हिन्दू संस्था ने धार्मिक स्थल कानून के प्रावधानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का खटखटाया दरवाजा, जानें क्या है पूरा मामला

By भाषा | Published: June 12, 2020 02:47 PM2020-06-12T14:47:42+5:302020-06-12T14:47:42+5:30

Supreme Court: याचिका में धार्मिक स्थल (विशेष प्रावधान) कानून, 1991 की धारा चार को चुनौती दी गयी है। इस याचिका को काशी और मथुरा से जोड़कर देखा जा रहा है जहां दो विवादित मस्जिदें हैं।

Hindu body moves Supreme Court challenging provision in Place of Worship Act 1991 | हिन्दू संस्था ने धार्मिक स्थल कानून के प्रावधानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का खटखटाया दरवाजा, जानें क्या है पूरा मामला

हिन्दू संस्था की धार्मिक स्थल कानून, 1991 के प्रावधानों को न्यायालय में चुनौती दी गई है। (फाइल फोटो)

Highlightsएक हिन्दू संगठन ने मौजूद विभिन्न संरचनाओं का धार्मिक स्वरूप बनाये रखने संबंधी धार्मिक स्थल कानून, 1991 के प्रावधानों को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है।इस याचिका को अयोध्या में राम जन्मभूमि से इतर दूसरे विवादित धार्मिक स्थलों पर दावा करने के लिये मुकदमा शुरू करने के मार्ग के रूप में देखा जा रहा है।

नई दिल्लीः एक हिन्दू संगठन ने 15 अगस्त, 1947 की स्थिति के अनुसार मौजूद विभिन्न संरचनाओं का धार्मिक स्वरूप बनाये रखने संबंधी धार्मिक स्थल कानून, 1991 के प्रावधानों को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है। इस याचिका को अयोध्या में राम जन्मभूमि से इतर दूसरे विवादित धार्मिक स्थलों पर दावा करने के लिये मुकदमा शुरू करने के मार्ग के रूप में देखा जा रहा है। यह याचिका ‘विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ’ ने दायर की है।

याचिका में धार्मिक स्थल (विशेष प्रावधान) कानून, 1991 की धारा चार को चुनौती दी गयी है। इस याचिका को काशी और मथुरा से जोड़कर देखा जा रहा है जहां दो विवादित मस्जिदें हैं। यह कानून किसी भी मंदिर या मस्जिद को एक दूसरे के धार्मिक स्थल में तब्दील करने पर प्रतिबंध लगाता है।

शीर्ष अदालत ने पिछले साल नौ नवंबर को अयोध्या में विवादित स्थल पर एक ट्रस्ट द्वारा राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया था। इस विवादित स्थल पर कभी बाबरी मस्जिद थी । न्यायालय की संविधान पीठ ने अपने सर्वसम्मति के फैसले में मस्जिद निर्माण के लिये पांच एकड़ भूमि आबंटित करने का भी आदेश दिया था।

संविधान पीठ ने 1991 के इस कानून पर भी विचार किया था और कहा था कि यह भारतीय शासन व्यवस्था के पंथनिरपेक्ष स्वरूप को संरक्षित करने के उद्देश्य से बनाया गया है। जनहित याचिका दायर करने वाले संगठन ने1991 के कानून की धारा 4 को असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया है। याचिका के अनुसार न्यायालय में चली कार्यवाही के दौरान इस कानून को चुनौती नहीं दी गयी थी और इसके बारे में की गयी टिप्पणियों का न्यायिक महत्व नहीं है।

'हिन्दू श्रद्धालु अदालत में कोई भी दावा करके अपनी शिकायतें नहीं उठा सकते'

याचिका में कहा गया है कि इस कानून के तहत हिन्दुओं की धार्मिक संपत्ति पर किये गये अतिक्रमण के खिलाफ किसी भी तरह का दावा या राहत का अनुरोध करने पर प्रतिबंध है। याचिका के अनुसार इसका नतीजा यह है कि हिन्दू श्रद्धालु दीवानी अदालत में कोई भी दावा करके अपनी शिकायतें नहीं उठा सकते हैं और न ही राहत के लिये संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय जा सकते हैं। याचिका में कहा गया है कि संसद ने अदालत की प्रक्रिया के माध्यम से विवाद का समाधान किये बगैर ही कानून में यह प्रावधान किया है जो असंवैधानिक और कानून बनाने के उसके अधिकार से बाहर है।

याचिका के अनुसार कानून के इस प्रावधान को पिछली तारीख से लागू नहीं किया जा सकता है और संसद किसी भी लंबित विवाद के समाधान के उपायों को प्रतिबंधित नहीं कर सकती है। याचिका में कहा गया है, 'संसद पीड़ित व्यक्तियों के लिये राहत के दरवाजे बंद नहीं कर सकती है और न ही पहले चरण, अपीली अदालत और संविधान के अनुच्छेद 32 और 226 में प्रदत्त संवैधानिक अदालतों के अधिकार ले सकती है।' 

संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत श्रद्धालुओं को मूर्ति पूजा का मौलिक अधिकार

याचिका में दलील दी गयी है कि संसद हिन्दू श्रद्धालुओं को न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से अपने धार्मिक स्थल वापस लेने के अधिकारों से वंचित नहीं कर सकती है। याचिका में कहा गया है कि संसद ऐसा कोई कानून नहीं बना सकती जो श्रद्धालुओं को उनके धार्मिक अधिकारों से वंचित करता हो या इसे पिछली तारीख से प्रभावी बनाता हो। याचिका में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत श्रद्धालुओं को मूर्ति पूजा का मौलिक अधिकार है। 

Web Title: Hindu body moves Supreme Court challenging provision in Place of Worship Act 1991

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