आदिवासी प्रवर्ग के लिए परिपूर्ण नहीं है ‘एफिनिटी टेस्ट’, जाति वैधता प्रमाणपत्र पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

By सौरभ खेकडे | Updated: February 15, 2022 19:20 IST2022-02-15T19:19:36+5:302022-02-15T19:20:39+5:30

हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा है कि हमे यह समझना होगा कि आदिवासी समुदाय कुछ दशकों पहले तक मुख्य धारा से दूर था. उस वक्त तो एफिनिटी टेस्ट महत्वपूर्ण हुआ करता था.

high court decision caste validity certificate Not perfect tribal 'category' 'affinity test' nagpur case | आदिवासी प्रवर्ग के लिए परिपूर्ण नहीं है ‘एफिनिटी टेस्ट’, जाति वैधता प्रमाणपत्र पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

अनुसूचित जनजाति प्रवर्ग के उम्मीदवारों के दावों पर फैसला लेते वक्त समितियां ‘आजादी के पूर्व’ तैयार किए गए दस्तावेजों को अधिक महत्व दें.

Highlightsदलील के साथ प्रमाणपत्र का दाव खारिज करना पूरी तरह अन्याय है.पूर्वजों की जीवनशैली में बदलाव स्वाभाविक है.दोनों पीढ़ियों के रहन-सहन में अंतर है.

नागपुरः राज्य में अनुसूचित जनजाति प्रवर्ग को जाति वैधता प्रमाणपत्र देने वाली जाति वैधता पड़ताल समितियों के लिए बंबई हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने जरूरी दिशानिर्देश जारी किए है.

 

पूर्वजों की जाति इतिहास टटोलने के लिए लिए जाने वाले ‘एफिनिटी टेस्ट’ की जटिलता और खामियों पर हाईकोर्ट ने प्रकाश डाला है. हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा है कि हमे यह समझना होगा कि आदिवासी समुदाय कुछ दशकों पहले तक मुख्य धारा से दूर था. उस वक्त तो एफिनिटी टेस्ट महत्वपूर्ण हुआ करता था.

लेकिन फिर समय के साथ-साथ इस समुदाय का विकास होने लगा, जीवनशैली में नए बदलाव आने लगे. ऐसे में वर्तमान के आदिवासी प्रवर्ग और उनके पूर्वजों की जीवनशैली में बदलाव स्वाभाविक है. दोनों पीढ़ियों के रहन-सहन में अंतर है. इस दलील के साथ प्रमाणपत्र का दाव खारिज करना पूरी तरह अन्याय है.

इतिहास का पर्याप्त ज्ञान नहीं

हाईकोर्ट के समक्ष ऐसे कई मामले आए है जिसमें यह पाया गया है कि समिति किसी समुदाय विशेष की संस्कृति और इतिहास के पर्याप्त ज्ञान के बगैर ही तयशुदा प्रारूप में दावों का मूल्यांकन करती है. ना तो समिति के पास आवेदक के जातीय इतिहास को खंगालने के लिए पर्याप्त सुविधाएं होती है और ना ही पर्याप्त ज्ञान.

ऐसे में न्यायमूर्ति अतुल चांदुरकर और न्यायमूर्ति एम.एस.जावलकर की खंडपीठ ने आदेश जारी किया है कि अनुसूचित जनजाति प्रवर्ग के उम्मीदवारों के दावों पर फैसला लेते वक्त समितियां ‘आजादी के पूर्व’ तैयार किए गए दस्तावेजों को अधिक महत्व दें.

याचिकाकर्ता को नौकरी पर वापस लें

हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे प्रकरणों में आजादी पूर्व के दस्तावेज अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं. हाईकोर्ट ने वर्ष 1917 के एक दस्तावेज के आधार पर याचिकाकर्ता उमेश जांभोरे (कामठवाडा,यवतमाल) को ‘माना’ समुदाय का घोषित करते हुए, समिति को उन्हें प्रमाणपत्र देने के आदेश दिए है. साथ ही संबंधित विभाग को उन्हें नौकरी पर वापस लेने के आदेश दिए है.

Web Title: high court decision caste validity certificate Not perfect tribal 'category' 'affinity test' nagpur case

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