#KisanLongMarch: मुंबई पहुंचे आदिवासी किसानों के लिए 'कर्जमाफी' से ज्यादा जरूरी है ये मांग

By आदित्य द्विवेदी | Published: March 12, 2018 11:58 AM2018-03-12T11:58:13+5:302018-03-12T11:58:13+5:30

सरकार ने 2006 में फॉरेस्ट राइट्स एक्ट (FRA) बनाया था जिसमें आदिवासी किसानों को जंगल के अधिकार दिए गए। एक्ट बनाए जाने के 12 साल बाद भी नहीं हो सका प्रभावी क्रियान्वयन। जानें इसके बारे में पूरी जानकारी...

Farmers protest in Mumbai, Forest Rights acts implementation and other demands | #KisanLongMarch: मुंबई पहुंचे आदिवासी किसानों के लिए 'कर्जमाफी' से ज्यादा जरूरी है ये मांग

#KisanLongMarch: मुंबई पहुंचे आदिवासी किसानों के लिए 'कर्जमाफी' से ज्यादा जरूरी है ये मांग

Highlightsब्रिटिश शासन ने 1850 में एक कानून पास किया जिसमें आदिवासियों के जमीन और संसाधनों पर आदिवासियों के पारंपरिक अधिकार छीन लिए। आदिवासियों को उनका हक दिलाने कि लिए केंद्र सरकार ने 2006 में फॉरेस्ट राइट्स एक्ट पारित किया था।एक्ट लागू किए जाने के 12 साल बाद भी आदिवासी किसानों को अपने अधिकारों का इंतजार है।

मुंबई, 12 मार्च: अखिल भारतीय किसान सभा के बैनर तले करीब 35 हजार लोगों का 'लाल हुजूम' विधानसभा का घेराव करने के लिए मुंबई के आजाद मैदान पहुंच चुका है। इस बार मराठवाड़ा के किसानों और आदिवासियों ने आर-पार की लड़ाई का मन बना लिया है। किसानों का कहना है कि जबतक उनकी सभी मांगें नहीं मान ली जाती वो वापस नहीं जाएंगे। प्रदर्शनकारी लोगों में बड़ी संख्या आदिवासी किसानों की है। इनके लिए कर्जमाफी, बिजली बिल माफी, फसलों के समर्थन मूल्य से भी ज्यादा महत्वपूर्ण मांग अपने जमीनों पर हक पाने की है। केंद्र सरकार ने 2006 में फॉरेस्ट राइट्स एक्ट पारित किया था। एक्ट लागू होने के 12 साल बाद भी अधिकांश आदिवासी किसानों को उनका अधिकार नहीं मिला है। (यह भी पढ़ेंः- मुंबई में किसानों का प्रदर्शन LIVE: आजाद मैदान पहुंचा 'लाल हुजूम', सीएम फडणवीस बातचीत को तैयार)

क्या है फॉरेस्ट राइट्स एक्ट (FRA)?

फॉरेस्ट राइट्स एक्ट 2006 में पारित हुआ था। ये एक्ट पूरी तरह से जंगल पर आश्रित आदिवासी किसानों को जमीन पर उनका मालिकाना हक देने के लिए लाया गया था। दरअसल, ये आदिवासी किसान उस जमीन में रहते थे, खेती-किसानी करते थे लेकिन जमीन वन विभाग के पास थी। वन विभाग के अधिकारी कभी भी जाकर इन आदिवासी किसानों को परेशान करते थे और जमीन से भगा देते थे। इसे खत्म करने के लिए कांग्रेस सरकार ने एफआरए पारित कराया। इसे 2008 में लागू कर दिया गया। लागू किए जाने के 10 साल भी इस एक्ट का प्रभावी क्रियान्वयन नहीं हो सका है। इसी को लेकर आदिवासी किसानों में आक्रोश है और वो सड़कों पर उतर आए हैं।

फॉरेस्ट राइट्स एक्ट, 2006 की जरूरत क्यों पड़ी?

