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Flashback 2019: भाजपा व शिवसेना गठबंधन टूटा, उद्धव ठाकरे बने सीएम, महाराष्ट्र में फड़नवीस दूसरे मुख्यमंत्री

By भाषा | Updated: December 27, 2019 17:15 IST

राज्य में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में दोनों भगवा पार्टियों भाजपा व शिवसेना ने अपना दम खम दिखाया। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और राकांपा ने खराब प्रदर्शन किया। वहीं, भाजपा ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जब इन दोनों दलों के कई शीर्ष नेताओं को अपने पाले में कर लिया, तब उनकी (कांग्रेस और राकांपा) की स्थिति और कमजोर हो गई।

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ठळक मुद्देफड़नवीस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार के बीच जुबानी जंग देखने को मिली।फड़नवीस कांग्रेस के वसंतराव नाइक के बाद पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बन गए।

महाराष्ट्र की राजनीति में यह वर्ष जोर- आजमाइश और अप्रत्याशित गठबंधन का रहा। राज्य में कांग्रेस और राकांपा के समर्थन से शिवसेना ने आखिरकार मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल कर ली और उसके पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे इस पद पर आसीन वाले ‘ठाकरे’ परिवार के पहले व्यक्ति बन गए।

राज्य में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में दोनों भगवा पार्टियों भाजपा व शिवसेना ने अपना दम खम दिखाया। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और राकांपा ने खराब प्रदर्शन किया। वहीं, भाजपा ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जब इन दोनों दलों के कई शीर्ष नेताओं को अपने पाले में कर लिया, तब उनकी (कांग्रेस और राकांपा) की स्थिति और कमजोर हो गई।

अक्टूबर में हुए विधानसभा चुनव में तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार के बीच जुबानी जंग देखने को मिली। दोनों नेताओं ने अपने-अपने उम्मीदवारों के पक्ष में चुनाव प्रचार करने के लिए समूचे प्रदेश का दौरा किया। भाजपा और शिवसेना के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन के आधार पर फड़नवीस के एक और कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री बनने की संभावना बनी। गौरतलब है कि इससे पहले फड़नवीस कांग्रेस के वसंतराव नाइक के बाद पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बन गए।

हालांकि, विधानसभा चुनाव के नतीजों की घोषणा के बाद चले लंबे राजनीतिक घटनाक्रम में पुराने गठबंधन टूटते और नये समीकरण बनते दिखे। शिवसेना ने भाजपा से नाता तोड़ते हुए कांग्रेस और राकांपा के समर्थन से सरकार बनाई।

शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस की महाराष्ट्र विकास आघाड़ी सरकार राज्य में संक्षिप्त अवधि के लिए लिए लगे राष्ट्रपति शासन के बाद गठित हुई क्योंकि विधानसभा चुनाव के बाद चली लंबी जद्दोजहद के बाद बनी देवेंद्र फड़नवीस-अजीत पवार सरकार तीन दिन ही चल पाई थी।

राज्य में दिलचस्प राजनीतिक घटनाक्रम देखने को मिला। दरअसल, उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना ने बार-बार इस बात पर जोर दिया था कि विधानसभा चुनाव के बाद सत्ता में भगवा गठबंधन के लौटने पर सत्ता में बराबर की साझेदारी हो। लेकिन फड़नवीस ने चुनाव के बाद इस बात से स्पष्ट रूप से इनकार किया कि ऐसा कोई फैसला लिया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने इस बारे में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से बात की, जिन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री पद साझा करने को लेकर ऐसा कोई फैसला नहीं लिया गया है।

इस बात ने उद्धव ठाकरे को अलग राह चुनने के लिए मजबूर कर दिया। ठाकरे ने कहा, ‘‘भाजपा उन्हें झूठा बता रही है। हम ऐसी पार्टी से कोई संबंध नहीं रखना चाहते जो अपने सहयोगी को झूठा बताने की कोशिश कर रही है।’’ इस बात ने दोनों भगवा दलों के बीच समझौते की बची-खुची गुंजाइश भी खत्म कर दी। भाजपा विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी लेकिन 2014 के चुनाव की तुलना में उसकी सीटों की संख्या 122 से घट कर 105 पर आ गई।

उत्तर प्रदेश के बाद सबसे बड़े राज्य महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 और विधानसभा की 288 सीटें हैं। विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव पूर्व गठबंधन पर चर्चा के लिए शाह मातोश्री गए थे, जो ठाकरे का आवास है। दोनों भगवा दलों के बीच रस्साकशी 2014 से ही चल रही थी, जब राज्य में भाजपा के सरकार बनाने के एक महीने बाद शिवसेना उसमें शामिल हुई थी। फड़णवीस सरकार में कनिष्ठ साझेदार होने के बावजूद शिवसेना ने विभिन्न मुद्दों पर सरकार की आलोचना कर विपक्ष की भी भूमिका निभाई।

पिछले साल जनवरी में शिवसेना ने यह घोषणा की थी कि वह भाजपा के साथ सारे संबंध तोड़ रही है और 2019 का लोकसभा चुनाव तथा महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेगी। हालांकि, दोनों भगवा दल अपने मतभेदों को दूर कर लोकसभा चुनाव के लिए एकजुट हो गए और जिसके बाद भाजपा 2014 के आमचुनाव से भी बड़े जनादेश के साथ केंद्र की सत्ता में लौटी।

लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सीट बंटवारे के फार्मूले के तहत शिवसेना को 24 सीटें दी थी जो 2014 के चुनाव से चार सीटें अधिक थी। वर्ष 2014 में भी दोनों दलों ने विधानसभा चुनाव अपने-अपने बूते लड़ा था। भाजपा ने तब 122 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी होने के आधार पर सरकार बनाई थी। वहीं, शिवसेना एक महीने बाद सरकार में शामिल हुई थी, जिसने 63 सीटों पर जीत दर्ज की थी। अजीत पवार के लिए भी यह साल खास रहा क्योंकि सिंचाई घोटाले में एसीबी ने उन्हें क्लीन चिट दे दी। 

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