चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने ऑनर किलिंग पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, "जाति और धर्म के बंधनों से बाहर विवाह करने पर क्यों मिलती है मौत की सजा?"

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: December 18, 2022 06:27 PM2022-12-18T18:27:48+5:302022-12-18T18:30:42+5:30

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने ऑनर किलिंग पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आखिर क्यों हर साल देश में सैकड़ों युवाओं को ऑनर किलिंग का शिकार होना पड़ता है? यह किस तरह के सामाजिक बंधन हैं, जिसमें परिवार के खिलाफ जाकर अपनी पसंद से शादी करने वालों को मौत की सजा मिलती है।

Expressing concern over honor killings, Chief Justice DY Chandrachud said, "Why is death punishable for marrying outside caste and religion?" | चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने ऑनर किलिंग पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, "जाति और धर्म के बंधनों से बाहर विवाह करने पर क्यों मिलती है मौत की सजा?"

फाइल फोटो

Highlightsचीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने देश में बढ़ती ऑनर किलिंग की घटनाओं पर गहरी चिंता व्यक्त की आखिर क्यों हर साल देश में सैकड़ों युवाओं को ऑनर किलिंग का शिकार होना पड़ता है?यह कैसा सामाजिक बंधन हैं, जिसमें परिवार के खिलाफ शादी करने पर मिलती है मौत की सजा

मुंबई: सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने देश में बढ़ती ऑनर किलिंग पर चिंता करते हुए प्रश्न खड़ा किया है कि आखिर जाति और धर्म के बंधनों से परे जाकर विवाह करने वाले जोड़ों की सम्मान और इज्जत के नाम पर क्यों हत्या कर दी जा रही है। उन्होंने कहा कि यह बेहद गंभीर विषय है कि देश में सैकड़ों युवाओं को हर साल ऑनर किलिंग का शिकार होना पड़ता है क्योंकि वो परिवार के खिलाफ जाकर अपनी पसंद से शादी करते हैं या पिर वे दूसरी जाति या धर्म के पार्टनर का चयन करते हैं, उनसे प्यार करते हैं।

मुख्य न्यायाधीश ने यह महत्वपूर्ण प्रश्न शनिवार को मुंबई में आयोजित पूर्व अटॉर्नी जनरल अशोक देसाई के स्मृति व्याख्यान में खड़ा किया। व्याख्यान के विषय 'कानून और नैतिकता' विषय पर बेलते हुए उन्होंने नैतिकता से जुड़े समलैंगिकता को अपराध बनाने वाली धारा 377, मुंबई के बार में नाचने पर लगाई जाने वाली रोक, वेश्यावृत्ति आदि कई ऐसे मसलों का जिक्र किया, जिनमें तय होने वाले आचार संहिता और नैतिकता के मानदंड के कारण एक कमजोर वर्ग को काफी कुछ झेलना पड़ता है।

उन्होंने कहा, "कमजोर और हाशिए पर रहने वालों के पास अपने अस्तित्व को बचाने के लिए पेश की जा रही संस्कृति के सामने आत्मसमर्पण करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है। वह दमनकारी समूहों के हाथों अपमान, तिरस्कार और अलगाव के कारण इतने कमजोर होते हैं कि थोपी जा रही संस्कृति के खिलाफ किसी भी तरह की काउंटर संस्कृति बनाने में असमर्थ होते हैं।"

सीजेआई चंद्रचूड़ ने अपने संबोधन में आगे कहा, "ऐसे कमजोर समूह को विकसित करने, उनमें आत्मविश्वास भरने के लिए, उन्हें और भी शक्तिशाली बनाने के लिए सरकारी समूहों द्वारा प्रयास किया जाना चाहिए। जिससे उनमें आत्मविश्वास पैदा हो और वो भी प्रगति के रास्ते पर चल सकें, जो आज भी सामाजिक संरचना की दृष्टि से काफी निचले पायदान पर संघर्ष कर रहे हैं।"

उन्होंने कहा, "क्या मेरे लिए जो सही है, वह आपके लिए सही नहीं है?' आखिर क्यों सम्मान के नाम पर सहमति के आधार पर एक हुए बालिगों की हत्याएं होती हैं।" इस मौके पर उन्होंने साल 1991 में यूपी में ऑनर किलिंग के नाम पर हुई एक पंद्रह साल की बच्ची की हत्या का जिक्र करते हुए कहा, "उस केस में परिजनों ने अपराध करना स्वीकार किया और उनके तरीके से किया गया बर्बर कार्य स्वीकार्य और न्यायोचित था क्योंकि वे उस समाजिक बंधनों में बंधे थे, जहां उसे सही ठहराया जा रहा था। लेकिन दूसरी ओर यह प्रश्न भी खड़ा होता है कि क्या वह सामाजिक बंधन या आचार संहिता तर्कसंगत लोगों द्वारा रखा गया? अगर नहीं तो क्या इसे रोकने के लिए समझदार लोग आगे आएंगे?"

चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "ऐसा हर साल होता है कि वैसे सैकड़ों लोग जो किसी दूसरी जाति या परिवार के लड़के या लड़की से प्रेम करते हैं, उन्हें समाज में तिरस्कृत किया जाता है और अगर वो समाज-परिवार के खिलाफ जाकर प्यार या शादी करते हैं, तो उनकी हत्याएं हो जाती हैं।"

उन्होंने कहा कि समाज की नैतिकता अक्सर प्रभावशाली समूहों द्वारा तय की जाती है। इसमें हमेशा से कमजोर और हाशिए पर रहने वाले समूहों के सदस्यों का प्रभावशाली सदस्यों द्वारा शोषण किया जाता है और यही कारण है कि कमजोर तबके के उत्पीड़न के कारण एकता और प्रेम की संस्कृति नहीं पनप पाती है।

चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अक्सर समाज के वंचित तबके के लिए नैतिकता की कसौटी समाज का सबसे ताकतवर तबका तय करता है। जिसमें न चाहकर भी कमजोर लोगों को ऐसे लोगों के सामने झुकना पड़ता है। उन्होंने आगे कहा कि कैसे संविधान बनने के बाद भी प्रभावशाली समुदाय के गढ़े नियम लागू हैं।

समलैंगिकता के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि कोर्ट ने इस अन्याय को ठीक किया है। चीफ जस्टिस ने कहा, “भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 सदियों पुरानी नैतिकता पर आधारित है। संवैधानिक नैतिकता व्यक्तियों के अधिकारों पर केंद्रित है। इसलिए यह उन्हें समाज की प्रमुख नैतिक अवधारणाओं से बचाता है।”

संविधान पीठ द्वारा वैश्यावृति से संबंधित धारा 497 को रद्द किये जाने के संबंध में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की बेंच सर्वसम्मति से आईपीसी की धारा 497 को रद्द किया, जो वेश्यावृत्ति को दंडनीय अपराध बनाता था। उन्होंने कहा, “प्रगतिशील संविधान के मूल्य हमारे मार्गदर्शक बल के रूप में कार्य करते हैं। वे यह स्पष्ट करते हैं कि संविधान हम सभी के व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन से अटूट रूप से जुड़ा हुआ है।"

Web Title: Expressing concern over honor killings, Chief Justice DY Chandrachud said, "Why is death punishable for marrying outside caste and religion?"

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