'जहां हुए बलिदान मुखर्जी वो कश्मीर हमारा है' आखिर क्यों लगाया जाता है ये नारा, क्या है इसके पीछे की सच्चाई?

By पल्लवी कुमारी | Published: June 23, 2018 08:14 AM2018-06-23T08:14:25+5:302018-06-23T08:38:47+5:30

'जहाँ हुए बलिदान मुखर्जी , वो कश्मीर हमारा है , वो कश्मीर हमारा है , वो सारा का सारा है'। बीजेपी के अनुसार डॉ . मुखर्जी को याद करने का सबसे बड़ा कारण है जम्मू कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय की माँग को लेकर उनके द्वारा दिया गया बलिदान-

DR.Shayama Prasad Mukharjee death anniversary special story | 'जहां हुए बलिदान मुखर्जी वो कश्मीर हमारा है' आखिर क्यों लगाया जाता है ये नारा, क्या है इसके पीछे की सच्चाई?

'जहां हुए बलिदान मुखर्जी वो कश्मीर हमारा है' आखिर क्यों लगाया जाता है ये नारा, क्या है इसके पीछे की सच्चाई?

नई दिल्ली, 23 जून: भारतीय राजनीति में कांग्रेस के एकाधिकारी को चुनौती देने वाले और जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की आज पुण्यतिथि है। 23 जून 1953 में उनका निधन हो गया था। इस दिन बीजेपी इसे बलिदान दिवस के रूप में भी मनाती है। जनसंघ ही बाद में भारतीय जनता पार्टी में बदल गई। बीजेपी हमेशा यह नारा लगाती है 'जहां हुए बलिदान मुखर्जी वो कश्मीर हमारा है'। तो चलिए आपको बताते हैं कि बीजेपी के इस नारे के पीछे क्या हकीकत है और ये नारा क्यों लगाया जाता है। 

'जहाँ हुए बलिदान मुखर्जी , वो कश्मीर हमारा है , वो कश्मीर हमारा है , वो सारा का सारा है'। डॉ . मुखर्जी को याद करने का सबसे बड़ा और महान करायण है जम्मू कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय की माँग को लेकर उनके द्वारा दिया गया बलिदान। कश्मीर को भारत से सांस्कृतिक , आध्यत्मिक रूप से जोड़ने के अभियान पर भारत में हुई तमाम रहस्य्मयी मौतों में से एक के शिकार खुद बन गए थे, बलिदानी श्यामा प्रसाद मुखर्जी।

 

कश्मीर में धारा 370 के खिलाफ श्यामा प्रसाद मुखर्जी वो पहले शख्स थे, जिन्होंने सबसे पहले इसके खिलाफ आवाज उठाई थी। जम्मू-कश्मीर में उस वक्त जो हालात थे, वहां बिना परमिट के कोई नहीं जा सकते हैं। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर में धारा 370 के खिलाफ जो आंदोलन शुरू किया उसमें उन्हें लाखों लोगों का सहयोग मिला। लेकिन बलिदान सिर्फ उन्होंने ही दिया। जम्मू कश्मीर में मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री कहा जाता था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसी अलग संविधान और अलग झंडे के खिलाफ थे। 1952 की एक जम्मू-कश्मीर में आयोजित एक रैली में उन्होंने कहा था- या तो वह राज्य के लोगों को भारत का संविधान के नीचे लाएंगे या फिर वह बलिदान दे देंगे। 

अपने इसी संकल्प को पूरा करने के लिए मुखर्जी 23 जून 1953 को बिना परमिट के ही जम्मू-कश्मीर की यात्रा पर  निकल पड़े। जैसे ही वह वहां पहुंचे उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके बाद अगले ही उनकी जेल से अस्पताल जाते हुए मौत हो गई लेकिन कहा जाता है कि रहस्यमयी परिस्थितियों में उनकी मौत हुई है। मुर्खजी के मृत्यु के बाद उनकी मां ने कहा था- मेरे बेटे की मौत, भारत के बेटे की मृत्यु है। श्यामा प्रसाद के मौत के बाद यह अफवाह उड़ी थी कि उन्हें जेल में किसी तरह की कोई दवाई या जहर खिलाई गई थी, जिससे उनकी मौत हो गई थी। इसका खुलासा अभी तक नहीं हो पाया है। 

जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाने और 'एक देश में दो विधान , दो प्रधान , दो निशान- नहीं चलेंगे नहीं चलेंगे' का नारा बुलंद करने वाले डॉ. श्याम प्रसाद मुखर्जी की जम्मू-कश्मीर की जेल में हुई मौत का रहस्य आज भी बरकार है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जिसका विरोध करते हुए अपना बलिदान तक दे दिया वहां आज तक धारा 370 लागू है। 

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Web Title: DR.Shayama Prasad Mukharjee death anniversary special story

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