उच्च न्यायलय ने सरनाईक के ‘सहयोगी’ की हिरासत अवधि पर निदेशालय के खिलाफ आए फैसले को किया खारिज

By भाषा | Updated: December 7, 2020 13:07 IST2020-12-07T13:07:36+5:302020-12-07T13:07:36+5:30

High court dismisses Sarnaik's decision against the directorate on the term of 'associate' custody | उच्च न्यायलय ने सरनाईक के ‘सहयोगी’ की हिरासत अवधि पर निदेशालय के खिलाफ आए फैसले को किया खारिज

उच्च न्यायलय ने सरनाईक के ‘सहयोगी’ की हिरासत अवधि पर निदेशालय के खिलाफ आए फैसले को किया खारिज

मुंबई, सात दिसंबर बंबई उच्च न्यायालय ने शिवसेना के विधायक प्रताप सरनाईक के कथित सहयोगी अमित चंदोले की हिरासत अवधि बढ़ाने की प्रवर्तन निदेशालय की याचिका खारिज करने के सत्र न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया।

चंदोले की गिरफ्तारी धनशोधन के एक मामले में हुई है। सरनाईक भी धनशोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के तहत इस मामले के आरोपी हैं।

एक सत्र अदालत ने 29 नवंबर को प्रवर्तन निदेशालय की चंदोले की हिरासत अवधि बढ़ाने की याचिका खारिज कर दी थी। चंदोले को 25 नवंबर को एजेंसी ने गिरफ्तार किया था।

प्रवर्तन निदेशालय, सुरक्षा सेवा देने वाली एक निजी कंपनी और सरनाईक के साथ कथित लेन-देन में चंदोले की भूमिका की जांच कर रही है।

सोमवार को बंबई उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति पृथ्वीराज के. चव्हाण ने शहर की विशेष पीएमएलए अदालत को प्रवर्तन निदेशालय की चंदोले की हिरासत अवधि आगे बढ़ाने की याचिका पर पुनर्विचार करने और शाम तक इस संबंध में उचित आदेश देने के निर्देश दिए हैं।

न्यायमूर्ति चव्हाण ने इस मामले से जुड़े सभी पक्षों को शाम तीन बजे विशेष अदालत के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया है।

चंदोले प्रवर्तन निदेशालय के हिरासत में थे और उन्हें 29 नवंबर को विशेष पीएमएलए अदालत में पेश किया गया था। सत्र न्यायाधीश ने तब चंदोले को नौ दिसंबर तक के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।

चंदोले और सरनाईक पर एक सुरक्षा कंपनी टॉप्स सिक्यूरिटी ग्रुप के पूर्व कर्मचारी रमेश अय्यर ने मामला दर्ज कराया था। अय्यर का आरोप था कि मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी (एमएमआरडीए) का कंपनी से 350 से 500 गार्ड लेने का करार था और सुरक्षा कंपनी ने सिर्फ 70 फीसदी ही गार्ड दिए और एमआरडीए द्वारा इस संबंध में भुगतान की गई राशि का कुछ हिस्सा आरोपी के निजी खातों में गया।

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Web Title: High court dismisses Sarnaik's decision against the directorate on the term of 'associate' custody

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