राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर न हो राजनीति: पवन के. वर्मा

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: July 1, 2018 06:17 IST2018-07-01T06:17:57+5:302018-07-01T06:17:57+5:30

मैं विशेष रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में इस मुद्दे को उठाना चाहता हूं। निस्संदेह यह संवेदनशील विषय है। युद्ध या घोषित राष्ट्रीय संकट की स्थिति में, लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित सरकार को अपने विवेक के अनुसार निर्णय लेकर कार्रवाई करने का पूरा अधिकार होता है और मतभेद के बावजूद सभी राजनीतिक दलों को ऐसी कार्रवाई का एकजुटता से समर्थन करना चाहिए। 

Do not politics on issues of national security: Pawan k Verma | राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर न हो राजनीति: पवन के. वर्मा

राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर न हो राजनीति: पवन के. वर्मा

सच कहूं तो मैं स्तब्ध हूं। यह जानना अब करीब-करीब असंभव हो गया है कि देशभक्ति की परिभाषा क्या है, कौन देशभक्त है और कौन नहीं, देशभक्त कहलाने के लिए क्या करने की जरूरत है और किन लानतों की वजह से किसी पर देशद्रोही होने का ठप्पा लगाया जा सकता है। राजनीति में बढ़ते तीखेपन - और जड़ता -  की वजह से वाद-विवाद, सवाल पूछना, प्रशंसा या आलोचना सब व्यर्थ हो गए हैं। ऐसे प्रत्येक प्रयास को तत्काल खांचे में डाल दिया जाता है, जिनमें लेबल लगे हैं और पूरा ध्यान ऐसे व्यक्ति को लांछित करने में लगा दिया जाता है। 

भारत जैसे सभ्य देश के लिए राष्ट्रीय बहस का यह स्तर किसी आपदा से कम नहीं है। हमारी सभ्यता की नींव मौलिक सोच की शक्ति पर आधारित रही है। आजादी की हमारी लड़ाई भी विवेकपूर्ण सोच पर आधारित रही है। यहां तक कि एक ही पक्ष के लोगों को भी अलग-अलग होने, सवाल उठाने तथा बहस करने की पूरी स्वतंत्रता थी। लेकिन पिछले कुछ वर्षो में ऐसा क्या हुआ है कि आज किसी भी ऐसे व्यक्ति, जो दूसरी राजनीतिक विचारधारा का हो या अपने अनुरूप न हो, के खरे होने पर सवाल उठा दिया जाता है?  यदि किसी को इसमें संदेह हो तो वह हमारे प्रमुख टीवी चैनलों में होने वाली बहसों को देख सकता है।

मैं विशेष रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में इस मुद्दे को उठाना चाहता हूं। निस्संदेह यह संवेदनशील विषय है। युद्ध या घोषित राष्ट्रीय संकट की स्थिति में, लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित सरकार को अपने विवेक के अनुसार निर्णय लेकर कार्रवाई करने का पूरा अधिकार होता है और मतभेद के बावजूद सभी राजनीतिक दलों को ऐसी कार्रवाई का एकजुटता से समर्थन करना चाहिए। 

सितंबर 2016 में जब पाक अधिकृत कश्मीर में पाकिस्तानी सेना/आतंकवादियों के खिलाफ सजिर्कल स्ट्राइक की गई तो इसी भावना के चलते जद (यू) ने इसका सबसे पहले समर्थन किया था। अपने सशस्त्र बलों की बहादुरी और साहस की हमने प्रशंसा की और सजिर्कल स्ट्राइक के बारे में कोई सबूत नहीं मांगा। ऐसी भूमिका अपनाने का कारण यह था कि किसी भी सरकार की ऐसी कार्रवाई गोपनीय और राष्ट्रीय हितों पर आधारित होती है और केवल राजनीतिक मतभेदों की वजह से इस पर सवाल उठाना उचित नहीं है। जद (यू) ने यह जिम्मेदारी भरा दृष्टिकोण तब अपनाया जब वह विपक्ष में था और सत्तारूढ़ गठबंधन एनडीए का सदस्य नहीं था। 

सरकार से यह अपेक्षित था कि वह हमारे बहादुर और साहसी जवानों द्वारा की गई सजिर्कल स्ट्राइक के लिए उन्हें बधाई तो दे, लेकिन इसका कोई राजनीतिक लाभ न उठाए, क्योंकि राष्ट्रीय हित के कार्य राजनीति से ऊपर होते हैं। कुछ राजनीतिक नेताओं और दलों द्वारा सजिर्कल स्ट्राइक के सबूत मांगना भी खेदजनक था। इस तरह के निर्थक उकसावे में आकर सरकार को कोई आवेश भरी प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए और संतुलित ढंग से मुद्दों पर प्रकाश डालना चाहिए।

