एल्गार परिषद मामला: तीन साल बाद मुंबई के बाइकुला जेल से रिहा हुईं कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज
By विशाल कुमार | Published: December 9, 2021 02:23 PM2021-12-09T14:23:24+5:302021-12-09T14:32:09+5:30
एल्गार परिषद मामले में तीन साल से अधिक समय से जेल में बंद वकील और अधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज मीडिया से बात नहीं कर पाएंगी क्योंकि एनआईए की विशेष अदालत ने उनकी जमानत की शर्तों में यह भी एक शर्त रखी है।
मुंबई: एल्गार परिषद मामले में तीन साल से अधिक समय से जेल में बंद वकील और अधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को गुरुवार को मुंबई के बाइकुला जेल से रिहा कर दिया गया।
हालांकि, भारद्वाज मीडिया से बात नहीं कर पाएंगी क्योंकि एनआईए की विशेष अदालत ने उनकी जमानत की शर्तों में यह भी एक शर्त रखी है।
#WATCH | Advocate-activist Sudha Bharadwaj, an accused in Bhima Koregaon case, released from Byculla jail in Mumbai pic.twitter.com/IDyq3ItsUr
— ANI (@ANI) December 9, 2021
1 दिसंबर को बॉम्बे हाईकोर्ट ने भारद्वाज को डिफॉल्ट जमानत दी थी क्योंकि गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत उनकी हिरासत एक सत्र अदालत द्वारा बढ़ा दी गई थी जिसके पास ऐसा करने की कोई शक्ति नहीं थी।
इसके बाद एनआईए ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी लेकिन मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने एजेंसी की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसे जमानत देने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला।
हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार, बुधवार को विशेष एनआईए अदालत ने 50 हजार रुपये के नकद बॉन्ड पर भारद्वाज को रिहा करने का आदेश दिया था। अदालत ने उन्हें जमानत देते हुए 16 शर्तें रखी हैं।
भारद्वाज को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून के प्रावधानों के तहत अगस्त 2018 में एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में गिरफ्तार किया गया था।
भारद्वाज मामले में उन 16 कार्यकर्ताओं और विद्वानों में पहली आरोपी हैं जिन्हें तकनीकी खामी के आधार पर जमानत दी गयी है। कवि-कार्यकर्ता वरवरा राव फिलहाल मेडिकल जमानत पर बाहर हैं। फादर स्टेन स्वामी की इस साल 5 जुलाई को मेडिकल जमानत का इंतजार करते हुए एक निजी अस्पताल में मौत हो गई थी।
वहीं, बॉम्बे हाईकोर्ट ने आठ अन्य आरोपियों वरवरा राव, सुधीर धावले, वर्नोन गोंजाल्विस, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन, महेश राउत और अरुण फरेरा द्वारा दायर डिफॉल्ट जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया था।
यह मामला 31 दिसंबर 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में एल्गार परिषद की संगोष्ठी में भड़काऊ भाषण देने से जुडा है। पुलिस का दावा है कि इसके अगले दिन पुणे के बाहरी इलाके कोरेगांव-भीमा में भाषण की वजह से हिंसा भड़की। पुलिस का यह भी दावा है कि इस संगोष्ठी को माओवादियों का समर्थन हासिल था। बाद में इस मामले की जांच एनआईए को सौंप दी गई थी।