Gujarat Election 2022: नरेंद्र मोदी को बनवास देने वाले शंकर सिंह वाघेला का दांव कितना होगा कारगर

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: September 17, 2022 21:56 IST2022-09-17T21:46:46+5:302022-09-17T21:56:39+5:30

गुजरात में इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जिसके लिए पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला भी कमर कस चुके हैं। वाघेला भाजपा, कांग्रेस और आप को समान रूप से सत्ता का लोभी बताते हुए जनता के कटघरे में खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं।

Gujarat Election 2022: How much will the bets of Shankar Singh Vaghela, who gave Narendra Modi banishment, be effective in Gujarat elections | Gujarat Election 2022: नरेंद्र मोदी को बनवास देने वाले शंकर सिंह वाघेला का दांव कितना होगा कारगर

फाइल फोटो

Highlightsशंकर सिंह वाघेला गुजरात विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी को मात देने के लिए कमर कस रहे हैं पूर्व सीएम शंकर सिंह वाघेला ने भाजपा, कांग्रेस और आप को हराने के लिए नई पार्टी बनाई है वाघेला भी विधानसभा चुनाव में भाजपा, कांग्रेस और आप के तीहरे मुकाबले में जमकर ताल ठोंक रहे हैं

दिल्ली: शंकर सिंह वाघेला गुजरात की सियासत में वो नाम है, जिन्हें 82 साल की उम्र में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद सबसे ज्यादा लोकप्र‍ियता हासिल है। इस उम्र में वाघेला पूरी ठसक के साथ राजनीति में जमे हुए हैं तो उसका सबसे कारण है कि वो कांग्रेस और भाजपा सहित कई घाट का पानी पी चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपने रिश्तों को सास-बहू का दर्जा हेते हुए बाघेला कहते हैं कि उनके और पीएम मोदी के बीच कब कौन, किस रोल में आ जाए, यह समझना ही बड़ा मुश्किल है।

गुजरात में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं और वाघेला कमर कस चुके हैं प्रधानमंत्री मोदी के गढ़ में भाजपा को मात देने के लिए। बापू के नाम से गुजरात की जनता के बीच लोकप्रिय पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला ने इसके लिए नई पार्टी का भी गठन कर लिया है और उसका नाम रखा है 'प्रजाशक्ति डेमोक्रेटिक पार्टी। दरअसल शंकर सिंह वाघेला भी इस विधानसभा चुनाव में भाजपा कांग्रेस और आप के तीहरे मुकाबले के बीच ताल ठोंककर अपनी बिसात भी बिछाने की कोशिश कर रहे हैं।

वैसे देखें तो बीते 45 सालों से गुजरात की राजनीति में सक्रिय शंकर सिंह वाघेला देश की संसद में भी तीन बार दस्तक दे चुके हैं। वाघेला 1977 में जनता पार्टी की लहर और इंदिरा विरोध के बीच पहली बार लोकसभा पहुंचे थे वहीं 1984 से 1989 तक वो राज्यसभा के भी सदस्य रहे हैं। साल 2004 में जब अटल बिहारी वाजपेयी सरकार हटी और मनमोहन सिंह की सरकार बनी तो उसमें वाघेला को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था।

कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केशुभाई पटेल के बाद गुजरात के जिस नेता का सबसे ज्यादा सम्मान करते हैं तो वो हैं शंकर सिंह बाघेला। वाघेला एक ऐसे नेता हैं, जिनके बारे में कोई भी यकिनी तौर पर किसी तरह का कोई दावा नहीं कर सकता है। वो कब किसके करीब होते हैं और कब दूर चले जाते हैं, उसे समझ पाना बेहद कठिन है।

गृहमंत्री अमित शाह के राजनीतिक गुरु माने जाने वाले शंकर सिंह वाघेला की राजनीति संघ की गोद में पली-बढ़ी है। 1980 में गुजरात बीजेपी के महासचिव और बाद में पार्टी की कमान संभालने वाले वाघेला को गुजरात में लालकृष्ण आडवाणी का राजनैतिक वारिस माना जाता था। कभी नरेंद्र मोदी भी उनके साथ गुजरात की राजनीति को समझने के लिए दिनरात एक साथ गुजारा करते थे।

लेकिन वाघेला को झटका तब लगा जब 1995 में नरेंद्र मोदी ने विधानसभा में 121 सीटों जीतने के बाद केशुभाई पटेल खेमे में शामिल हो गये और आडवाणी ने भी वाघेला को विश्वस्त न मानते हुए पटेल को मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठा दिया।

इस अपमान से तिलमिलाये शंकर सिंह वाघेला ने केशुभाई पटेल और नरेंद्र मोदी को पटखनी देने के लिए लंबी चाल चली। मुख्यमंत्री बनने के बाद केशूभाई पटेल अमेरिका के दौरे पर गये हुए थे। वाघेला ने भाजपा के 55 विधायकों को तोड़ा और रातों-रात चार्टड प्लेन से मध्य प्रदेश भेज दिया। जहां कांग्रेस के दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री हुआ करते थे।

अमेरिका सैर कर रहे केशूभाई पटेल और दिल्ली में बैठे भाजपा आलाकमान को भनक तक नहीं लगी की उनके 55 विधायक खजुराहो के मंदिर में मत्था टेक रहे हैं और खजुराहो ट्रिप के गाइड उन्हीं के नेता शंकर सिंह वाघेला हैं। गुजरात में आये उस सियासी बवंडर से भाजपा की पूरे देश में बहुत किरकिरी हुई। पार्टी की शाख पर गहरा धक्का पहुंचा।

