हरियाणा चुनाव: ..तो क्या भूंपेंद्र हुड्डा का पुत्र प्रेम अशोक तंवर को ले डूबा?
By शीलेष शर्मा | Published: October 6, 2019 02:13 AM2019-10-06T02:13:45+5:302019-10-06T02:13:45+5:30
अशोक तंवर के इस्तीफे से भूपेंद्र हुड्डा जहां गदगद हैं वहीं पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को धक्का पहुंचा है. क्योंकि एक दिन पहले ही पार्टी ने स्टार प्रचारकों की जो सूची चुनाव आयोग को सौंपी थी उसमें 13वें स्थान पर अशोक तंवर का नाम शामिल किया गया था. जाहिर है कि पार्टी विधानसभा चुनाव में तंवर का पूरा इस्तेमाल करना चाहती है.
दलित समुदाय के प्रतिनिधि के रूप में तंवर ने हरियाणा में अपनी जगह हासिल की लेकिन भूपेंद्र हुड्डा से छत्तीस का आंकड़ा होने के कारण तंवर पार्टी में लंबी दौड़ नहीं लगा सके.
सूत्रों के अनुसार हुड्डा हरियाणा की राजनीतिक विरासत अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा को सौंपना चाहते हैं, नतीजा वे हर उस व्यक्ति को रास्ते से हटाने की कोशिश में जुटे हैं जो भविष्य में दीपेंद्र हुड्डा के लिए चुनौती साबित हो सकता हो.
विधानसभा चुनाव टिकट वितरण के बाद बागी तेवर अपनाने वाले अशोक तंवर ने हर संभव कोशिश की कि वह पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को दबाव में ले लें लेकिन वह कामयाब नहीं हो सके. कांग्रेस मुख्यालय और पार्टी अध्यक्ष के आवास के बाहर तंवर ने विरोध प्रदर्शन भी किया लेकिन फिर भी कामयाबी हाथ नहीं लगी। अंतोगत्वा तंवर ने सोनिया गांधी के नाम चार पेज का एक पत्र लिखा जिसमें 1993 से अब तक पार्टी ने उनको किस-किस पद की जिम्मेदारी सौंपी का उल्लेख किया गया है.
इस पत्र में अशोक ने यह समझाने की कोशिश की है कि राहुल समर्थकों को पार्टी पर हावी गुट निपटाने में लगा हुआ है. कुछ इसी तरह का आरोप महाराष्ट्र में संजय निरुपम भी लगा चुके हैं.
अशोक तंवर ने बारी-बारी से उन बिंदुओं का उल्लेख किया है कि आखिर कांग्रेस कैसे हाशिये पर चली गयी. उन्होंने आरोप लगाया कि धनबल और चाटुकारिता के जरिए कुछ लोगों ने पार्टी पर कब्जा कर लिया है. जिसके कारण कांग्रेस अब कांग्रेस नहीं रह गयी है. नेतृत्व भी उन लोगों की अनदेखी कर रहा है जो जमीन से ऊपर उठकर आये हैं.
तंवर ने अपने दलित होने का अहसास भी नेतृत्व को कराया है और लिखा है कि इन सभी का संज्ञान लेने के बाद वे पार्टी की प्रारंभिक सदस्यता से इस्तीफा दे रहे हैं.