भारत पर लंबे समय तक अंग्रेजों का शासन रहा है। अपने तीन सदी के शासनकाल में उन्होंने भारतीय संपदाओं के दोहन में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। औपनिवेशक शासन में अंग्रेज सभी प्रकार की प्राकृतिक और खनिज संपदाओं पर वहां रहे रहे लोगों और आदिवासियों के हक को नजरअंदाज करते रहे। ब्रिटिश शासन ने 1850 में एक कानून पास किया जिसमें आदिवासियों के जमीन और संसाधनों पर आदिवासियों के पारंपरिक अधिकार छीन लिए। 

आजादी के बाद भारत सरकार ने भी कमोबेश वही नजरिया अपनाया। आदिवासी किसानों को अपना अधिकार पाने के लिए जो 60 साल इंतजार करना पड़ा। 2006 में कानून तो बन गया लेकिन अधिकांश लोगों के अधिकार पाने का इंतजार अभी भी जारी है। जमीनों का अधिकार अभी भी वन विभाग के कुछ अधिकारियों के हाथ में है। इससे जंगल को भी नुकसान पहुंच रहा है और उससे जुड़े लोगों को भी!

क्यों लागू नहीं हो सका फॉरेस्ट राइट्स एक्ट?

फॉरेस्ट राइट्स एक्ट 2008 में लागू हुआ था लेकिन इसके प्रभावी क्रियान्वयन की रफ्तार काफी धीमी है। इसके लिए एक्ट में किए गए प्रावधान और प्रशासनिक अधिकारी जिम्मेदार माने जा रहे हैं। एक्ट में कहा गया है कि जंगल की जमीन उसी को दी जाएगी जो जीवकोपार्जन के लिए पूरी तरह से उसी भूमि पर निर्भर है। इसके अलावा  यह भी साबित करना होगा कि उसके पूर्वज वहां 75 सालों से रह रहे हैं। यहां समस्या आती है कि आदिवासी किसान कैसे साबित करे कि उसके पूर्वज उसी जमीन पर 75 सालों से रहते आ रहे हैं। जमीन की मंजूरी के लिए तीन स्तर बनाए गए हैं जिसमें ग्राम सभा, तालुका और जिला प्रशासन शामिल हैं। यहां भी बड़ी लापरवाही है।

प्रदर्शनकारी किसानों की अन्य मांगें

1. कर्जमाफी

प्रदर्शनकारी किसानों ने बीजेपी सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि राज्य सरकार ने 2017 में 34 हजार करोड़ रुपये के कर्जमाफी की घोषणा की थी। इससे 89 लाख किसानों को फायदा पहुंचना था। मार्च 2018 तक सिर्फ 13,782 करोड़ रुपये ही जारी किए जा सके और 89 लाख की बजाय 36 लाख किसान ही लाभान्वित हुए। सभी किसानों तक फायदा पहुंचे ये किसानों की बड़ी मांग है।

2. स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशें

किसानों की मांग है कि किसानों की हालात सुधारने के लिए स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशें स्वीकार की जाए। 2004 में प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई थी। इस कमेटी ने 2006 में किसानों की हालत सुधारने के लिए अपनी सिफारिशें दी थी। इन पर आजतक किसी भी सरकार ने सीधे तौर पर अमल नहीं किया है।

3. किसानों के लिए पेंशन

किसानों का मानना है कि उनका काम किसी भी मायने में किसी अन्य से कमतर नहीं है। लेकिन बुढ़ापे में जब उनके शरीर में ताकत नहीं बचती तो भुखमरी में गुजारा करना पड़ता है। ऐसे में किसानों की मांग है कि उन्हें भी पेंशन दी जाए।

इसके अलावा किसान बिजली बिल माफी, फसलों का उचित समर्थन मूल्य देने की भी मांग कर रहे हैं।

Web Title: Farmers protest in Mumbai, Forest Rights acts implementation and other demands

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