खैर, आलाकमान किसी तरह से वाघेला को मनाने के लिए जुटा। वाघेला ने कहा कि समझौत तभी होगा जब पार्टी नरेंद्र मोदी को गुजरात से बाहर करे। पार्टी को वाघेला की शर्तों के आगे झुकना पड़ा और मोदी को गुजरात से विदा कर दिया गया। उसके बाद नरेंद्र मोदी ने सीधे साल 2000 में गुजरात की सियासत में एंट्री ली और वो बाकायदा मुख्यमंत्री बनकर।

वाघेला ने उस समय मोदी को भले परास्त कर दिया हो लेकिन जल्द ही उन्हें भी भारी धक्का लगा। साल 1996 के लोकसभा चुनाव में वो गोधरा सीट से चुनाव हार गये। इस तरह से गुजरात में मुख्यमंत्री का पद गंवाने वाले केशुभाई पटेल और गुजरात से बेदखल होने वाले नरेंद्र मोदी ने वाघेला से अपना बदला साध लिया। इसके बाद शंकर सिंह वाघेला ने भाजपा से रिश्ता तोड़ लिया और राष्ट्रीय जनता पार्टी के नाम से अपनी पार्टी बना ली।

कांग्रेस ने वाघेला की राष्ट्रीय जनता पार्टी के साथ मिलकर गुजरात में सरकार बनाई लेकिन करीब एक साल सत्ता का सुख भोगने वाले शंकर सिंह वाघेला को उस समय मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा, जब कांग्रेस से उनके मतभेद हो गये। साल 1998 में वाघेला की जगह दिलीप पारीख मुख्यमंत्री बने। लेकिन पारीख भी विधानसभा में जल्द ही पस्त हो गई और फिर कुछ ही महीनो के बाद गुजरात में चुनाव हुए।

1998 के चुनाव में वाघेला पूरी तरह से पस्त हो गये, उनकी पार्टी को महज चार सीटें मिलीं। गुजरात की सियासत में सभी को लगने लगा कि वाघेला का सियासी करियर खत्म हो गया। लेकिन वो इतनी आसानी से हार मानने वाले नहीं थे। सियासी आंधी में खुद के बिखराव को रोकने के लिए वाघेला ने राष्ट्रीय जनता पार्टी का कांग्रेस विलय कर दिया।

दरअसल सोनिया गांधी को भी उस समय एक ऐसे नेता की तलाश थी, जो कांग्रेस की छतरी के नीचे रहते हुए भाजपा को मात देने की कूबत रखता हो लेकिन वाघेला के आने से कांग्रेस को कोई फायदा नहीं मिला। क्योंकि 2000 में नरेंद्र मोदी दिल्ली से गुजरात आ चुके थे और केशुभाई की विदाई के बाद वाली भाजपा बेहद आक्रामक थी।

फरवरी 2002 में गोधरा रेलवे स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के जलने की घटना और फिर उसके जवाब में भड़की गोधरा हिंसा ने भाजपा को जो सियासी ताकत दी, शंकर सिंह बाघेला राजनीति के हाशिये पर चले गये। 14 साल तक राज्य की कमान नरेंद्र मोदी के हाथ में रही, उसके बाद वो पीएम बनकर दिल्ली आ गये। लेकिन वाघेला आज तक अपनी जमीन वापस नहीं ले पाये हैं।

अब बात करते हैं मौजूदा सियासत में शंकर सिंह वाघेला की नई पार्टी के बारे में। 'प्रजाशक्ति डेमोक्रेटिक पार्टी' के बैनर तले शंकर सिंह वाघेला एक बार फिर उम्र की ढलान पर नरेंद्र मोदी के खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं। वाघेला की ख्वाहिश है कि वो सूबे की सभी 182 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ें। सियासी लेनदेन में माहिर वाघेला ने भाजपा या कांग्रेस के साथ गलबहियां करने पर अब तक तो कोई खुलासा नहीं किया है लेकिन वो दोनों दलों के कई नेताओं के संपर्क में हैं।

फ्री एजुकेशन, नई शराब नीत‍ि सहित कई मुद्दों लेकर गुजरात की जनता के बीच में घूम रहे शंकर सिंह वाघेला भाजपा के विवादित नेता सुब्रमण्यम स्वामी और सपा के समर्थन से राज्यसभा पहुंचे सांसद कपिल सिब्बल के भी संपर्क में हैं। माना जा रहा है स्वामी और सिब्बल की मदद से वाघेला सूबे कि सियासत में कोई नई इबारत लिखने का प्रयास कर रहे हैं।

वैसे अगर साल 2017 के विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो शंकर सिंह वाघेला का ट्रैक रिकॉर्ड सत्ताधारी भाजपा के लिए कोई चुनौती भरा नहीं था। 2017 में शंकर सिंह वाघेला ने क्षेत्रीय पार्टी जन विकल्प बनाकर चुनाव लड़ा था। लेकिन गुजरात की जनता ने उन्हें सीधे तौर पर खारिज करते हुए एक फीसदी वोट भी नहीं दिया था और न ही उनकी पार्टी एक भी सीट पर जीत दर्ज कर सकी थी। हालांकि गनीमत यह थी कि शंकर सिंह वाघेला खुद चुनाव नहीं लड़े था अन्यथा उनकी भी राजनैतिक  प्रतिष्ठा पर चोट लगना तय माना जा रहा था।

अब साल 2022 के विधानसभा चुनाव में शंकर सिंह बाघेला की क्या स्थिति रहती है, यह तो आने वाले विधानसभा चुनाव के परिणाम से जाहिर होगा, लेकिन इतना तो तय है कि शंकर सिंह वाघेला के सियासी दस्तक से यह चुनाव भी दिलचस्प रहेगा।

Web Title: Gujarat Election 2022: How much will the bets of Shankar Singh Vaghela, who gave Narendra Modi banishment, be effective in Gujarat elections

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