ब्लॉग: डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता सुनिश्चित करे सरकार

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: May 14, 2024 16:19 IST2024-05-14T16:17:35+5:302024-05-14T16:19:31+5:30

डिब्बाबंद या पैकेटबंद खाद्य पदार्थों को भारतीय उपभोक्ता साफ-सुथरा, गुणवत्तापूर्ण, शुद्ध और सेहतमंद समझता है। लेकिन भारतीय उपभोक्ता मुगालते में हैं। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद खुद इन खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता को लेकर आशंकित है।

Government should ensure the quality of canned foods | ब्लॉग: डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता सुनिश्चित करे सरकार

फोटो क्रेडिट- (एक्स)

Highlightsभारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद खुद इन खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता को लेकर आशंकित हैरविवार को उपभोक्ताओं को आगाह किया गया कि वे सामान खरीदते वक्त डिब्बे या पैकेट पर लिखे ब्यौरे को अच्छे से पढ़ लें

भारत में डिब्बाबंद या पैकेटबंद खाद्य पदार्थ उपयोग के लिए कितने सुरक्षित हैं? यदि यह सवाल आम भारतीय उपभोक्ता से पूछा जाए तो वह यही कहेगा कि बहुत सुरक्षित। इसके पीछे उसकी सोच यह रहती है कि डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ बाजार में आने के पहले गुणवत्ता की कसौटी पर कसे जाते हैं। एक धारणा यह भी रहती है कि खुले में बिकने वाले खाद्य पदार्थ मिलावटी होते हैं और साफ-सुथरे नहीं होते। इसके अलावा खुले में बेचे जाने वाले खाद्य पदार्थों के बारे में यह भी पता नहीं होता कि उन्हें कितने दिन पहले बनाया गया था और उन्हें बनाने में शुद्ध चीजों का इस्तेमाल किया गया था या नहीं। 

डिब्बाबंद या पैकेटबंद खाद्य पदार्थों को भारतीय उपभोक्ता साफ-सुथरा, गुणवत्तापूर्ण, शुद्ध और सेहतमंद समझता है। लेकिन भारतीय उपभोक्ता मुगालते में हैं। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद खुद इन खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता को लेकर आशंकित है। रविवार को उसने उपभोक्ताओं को आगाह किया है कि वे सामान खरीदते वक्त डिब्बे या पैकेट पर लिखे ब्यौरे को अच्छे से पढ़ लें और जान लें कि संबंधित खाद्य पदार्थ में  कौन से तत्व  कितनी मात्रा में मिलाए गए हैं। परिषद का कहना है कि शुगरफ्री होने का दावा करनेवाले खाद्य पदार्थों में चर्बी की मात्रा तय मानकों के मुकाबले अधिक हो सकती है और जिन डिब्बाबंद फलों के रस को हम असली फलों का रस समझते हों, उसमें फलों का तत्व केवल 10 प्रतिशत हो। 

परिषद से संलग्न हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय पोषण संस्थान ने भी माना है कि डिब्बे या पैकेट पर दी गई सूचना भ्रामक भी हो सकती है। दोनों शीर्ष संस्थानों ने डिब्बाबंद पदार्थों पर प्राकृतिक शब्द के धड़ल्ले से प्रयोग पर भी चिंता जताई है और उपभोक्ताओं को आगाह करते हुए बताया है कि जिस खाद्य पदार्थ में रंग या स्वाद अथवा अन्य कोई कृत्रिम पदार्थ न मिलाया गया हो और जो रासायनिक प्रसंस्करण प्रक्रिया से न गुजरा हो, वही प्राकृतिक है। 

डिब्बाबंद पदार्थों को लेकर हाल ही में दो बड़े विवाद सामने आए. दो नामचीन भारतीय कंपनियों के डिब्बाबंद मसालों की बिक्री पर कुछ देशों में प्रतिबंध लगा दिया गया क्योंकि इन देशों की प्रयोगशाला में दोनों कंपनियों के मसालों में हानिकारक रासायनिक तत्व पाए गए। हालांकि दोनों कंपनियों ने अपना पक्ष स्पष्ट करने की कोशिश की, मगर उनके उत्पादों पर इन देशों ने प्रतिबंध नहीं हटाया। इसी तरह एक विश्वविख्यात कंपनी के भारत में उत्पादित शिशु आहार (बेबी फूड) की गुणवत्ता को लेकर भी सवाल खड़े हुए. जांच में पाया गया कि इस कंपनी के बेबी फूड में शर्करा की मात्रा तय मानकों से कहीं ज्यादा है। 

कुछ वर्ष  पूर्व द जॉर्ज इंस्टीस्ट्यूट ऑफ ग्लोबल हेल्थ नामक वैश्विक स्वयंसेवी संगठन ने 12 देशों में 40 लाख डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों के नमूने लिए और उनमें हर देश के कुछ प्रमुख डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों के नमूनों का परीक्षण किया। परीक्षण से पता चला कि भारतीय डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ तथा पेय सेहत के लिहाज से सबसे निचले पायदान पर हैं। विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र नामक एक प्रमुख भारतीय स्वयंसेवी संगठन ने भी दो वर्ष पूर्व एक रिपोर्ट  जारी की थी। उसमें कहा गया था कि भारत में बिकने वाले फास्ट फूड में नमक तथा चर्बी की मात्रा इतनी ज्यादा होती है कि वे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं।

पिछले तीन दशकों में भारत में शुगर, हृदय रोग, मोटापा जैसी बीमारियां तेजी से फैल रही हैं। चिकित्सकों का मत है कि डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों तथा पेय पदार्थों के सेवन का भी इसमें हाथ है। महानगरों में घर के अधिकांश सदस्य कामकाजी होने लगे हैं। उनके पास खाना बनाने के लिए समय नहीं होता। इससे भी डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का प्रचलन बढ़ रहा है।  सरकार ने मिलावट रोकने तथा गुणवत्ता के मानकों  का पालन सुनिश्चित करवाने के लिए जो एजेंसियां, संस्थान या विभाग बनाए हैं, वह अपनी भूमिका के साथ न्याय करने में विफल साबित हो रहे हैं। डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता सुनिश्चित करना सरकारी एजेंसियों का काम है, उपभोक्ता का नहीं।

Web Title: Government should ensure the quality of canned foods

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