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RTI में खुलासा: पिछले 5 सालों में सरकार ने प्रचार-प्रसार में हर माह खर्च किए औसतन 8.71 लाख रुपये

By भाषा | Updated: December 17, 2019 16:12 IST

सीआईसी से पिछले पांच वर्षों में सूचना के अधिकार कानून का प्रचार-प्रसार करने एवं जागरूकता पर हुए खर्च का ब्योरा मांगा था। आरटीआई कानून, 2005 की धारा 26 में प्रावधान है कि सरकार अपने संसाधनों का उपयोग कर जनता में, विशेषकर साधनहीन समुदायों में आरटीआई के प्रयोग के बारे में समझ बढ़ाने के लिए शैक्षणिक कार्यक्रम तैयार करे।

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ठळक मुद्देकेंद्रीय सूचना आयोग की 2018-19 के वार्षिक प्रतिवेदन के अनुसार, 2018-19 में कुल आरटीआई आवेदनों की संख्या 16 लाख 30 हजार 48 थी।इसके तहत इस उद्देश्य के लिये केंद्रीय लोक सूचना अधिकारियों के प्रशिक्षण की बात भी कही गई है ।

केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने सूचना के अधिकार के बारे में प्रचार- प्रसार करने और जागरूकता फैलाने के लिये पिछले पांच वर्षों में प्रति माह औसतन 8.71 लाख रूपये खर्च किये हैं। केंद्रीय सूचना आयोग के उप सचिव एस के रब्बानी ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी में बताया, ‘‘ आरटीआई के बारे में प्रचार प्रसार करने और इस बारे में जागरूकता फैलाने के लिये पिछले पांच वर्षों में सीआईसी द्वारा पांच करोड़ 23 लाख 12,000 रूपये खर्च किए गए।’’ इस प्रकार से यह खर्च प्रति माह औसतन आठ लाख 71 हजार 866 रुपये होता है । 

‘पीटीआई- भाषा’ ने सीआईसी से पिछले पांच वर्षों में सूचना के अधिकार कानून का प्रचार-प्रसार करने एवं जागरूकता पर हुए खर्च का ब्यौरा मांगा था। आरटीआई कानून, 2005 की धारा 26 में प्रावधान है कि सरकार अपने संसाधनों का उपयोग कर जनता में, विशेषकर साधनहीन समुदायों में आरटीआई के प्रयोग के बारे में समझ बढ़ाने के लिए शैक्षणिक कार्यक्रम तैयार करे। इसमें सार्वजनिक प्राधिकार को इस विषय पर सार्वजनिक कार्यक्रमों का आयोजन करने के लिये प्रोत्साहित करने की भी बात कही गई है । इसके तहत इस उद्देश्य के लिये केंद्रीय लोक सूचना अधिकारियों के प्रशिक्षण की बात भी कही गई है ।

वहीं, केंद्रीय सूचना आयोग की 2018-19 के वार्षिक प्रतिवेदन के अनुसार, 2018-19 में कुल आरटीआई आवेदनों की संख्या 16 लाख 30 हजार 48 थी, जबकि 2017-18 में यह संख्या 14 लाख 48 हजार 673 दर्ज की गई । 2015-16 में कुल आरटीआई आवेदनों की संख्या 11 लाख 65 हजार 217 दर्ज की गई थी । उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को केंद्र और राज्य सरकारों को सूचना का अधिकार अधिनियम के दुरुपयोग के संबंध में कहा था कि इसके नियमन के लिए कुछ दिशा-निर्देश बनाने की आवश्यकता है।

पीठ ने कहा था, ‘‘जिन लोगों का किसी मुद्दे विशेष से किसी तरह का कोई सरोकार नहीं होता है, वे भी आरटीआई दाखिल कर देते हैं। यह एक तरह से आपराधिक धमकी जैसा है, जिसे ब्लैकमेल भी कहा जा सकता है। हम सूचना के अधिकार के खिलाफ नहीं हैं लेकिन दिशा-निर्देश बनाने की जरूरत है।’’ बहरहाल, केंद्रीय सूचना आयोग के वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, 2018-19 में प्राप्त सूचना आवेदनों की संख्या की तुलना में अस्वीकार किये गए आवेदनों का प्रतिशत 4.7 था, जबकि 2017-18 में यह 5.13 % दर्ज किया गया । वर्ष 2016-17 में प्राप्त सूचना आवेदनों की संख्या की तुलना में अस्वीकार किये गए आवेदनों का प्रतिशत 6.59 था ।

सरकार ने हाल ही में सम्पन्न संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में जानकारी दी थी कि केंद्रीय सूचना आयोग के पास 33,000 से अधिक शिकायतें और अपीलें लंबित हैं । कार्मिक राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने एक प्रश्न के लिखित जवाब में कहा था " केंद्रीय सूचना आयोग में 28 नवंबर 2019 तक 33,487 अपीलें, शिकायतें लंबित थीं।" उन्होंने यह भी कहा था कि सरकार ने एक वेब पोर्टल शुरू किया है, जहां लोग सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत जानकारी हासिल करने के लिए ऑनलाइन आवेदन दर्ज कर सकते हैं। 

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