लेकिन, सजिर्कल स्ट्राइक के करीब पौने दो साल बाद उसका ‘संपादित’ वीडियो जारी कर दिया गया। इसकी जरूरत क्या थी? इस तरह के सबूत जारी किए जाने से, जबकि किसी ने उसकी मांग भी नहीं की, क्या राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में नहीं पड़ती है? किसकी अनुमति से यह ‘संपादित’ वीडियो तैयार किया गया? कैसे वह लीक हुआ? जिसने भी यह संवेदनशील फुटेज ‘लीक’ किया, क्या सरकार उसके खिलाफ कोई कार्रवाई करने की योजना बना रही है? अगर नहीं तो क्यों नहीं?

अगर सरकार मानती है कि इस तरह सबूत सार्वजनिक किए जाने चाहिए तो क्यों नहीं रक्षा मंत्रलय वीडियो औपचारिक रूप से जारी करता है और सरकार इसकी जिम्मेदारी लेती है? और इस तरह का ‘लीक’ चुनिंदा तौर पर कैसे हुआ, जिसमें कुछ चुनिंदा मीडिया घरानों ने इस वीडियो को ‘ब्रेकिंग’ के तौर पर पेश किया?

दूसरा सवाल यह है कि पाकिस्तान को संघर्ष विराम का निरंतर उल्लंघन करने से रोकने के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है। सजिर्कल स्ट्राइक के समाप्त हो चुके अध्याय को उठाने की बजाय सरकार को इस मुद्दे पर ध्यान देने की जरूरत है। सजिर्कल स्ट्राइक हुए पौने दो साल बीतने के बाद भी, यह चिंता का विषय है कि पाकिस्तान की ओर से संघर्ष विराम उल्लंघन की घटनाओं में गुणात्मक वृद्धि हुई है। वर्ष 2017 में, सरकारी आंकड़ों के अनुसार पाक की ओर से संघर्ष विराम उल्लंघन की 110 घटनाएं हुई थीं, जबकि 2018 के पहले चार महीनों में ही ऐसी 300 घटनाएं हो चुकी हैं। इनमें संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचने के अलावा, हमारे जवानों और नागरिकों की जानें भी गई हैं।

वास्तव में, रमजान के दौरान एकतरफा संघर्ष विराम की अवधि के दौरान भी पाकिस्तानी सेना की गोलाबारी बेरोकटोक जारी रही। क्या सरकार से यह पूछना गलत है कि वह सीमा पर मौजूदा स्थिति को संभालने के लिए क्या कर रही है? या ऐसी बहस लोकतांत्रिक ताने-बाने का हिस्सा है, जहां सभी नागरिक और सभी जिम्मेदार राजनीतिक पार्टियां राष्ट्रीय सुरक्षा में हितधारक हैं, और हमारे देश की लूटपाट के खिलाफ आवाज उठा सकते हैं, बिना यह आरोप ङोले कि वे राष्ट्र विरोधी हैं और पाकिस्तान जा सकते हैं। क्या इससे सशस्त्र बलों की बदनामी होती है और पाक में भारत विरोधी तत्व मजबूत होते हैं?

इसके विपरीत तथ्य यह है कि हमारे जैसे लोकतांत्रिक देश में यह बहस न केवल संभव है बल्कि वांछनीय भी है और यही चीज भारत को पाकिस्तान से अलग करती है। हमारे देश के लिए समय आ गया है कि अनचाहे निराशावाद और अनावश्यक प्रचार जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा पर सवाल उठे, के बीच मध्य मार्ग खोजा जाए। सही प्रश्न पूछना, यहां तक कि राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में भी, राजनीतिक विरोधियों का काम है। प्रश्नकर्ता की मंशा पर सवाल उठाए बिना, इसका जवाब देना सरकार का कर्तव्य है। इसी तरह से परिपक्व लोकतंत्र काम करते हैं। लेकिन यदि हम सावधान नहीं रहे तो राष्ट्रवाद के नाम पर लोकतंत्र जल्द ही तानाशाही में बदल जाएगा, जो कि हमारे जैसे सुसंस्कृत देश के लिए न्यायपूर्ण नहीं होगा। 

Web Title: Do not politics on issues of national security: Pawan k Verma

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