Haryana Election 2024: अखिल भारतीय किसान कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष बने बजरंग पूनिया, हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का बड़ा दांव

By सतीश कुमार सिंह | Updated: September 6, 2024 22:30 IST2024-09-06T22:08:54+5:302024-09-06T22:30:03+5:30

Haryana Election 2024: रेलवे अधिकारियों से फोगाट को कार्यमुक्त करने और ‘राजनीति नहीं करने’ का अनुरोध किया।

Haryana Election 2024 appointment Bajrang Punia Working Chairman All India Kisan Congress Congress President approved proposal see video | Haryana Election 2024: अखिल भारतीय किसान कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष बने बजरंग पूनिया, हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का बड़ा दांव

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Highlightsकांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से उनके आवास पर मुलाकात की।रेलवे ने फोगाट को कारण बताओ नोटिस जारी किया है।क्या विपक्ष के नेता से मिलना अपराध है?

Haryana Election 2024: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी ने बड़ा दांव चल दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष ने बजरंग पुनिया को अखिल भारतीय किसान कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त करने के प्रस्ताव को तत्काल प्रभाव से मंजूरी दे दी है। ओलंपियन पहलवान बजरंग पूनिया और विनेश फोगाट ने शुक्रवार को कांग्रेस में शामिल होकर राजनीतिक पारी की शुरुआत की। जुलाना सीट पर फोगाट चुनाव लड़ सकती हैं। कांग्रेस मुख्यालय में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में पार्टी महासचिव (संगठन) के सी वेणुगोपाल, हरियाणा प्रभारी दीपक बाबरिया, प्रदेश अध्यक्ष सूरजभान, प्रवक्ता पवन खेड़ा और अन्य नेताओं की मौजूदगी में दोनों पहलवान कांग्रेस में शामिल हो गए। इससे पहले फोगाट और पूनिया ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से उनके आवास पर मुलाकात की।

वेणुगोपाल ने दावा किया कि बुधवार को राहुल गांधी से मुलाकात के बाद रेलवे ने फोगाट को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। पार्टी सूत्रों ने कहा कि नोटिस में राजनीतिक नेताओं से मिलकर सेवा नियमों का उल्लंघन करने की बात कही गई है। वेणुगोपाल ने पूछा कि क्या विपक्ष के नेता से मिलना अपराध है? साथ ही रेलवे अधिकारियों से फोगाट को कार्यमुक्त करने और ‘राजनीति नहीं करने’ का अनुरोध किया।

बजरंग पूनिया ने एक बार कहा था कि इससे फर्क नहीं पड़ता कि कौन उनके साथ है क्योंकि जब वह दिमाग में यह सोच लेते हैं कि वह अपराजेय हैं, उन्हें कोई नहीं हरा सकता। कुश्ती के मैट को छोड़कर बजरंग अब राजनीति के अखाड़े में उतर गए हैं। टोक्यो ओलंपिक के कांस्य पदक विजेता बजरंग ने हरियाणा में विधानसभा चुनाव से एक महीना पहले कांग्रेस से जुड़ने का फैसला किया।

और ऐसी अटकलें हैं कि वह चुनाव लड़ सकते हैं। भारतीय कुश्ती के दिग्गजों में शुमार बजरंग ने मैट पर कई बुलंदियों को छुआ तो मैट के बाहर काफी बुरे दौर भी देखे। वह फ्रीस्टाइल वर्ग में दुनिया की नंबर एक रैंकिंग पर पहुंचने वाले पहले भारतीय थे। वहीं चार विश्व खिताब जीतने वाले भी पहले भारतीय हैं।

तीस वर्ष के बजरंग ने आधिकारिक तौर पर खेल से संन्यास नहीं लिया है लेकिन अब उनके इस नये कदम से तय है कि कुश्ती अब उनकी प्राथमिकताओं में नहीं है। इसकी शुरुआत महीनों पहले ही हो गई थी। उन्होंने भाजपा के कद्दावर नेता और भारतीय कुश्ती महासंघ के तत्कालीन अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ महिला पहलवानों के कथित यौन उत्पीड़न के आरोपों को लेकर आंदोलन की अगुवाई की।

वह विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और अपनी पत्नी संगीता फोगाट के साथ खड़े रहे जिन्होंने इंसाफ की मांग को लेकर दिल्ली की सड़कों पर प्रदर्शन किया। पहलवान बलवान सिंह के बेटे बजरंग बचपन में ही तड़के अपने परिवार को बताये बिना अभ्यास के लिये निकल जाते थे। वह 14 वर्ष की उम्र में अखाड़े से जुड़े। कुश्ती में झंडे गाड़ने के बाद वह व्यवस्था को बदलने वाले कार्यकर्ता बन गए।

यही वजह है कि बृजभूषण के कथित तानाशाही रवैये के खिलाफ आवाज बुलंद करने में उन्हें डर नहीं लगा। राष्ट्रीय डोपिंग निरोधक एजेंसी के तौर तरीकों पर प्रश्नचिन्ह लगाने से पहले भी उन्होंने अंजाम की परवाह नहीं की । वैसे यह बगावत उन्होंने कैरियर के ढलने के बाद शुरू की।

साक्षी और विनेश के साथ जब वह सड़कों पर प्रदर्शन के लिये निकले तब चार विश्व चैम्पियनशिप, एक ओलंपिक, दो एशियाई खेल, तीन राष्ट्रमंडल खेल और आठ एशियाई चैम्पियनशिप पदक जीत चुके थे। उनके आलोचकों ने उन्हें मौकापरस्त कहा हालांकि बजरंग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपलब्धियों के दम पर अपना नाम सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में पहले ही दर्ज करा चुके थे।

अब वह अलग तरह के दंगल की तैयारी में है जिसमें जनता का समर्थन और वोट उनके भाग्य का फैसला करेंगे । उनका सफर जनवरी 2022 में जंतर मंतर से शुरू हुआ जब पहलवानों ने बृजभूषण के खिलाफ आंदोलन छेड़ा । जल्दी ही इसे किसानों, महिला संगठनों, छात्रों , राजनेताओं का समर्थन भी मिला । बजरंग आंदोलन के कारण ओलंपिक की तैयारी नहीं कर सके और ट्रायल में ही हार गए।

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