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किसान छुट्टी मनाने के लिए नहीं बल्कि सरकार से जवाब मांगने के लिए बैठे हैं : हन्नान मुल्ला

By भाषा | Updated: December 27, 2020 20:09 IST

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(अनन्या सेनगुप्ता)

नयी दिल्ली, 27 दिसम्बर किसान नेता हन्नान मुल्ला ने रविवार को कहा कि दिल्ली बॉर्डर पर किसान कोई ‘‘छुट्टी’’ मनाने के लिए नहीं बल्कि अपनी शिकायतों पर केंद्र से जवाब मांगने के लिए बैठे हैं। मुल्ला ने साथ ही 29 दिसम्बर को बातचीत को लेकर उनके प्रस्तावों पर प्रतिक्रिया की कमी के लिए सरकार की आलोचना की।

मुल्ला ने दावा किया कि केंद्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसान समूहों ने 29 दिसंबर को पूर्वाह्न 11 बजे सरकार के साथ एक बैठक का प्रस्ताव रखा है, लेकिन सरकार की ओर से उन्हें अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है। इससे पहले, किसान यूनियनों और सरकार के बीच पांच दौर की बातचीत गतिरोध तोड़ने में विफल रही है।

ऑल इंडिया किसान सभा (एआईकेएस) के महासचिव मुल्ला ने कहा, ‘‘कड़ाके की ठंड झेल रहे हजारों किसान जो सीमाओं पर इकट्ठे हुए हैं, वे यहां छुट्टी मनाने के लिए नहीं हैं। सरकार ने अब तक कहा था कि हम कोई बैठक नहीं चाहते, अब जब हम विशेष रूप से उन्हें बता चुके हैं कि बैठक कब, कहां और किस तरह से होगी, उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आया है। अब, यह लोगों को तय करना है कि झूठे कौन हैं। हम स्वीकार करते हैं कि सरकार के साथ बातचीत के बिना कोई समाधान नहीं हो सकता है।’’

मुल्ला ने कहा कि किसान यूनियनों ने 29 दिसंबर की बैठक के लिए चार विशिष्ट वार्ता बिंदु प्रस्तावित किए हैं - सरकार तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने और फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी अधिकार बनाने की प्रक्रिया के बारे में बताये, प्रदूषण से संबंधित मामलों में गिरफ्तार पंजाब के किसानों की रिहाई हो और बिजली संशोधन विधेयक को वापस ले।

माकपा मोलित ब्यूरो के सदस्य 76 वर्षीय मुल्ला ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हालांकि सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, वे आंदोलन पर एक एजेंडे को आगे बढ़ाने में व्यस्त हैं जो कि कभी भी शुरू करने के लिए हमारा नहीं था। किसान संघर्ष का हिस्सा उन 500 संगठनों में से लगभग 10-11 वामपंथी झुकाव वाले होंगे। वे चाहते हैं कि लोग यह मानें कि करोड़ों लोग वामपंथी दलों के आह्वान का जवाब दे रहे हैं। अगर यह सच होता, तो हमारे पास एक क्रांति होती।’’

मुल्ला पश्चिम बंगाल के उलुबेरिया सीट से आठ बार के सांसद रह चुके हैं। वह भूमि अधिग्रहण कानून और मध्य प्रदेश के मंदसौर में किसानों के विरोध प्रदर्शन का हिस्सा रह चुके हैं। वह अब तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन के सबसे प्रमुख चेहरों में से एक के तौर पर उभरे हैं।

वहीं सरकार ने वाम दलों पर किसान विरोध प्रदर्शन का समर्थन अपने एजेंडे के लिए करने का आरोप लगाते हुए निशाना साधा है। हालांकि मुल्ला और अन्य किसान नेताओं ने इस आरोप का दृढ़ता से खंडन किया है।

मुल्ला ने आरोप लगाया कि ये झूठ सरकार द्वारा आंदोलन को अलग-थलग करने के लिए फैलाया जा रहा है और कहा कि कोई भी राजनीतिक दल कभी भी किसानों के विरोध प्रदर्शन का हिस्सा नहीं रहा है और न ही कभी उनसे इस पर सलाह ली गई।

उन्होंने कहा, ‘‘सरकार गोएबेल्स के पोते की तरह बात कर रही है (जोसेफ गोएबल्स एक जर्मन नाजी राजनीतिज्ञ थे) .... इसको लेकर मुझे उद्धृत करें। हमने बार-बार कहा है कि हमने किसी भी राजनीतिक पार्टी को हमारे आंदोलन को संचालित करने अनुमति नहीं दी है। जब हमने अपना विरोध प्रदर्शन शुरू किया तब किसी भी राजनीतिक दल से सलाह नहीं ली गई। यह किसान आंदोलन को लोगों के सामने अलग-थलग करने का एक तरीका है।’’

यह पूछे जाने पर कि क्या महीनों के संघर्ष के बाद प्रदर्शनकारी किसानों और उनके नेताओं के बीच निराशा की भावना उत्पन्न हुई है तो मुल्ला ने कहा कि आंदोलन आम किसानों द्वारा चलाया जा रहा है और नेता उनका अनुसरण कर रहे हैं।

पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश और कुछ अन्य राज्यों के हजारों किसान तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली के विभिन्न सीमा बिंदुओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

तीन कृषि कानूनों को केंद्र सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में बड़े सुधारों के रूप में पेश किया गया है जो बिचौलियों को दूर करेगा और किसानों को अपनी उपज देश में कहीं भी बेचने की अनुमति देगा।

हालांकि, प्रदर्शनकारी किसानों ने यह आशंका व्यक्त की है कि नए कानून न्यूनतम समर्थन मूल्य की सुरक्षा और मंडी प्रणाली को खत्म करने का मार्ग प्रशस्त करेंगे तथा उन्हें बड़े कॉर्पोरेट की दया पर छोड़ देंगे।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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