गुलजारीलाल नंदा: दो बार कार्यवाहक पीएम, डेढ़ दशक तक केंद्रीय मंत्री रहने के बावजूद ऐसे कटा अंत समय
By स्वाति सिंह | Published: July 4, 2018 08:19 AM2018-07-04T08:19:15+5:302018-07-04T08:19:15+5:30
भारत की आजादी के बाद 1950 में गुलजारीलाल नंदा योजना आयोग का डिप्टी चेयरमैन बनाया गया। 1952 में वो दोबारा योजना आयोग के डिप्टी चेयरमैन नियुक्त हुए।
आज गुलजारीलाल नंदा को ज्यादातर लोग दो बार देश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहने के लिए याद करते हैं। नंदा पहली बार 1964 में जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद 13 दिनों तक लिए देश के पीएम रहे। दूसरी बार 1966 में लालबहादुर शास्त्री की मौत के बाद 13 दिनों के लिए देश के प्रधानमंत्री रहे। चार जुलाई 1898 को जन्मे नंदा भारतीय राजनीति में महात्मा गांधी से प्रेरित होकर आए थे। उन्होंने इंडियन नेशनल कांग्रेस के सदस्य के रूप में आजादी की लड़ाई में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। अर्थशास्त्र के प्रोफेसर नंदा 1927 में बॉम्बे प्रांत की विधान सभा में चुने गये। आजादी के बाद 1952 में जब देश का पहला आम चुनाव हुआ तो नंदा चुनाव जीतकर संसद पहुँचे। उसके बाद उन्होंने 1957, 1962, 1967 और 1971 के लोक सभा चुनावों में भी जीत हासिल की।
नंदा का जन्म पंजाब के गुजरांवाला (अब पाकिस्तान में) हुआ था। 1921 में महात्मा गांधी की प्रेरणा से वो गुजरात जाकर बस गये। गांधीजी के नेतृत्व में उन्होंने असहयोग आंदोलन में अहम योगदान दिया। नंदा लेबर लॉ (श्रम कानून) के विशेषज्ञ थे। वो मजदूर संगठनों की राजनीति से भी गहरे तौर पर जुड़े रहे थे। नंदा हिंदुस्तान मजदूर सेवा संघ के 1946 से 1948 तक सचिव रहे थे। उन्होंने भारत सेवक समाज और भारत साधु समाज जैसे संगठनों की स्थापना की थी।
आजादी के बाद 1950 में उन्होंने योजना आयोग का डिप्टी चेयरमैन बनाया गया। 1952 में वो दोबारा योजना आयोग के डिप्टी चेयरमैन नियुक्त हुए। नंदा 1952 से 1964 तक जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में मंत्री रहे। नेहरू के निधन के बाद नंदा कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने। लालबहादुर शास्त्री की कैबिनेट में वो देश के गृह मंत्री बनाए गये। जनवरी 1966 में शास्त्री के निधन के बाद नंदा दूसरी बार कार्यवाहक पीएम बने। जब 1969 में कांग्रेस दो धड़ों में बँटी तो नंदा ने इंदिरा गांधी का साथ दिया। 1970 के दशक में बदलते राजनीतिक हालात के मद्देनजर नंदा ने राजनीति से संन्यास ले लिया। उन्होंने अपना भावी जीवन समाजसुधार और धार्मिक सुधार के लिए समर्पित कर दिया। 15 जनवरी 1998 को नंदा का गुजरात में निधन हो गया।
गुलजारीलाल नंदा उस पीढ़ी के नेता थे जिन्होंने देश को दिया दिया बहुत ज्यादा, लिया लिया बहुत कम। आज यह जानकर कोई हैरान हो सकता है कि आजादी से पहले प्रांतीय असेंबली के सदस्य , दो बार देश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री, करीब डेढ़ दशकों तक केंद्रीय मंत्री और पाँच बार लोक सभा सांसद रहने के बावजूद नंदा के पास रहने के लिए अपना घर नहीं था और न ही आजीविनका का कोई साधन। वो इतने खुद्दार थे कि अपने बच्चों से भी खर्च के लिए पैसे नहीं लेते थे। उनकी खराब आर्थिक स्थिति देखकर उनके दोस्तों ने जबरदस्ती उन्हें स्वतंत्रासेनानी पेंशन के लिए आवेदन करने के लिए बाध्य किया। करीब 500 रुपये की उस पेंशन से ही वो अपना निजी खर्च चलाते रहे।
इस गांधीवादी नेता को अंतिम वर्षों में जीवन का काफी कड़वा अनुभव सहना पड़ा। नंदा हरियाणा के कैथल से दो बार संसदीय चुनाव जीते थे। उन्होंने हरियाणा में एक आश्रम और डेयरी की स्थापना की थी। राजनीति से रिटायर होने के बाद वो वहीं रहने गये लेकिन उनके करीबी लोगों ने उन्हें वहाँ से बाहर कर दिया। हरियाणा से धोखा खाकर नंदा दिल्ली रहने आये। शुभचिंतकों के अनुरोध के बावजूद उन्होंने सरकारी आवास पाने के लिए आवेदन नहीं किया। आखिरकार उन्हें किराया न देने के कारण दिल्ली का मकान छोड़ना पड़ा। नंदा ने आखिरी समय अहमदाबाद में अपनी बेटी के घर में गुजारा।
लोकमत न्यूज के लेटेस्ट यूट्यूब वीडियो और स्पेशल पैकेज के लिए यहाँ क्लिक कर सब्सक्राइब करें।