करगिल युद्ध: 24 साल बाद भी अनफूटे गोले नहीं छोड़ रहे है स्थानियों का साथ, इस कारण पिछले 16 वर्षों में 350 से भी अधिक कश्मीरियों की गई जान
By सुरेश एस डुग्गर | Updated: April 18, 2023 12:50 IST2023-04-18T12:41:42+5:302023-04-18T12:50:54+5:30
अधिकारियों ने इसे माना है कि कश्मीर में भी आतंकियों के साथ होने वाली मुठभेड़ों के बाद पीछे छूटे गोला-बारूद को एकत्र करने की होड़ में मासूम कश्मीरी भी मारे जा रहे हैं। पिछले 16 सालों के भीतर ऐसे गोला-बारूद में हुए विस्फोट 350 जानें ले चुके हैं जबकि कई जख्मी हो चुके हैं और कई जिन्दगी और मौत से जूझ रहे हैं।

फोटो सोर्स: ANI (प्रतिकात्मक फोटो)
जम्मू: करीब 24 साल पहले हुए करगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान द्वारा जब करगिल कस्बे को बमों की बौछार से पाट दिया गया था तो उनसे बचने की खातिर करगिलवासियों ने कस्बे को खाली कर दिया था। तब दागे गए और अनफूटे बम अब भी करगिलवासियों को दर्द दे रहे हैं। दो दिन पहले ऐसे ही एक बम के विस्फोट से एक 13 साल के बच्चे की मौत हो गई थी और दो जख्मी हो गए थे। इस घटना के बाद भी इन अनफूटे बमों का डर इसलिए कम नहीं हो पाया है क्योंकि दो दिनों में 7 ऐसे जिन्दा और अनफूटे बमों की 24 साल के बाद बरामदगी ने दहशत फैला दी है।
क्या है पूरा मामला
दरअसल परसों करगिल के कुरबाथांग एस्ट्रोटर्फ फुटबाल मैदान के पास एक अनफूटे मोर्टार के विस्फोट में एक बच्चे की मौत के बाद लद्दाख के उपराज्यपाल बीडी मिश्रा द्वारा आदेश दिए जाने के उपरांत इलाके में खोज का कार्य चला तो कल रात तक 7 अनफूटे गोले बरामद कर उन्हें नष्ट कर दिया गया था। करगिल युद्ध के 24 सालों के बाद सात ऐसे अनुफूटे गोले मिलने से करगिलवासियों में अब दहशत का माहौल है क्योंकि उन्हें लगता है कि अभी भी कई इलाकों में ऐसे सैंकड़ों अनफूटे गोले हो सकते हैं।
फिर से प्रभावित इलाकों में सेना चलाएगी तलाशी अभियान
दरअसल करगिल कस्बा पाक सेना की मारक दृष्टि में है। कस्बा नीचे है और पहाड़ी पर पाक सेना काबिज है। ऐसे में 1999 के युद्ध में उसने करगिल को शमशान बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। ऐसे में एक बार फिर करगिल के उन क्षेत्रों में सेना के साथ मिल कर नागरिक प्रशासन तलाशी अभियान चलाने वाला है जहां पाक सेना द्वारा दागे गए गोलों के मिलने की संभावना है और जो इन 24 सालों में फूटे नहीं हैं।
पिछले 16 सालों में अनफूटे विस्फोटक ने लिए 350 से भी अधिक जानें
यही नहीं कश्मीर वादी में भी मुठभेड़स्थलों पर भी ऐसे अनफूटे विस्फोटक कश्मीरियों की जान के दुश्मन बने हुए हैं जो पिछले 16 सालों में 350 से अधिक की जान ले चुके हैं। अधिकारियों ने इसे माना है कि कश्मीर में भी आतंकियों के साथ होने वाली मुठभेड़ों के बाद पीछे छूटे गोला-बारूद को एकत्र करने की होड़ में मासूम कश्मीरी भी मारे जा रहे हैं। पिछले 16 सालों के भीतर ऐसे गोला-बारूद में हुए विस्फोट 350 जानें ले चुके हैं जबकि कई जख्मी हो चुके हैं और कई जिन्दगी और मौत से जूझ रहे हैं।
सबसे अधिक बच्चे हुए है प्रभावित
16 सालों के अरसे के भीतर ऐसे विस्फोटों में मरने वाले अधिकतर बच्चे ही थे। यही नहीं कुछ युवक और महिलाएं भी इसलिए मारी गईं क्योंकि बच्चे मुठभेड़स्थलों से उठा कर लाए गए बमों को तोड़ने का असफल प्रयास घरों के भीतर कर रहे थे। ऐसे विस्फोटों ने न सिर्फ मासूमों का जान लिया बल्कि कई आज भी उस दिन को याद कर सिंहर उठते हैं जब उनके द्वारा उठा कर लाए गए बमों ने उन्हें अपंग बना दिया था।