बिहार में उपमुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश?, वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी की नैया बीच मझधार में खाने लगी है हिचकोले?
By एस पी सिन्हा | Updated: October 21, 2025 16:09 IST2025-10-21T16:07:09+5:302025-10-21T16:09:43+5:30
2020 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन से आउट होने के बाद एनडीए ने "सन ऑफ मल्लाह" मुकेश सहनी को अपना लिया था। भाजपा ने अपने खाते से 11 सीटें दी थी, स्वयं चुनाव लड़े, लेकिन हार गए।

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पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन में विकासशील इंसान पार्टी(वीआईपी) की नैया बीच मझधार में हिचकोले खाने लगी है। बता दें कि वीआईपी का चुनाव चिन्ह भी नाव ही है। सीट बंटवारे से पहले विधानसभा की 60 सीटें और उपमुख्यमंत्री की कुर्सी लॉक होने की बात करने वाले मुकेश सहनी की ऐसी हालत हो जाएगी, ऐसी कल्पना उन्होंने खुद भी नहीं की होगी। स्वयं चुनाव मैदान में उतरने की हिम्मत नहीं जुटा पाए, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह भाई और प्रदेश अध्यक्ष को मैदान में उतारा, लेकिन उनकी सीट भी सुरक्षित नहीं कर पाए। ऐसे में मुकेश सहनी की वीआईपी का भविष्य क्या होगा?
इस पर सियासी गलियारे में चर्चाओं का बाजार गर्म है। बता दें कि 2020 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन से आउट होने के बाद एनडीए ने "सन ऑफ मल्लाह" मुकेश सहनी को अपना लिया था। भाजपा ने अपने खाते से 11 सीटें दी थी, स्वयं चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। हालांकि इनके चार उम्मीदवार चुनाव जीतने में कामयाब रहे।
समय के साथ मुकेश सहनी के रिश्ते भाजपा से खराब हो गए, लिहाजा उन्होंने एक बार फिर से राजद की तरफ रुख किया। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले इन्होंने तेजस्वी यादव का हाथ पकड़ा। लोकसभा चुनाव में राजद का साथ लेने के बाद भी इन्हें सफलता नहीं मिली। इस बार विधानसभा चुनाव से पहले इन्होंने बड़ी-बड़ी बातें की।
दावा किया कि 60 सीटों से कम मंजूर नहीं। उपमुख्यमंत्री तो हर हाल में बनूंगा। लेकिन सीट बंटवारे में ही मुकेश सहनी के साथ खेल कर दिया गया। सीट बंटवारे में मुकेश सहनी को अंत-अंत तक लटका कर रखा गया। सन ऑफ मल्लाह ने पटना से लेकर दिल्ली तक दौड़ लगाई। राजद की कई सीटिंग सीटों पर मुकेश सहनी की नजर थी।
राजद किसी भी कीमत पर वो सीट देना नहीं चाहती थी। स्थिति गंभीर होते देख मुकेश सहनी ने खुद चुनाव लड़ने से मना कर दिया। दरअसल वे फिर से भद्द पिटवाना नहीं चाहते थे। हालांकि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह सगे भाई संतोष सहनी को गौरा बौराम विधानसभा सीट से मैदान में उतारा। वहीं प्रदेश अध्यक्ष बालगोविंद बिंद को चैनपुर से चुनावी मैदान में उतार दिया।
हालांकि राजद ने मुकेश सहनी के इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया। वीआईपी के लिए राजद न तो गौरा बौराम सीट छोड़ी और न चैनपुर। गौरा बौराम से राजद प्रत्याशी अफजल अली खान चुनावी मैदान में हैं। जबकि यहां से मुकेश सहनी के भाई व वीआईपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संतोष सहनी वीआईपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।
चैनपुर से वीआईपी के प्रदेश अध्यक्ष बालगोविंद बिंद ने नामांकन दाखिल किया है। राजद ने इस सीट से नीतीश कैबिनेट में पूर्व मंत्री व भाजपा के कद्दावर नेता रहे ब्रजकिशोर बिंद को उम्मीदवार बनाया है। हालांकि राजद ने इन्हें वो सीटें आसानी से दे दी जहां उनका अपना प्रत्याशी है। सुगौली विधानसभा सीट इसका उदाहरण है।
राजद के सीटिंग विधायक शशि भूषण सिंह अब वीआईपी के प्रत्याशी हैं। राजद ने यह सीट मुकेश सहनी को दे दी। वहीं पंद्रह सीटों में सुगौली के अलावा चार अन्य सीटों पर भी राजद नेता प्रत्याशी बने हैं। जबकि 15 में चार-पांच सीटों पर भाजपा से जुड़े नेता वीआईपी के टिकट पर चुनावी मैदान में हैं।
सूची में चार ऐसे नेता हैं जो टिकट लेने में सफल हो गए, जिन्होंने सेटिंग की बदौलत सिंबल पाया। मुकेश सहनी के की पार्टी के पंद्रह उम्मीदवार वाली सूची में तीन तो विधान पार्षद के पुत्र-पुत्री ही हैं। अब इन्होंने टिकट कैसे मिला, आप सब आसानी से समझा जा सकता है।