के उत्तर और पूर्वी हिस्सों के गांवों में अपने चिंतित माता-पिता, पत्नी और बच्चों से मिलने की उम्मीद में जीवन के अपने लंबे सफर में निकल पड़े हैं। तमाम बाधाओं के साथ ये प्रवासी श्रमिक राष्ट्रीय राजमार्ग-16 (चेन्नई- कोलकाता), जिसे ग्रैंड नॉर्दर्न ट्रंक रोड भी कहा जाता है, पर पैदल ही निकल चुके हैं, मन में एकमात्र इच्छा लिए कि किसी भी तरह से घर पहुंचना है।

किसी के पास कुछ पैसे हैं, तो किसी के पास वो भी नहीं, फिर भी ये लोग जिंदगी की आखिरी आस लिए अपने घर की तरफ बढ़े जा रहे हैं। चेन्नई के उत्तरी सिरे पर स्थित पुझल से लेकर आंध्र प्रदेश में पड़ने वाला पहला गांव रामापुरम तक राजमार्ग के पूरे 46 किलोमीटर लंबे खंड पर बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक जाते हुए दिख रहे हैं, जिनमें मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के मजदूर हैं। महिलाओं और बच्चों सहित ओडिशा के कई परिवार इस भीड़ में जाते हुए नजर आए, जो अपने सामान को बड़े, खाली पेंट के बक्से में भरे हुए थे ।

इस सामान को अपने सिर पर लिए हुए ये लोग आगे बढ़ रहे थे। इनमें से अधिकांश लोगों को नहीं पता कि सड़क पर यात्रा करने के लिए ई-पास की जरुरत होती है और वे यह भी नहीं जानते कि अपने गृह राज्य तक आसानी से पहुंचने के लिए विशेष ट्रेनों में सवार होने के लिए किससे संपर्क करें? कहां जाएं? कुछ नहीं पता। हालांकि, इनमें से कुछ का कहना है कि उन्होंने पास पाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें वह नहीं मिल सका।

प्रवासी मजदूरों की यह यात्रा बहुत ही अनिश्चितता से भरी हुई है। कोई पुलिस अधिकारियों से जाने की अनुमति देने की गुहार लगा रहा है, तो कुछ पैसे से चार्टर बसों का प्रबंध कर रहे हैं और कई अन्य ट्रक चालकों से उन्हें घर ले जाने की विनती करते हैं। कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो एक समूह में यात्रा नहीं करते हैं, वे दोपहिया सवारों से भी 'लिफ्ट' मांग लेते हैं। हालांकि, इनमें सभी भाग्यशाली होते हैं । बहुतों को पैदल ही चलना पड़ता है। एक प्रवासी श्रमिक राम बिस्वास, जो ओडिशा के मलकानगिरी जिले के लाचीपेटा जाने के लिए निकला था, वह यहाँ पास के केवरपेट्टई से आगे नहीं बढ़ सका और वह मंगलवार को सड़क किनारे मृत पाया गया।

बिस्वास उन युवकों के एक समूह में शामिल था जो कुछ दिन पहले चेन्नई शहर से निकला था। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि वह बहुत कमजोर पड़ गया था। उन्होंने बताया कि सरकारी अस्पताल में पोस्टमार्टम के बाद उसके शव को उसके मूल स्थान पर भेजा जा रहा है। लॉकडाउन में फंसे हर श्रमिक की अपनी व्यथा भरी एक कहानी है। चिलचिलाती धूप में निकला बिहार का रंजीत कुमार ओझा, जो बहुत ही कमजोर हो गया था और घायल दिख रहा था । लेकिन शोलावरम चेकपोस्ट पर वह घर जाने के लिए रास्ता पूछ रहा था। हाल तक एक सड़क निर्माण कंपनी के लिए काम करने वाला ओझा इस बात से बहुत परेशान था कि पैर में चोट लगने के बाद भी उसकी कंपनी ने कोई मदद नहीं की ।

लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी है। वह कहता है कि जीवन की नई शुरुआत करने के लिए बिहार के चंपारण तक पूरे रास्ते पैदल ही जाएगा। इस बीच, रेड हिल्स के एक पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘‘पंजीकरण की प्रक्रिया अब जारी है। उन्हें एक ट्रेन में सवार कराने के लिए व्यवस्थाएं की गई हैं।’’ हालांकि नगर निकाय के अधिकारियों ने कहा कि राज्य सरकार बेरोजगार श्रमिकों के लिए आवास और भोजन सुनिश्चित कर रही है। पुलिस का कहना है कि किसी को भी राजमार्ग पर चलने की अनुमति नहीं है। उन्होंने कहा कि इन फंसे हुए मजदूरों को रेलगाड़ियों से उनके मूल स्थानों तक पहुंचाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं और तब तक उन्हें विवाह भवनों और सामुदायिक केंद्रों में रखा जाएगा। 

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