दिल्ली चुनावः देश की सियासत की दिशा बदल देंगे नतीजे?
By प्रदीप द्विवेदी | Published: February 10, 2020 01:55 AM2020-02-10T01:55:39+5:302020-02-10T01:55:39+5:30
वर्ष 2019 के लोस चुनाव में बीजेपी को अहसास हो गया था कि अब उसके पास लंबी राजनीतिक पारी खेलने का समय नहीं है, लिहाजा इस बार केन्द्र में सत्ता आते ही उसने धारा 370 जैसे मुद्दों पर तेजी से निर्णय लिए, बगैर यह सोचे कि इसके बाद कुछ वर्षों से उसके साथ जुड़े धर्म निरपेक्ष मतदाता क्या करेंगे?
दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के साथ ही देश की राजनीति की एक नई तस्वीर उभरेगी, जो सियासत की दिशा बदल देगी, कारण? इन कुछ माह में बीजेपी का सियासी चेहरा तेजी से बदला है और उसने पाॅलिटिकल मेकअप उतारना शुरू कर दिया है.
वर्ष 2019 के लोस चुनाव में बीजेपी को अहसास हो गया था कि अब उसके पास लंबी राजनीतिक पारी खेलने का समय नहीं है, लिहाजा इस बार केन्द्र में सत्ता आते ही उसने धारा 370 जैसे मुद्दों पर तेजी से निर्णय लिए, बगैर यह सोचे कि इसके बाद कुछ वर्षों से उसके साथ जुड़े धर्म निरपेक्ष मतदाता क्या करेंगे?
नतीजा यह रहा कि तीन तलाक जैसे मुद्दों से तैयार राजनीतिक जमीन पर सीएए ने पानी फेर दिया.
वर्ष 2014 से सबका साथ, सबका विकास जैसे अच्छे दिनों की उम्मीद में धर्म निरपेक्ष हिन्दू-मुस्लिम बीजेपी से जुड़ते गए, जिसकी वजह से कांग्रेस कमजोर होती गई, लेकिन अब बीजेपी अपने असली राजनीतिक नजरिए के साथ खुलकर सियासी मैदान में है. जाहिर है, अब फैसला करने की बारी जनता की है.
मुस्लिमों के स्वर तो बदलने लगे हैं, कई जगहों से अटल-आडवाणी के जमाने से जुड़े लोग बीजेपी से दूरी भी बना रहे हैं, लेकिन हिन्दू मतदाताओं ने अभी कोई स्पष्ट नजरिया प्रदर्शित नहीं किया है.
दिक्कत यह है कि जनता न तो पहले की तरह मोदी सरकार के हर निर्णय के साथ खड़ी हो पा रही है और न ही हर फैसले के विरोध में है, लिहाजा यह तो तय है कि आगे इससे बीजेपी को नुकसान होगा, लेकिन अभी यह अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी कि इससे कितना नुकसान होगा.
वैसे, दिल्ली चुनाव के नतीजे देश की सियासी सोच का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं, लेकिन इससे बीजेपी के प्रति लोगों की क्या नई सियासी सोच है, यह तो बता ही देंगे!