LOC पर हिमस्खलन से होती हैं मौतें पर दुर्गम पोस्ट्स से जवान नहीं हटाती भारतीय सेना, जानें क्या है कारण
By सुरेश एस डुग्गर | Updated: February 10, 2022 15:58 IST2022-02-10T15:46:30+5:302022-02-10T15:58:50+5:30
वर्ष 2019 में 18 जवानों की मौत बर्फीले तूफानों के कारण हुई है जबकि 2018 में 25 जवानों को हिमस्खलन लील गया था। अधिकतर मौतें एलओसी की उन दुर्गम चौकियों पर घटी थीं जहां सर्दियों के महीनों में सिर्फ हेलिकाप्टर ही एक जरिया होता है पहुंचने के लिए।

LOC पर हिमस्खलन से होती हैं मौतें पर दुर्गम पोस्ट्स से जवान नहीं हटाती भारतीय सेना, जानें क्या है कारण
जम्मू: अरूणाचल प्रदेश में हिमस्खलन की घटना में 7 जवानों की शहादत के बाद पाकिस्तान से सटी एलओसी पर दुर्गम स्थानों पर हिमस्खलन की घटनाएं भी चर्चा में हैं क्योंकि एलओसी पर हिमस्खलन के कारण होने वाली सैनिकों की मौतों का सिलसिला कोई पुराना नहीं है बल्कि करगिल युद्ध के बाद सेना को ऐसी परिस्थितियों के दौर से गुजरना पड़ रहा है। करगिल युद्ध से पहले कभी कभार होने वाली इक्का दुक्का घटनाओं को कुदरत के कहर के रूप में ले लिया जाता रहा था पर अब करगिल युद्ध के बाद लगातार होने वाली ऐसी घटनाएं सेना के लिए परेशानी का सबब बनती जा रही हैं।
वर्ष 2019 में 18 जवानों की मौत बर्फीले तूफानों के कारण हुई है जबकि 2018 में 25 जवानों को हिमस्खलन लील गया था। अधिकतर मौतें एलओसी की उन दुर्गम चौकियों पर घटी थीं जहां सर्दियों के महीनों में सिर्फ हेलिकाप्टर ही एक जरिया होता है पहुंचने के लिए। ऐसा इसलिए क्योंकि भयानक बर्फबारी के कारण चारों ओर सिर्फ बर्फ के पहाड़ ही नजर आते हैं और पूरी की पूरी सीमा चौकियां बर्फ के नीचे दब जाती हैं।
हालांकि ऐसी सीमा चौकियों की गिनती अधिक नहीं है पर सेना ऐसी चौकियों को करगिल युद्ध के बाद से खाली करने का जोखिम नहीं उठा रही है। दरअसल करगिल युद्ध से पहले दोनों सेनाओं के बीच मौखिक समझौतों के तहत एलओसी की ऐसी दुर्गम सीमा चौकियों तथा बंकरों को सर्दी की आहट से पहले खाली करके फिर अप्रैल के अंत में बर्फ के पिघलने पर कब्जा जमा लिया जाता था। ऐसी कार्रवाई दोनों सेनाएं अपने अपने इलाकों में करती थीं।
पर अब ऐसा नहीं है। कारण स्पष्ट है। करगिल का युद्ध भी ऐसे मौखिक समझौते को तोड़ने के कारण ही हुआ था जिसमें पाक सेना ने खाली छोड़ी गई सीमा चौकियों पर कब्जा कर लिया था। नतीजा सामने है। करगिल युद्ध के बाद ऐसी चौकियों पर कब्जा बनाए रखना बहुत भारी पड़ रहा है। सिर्फ खर्चीली हीं नहीं बल्कि औसतन हर साल कई जवानों की जानें भी इस जद्दोजहद में जा रही हैं।
दरअसल हर बार बर्फबारी उस तारबंदी को बुरी तरह से कई इलाकों में क्षतिग्रस्त कर देती है पाकिस्तानी क्षेत्र से होने वाली घुसपैठ को रोकने के लिए लगाई गई थी। हालांकि यह कोई पहला अवसर नहीं था जब तारबंदी को बर्फबारी ने क्षति पहुंचाई हो बल्कि हर साल होने वाली बर्फबारी तारबंदी को नुक्सान पहुंचाती है और फिर सेना के जवान उसे नए सिरे से खड़ा करते हैं।
और हर बार भारी बर्फबारी के बावजूद सेना एलओसी की उन पोस्टों से अपने जवानों को हटाने को तैयार नहीं होती है जो 10-15 फुट बर्फ के नीचे दब जाती है। रक्षा प्रवक्ता कहते थे कि इस बार भी असल में तारबंदी भी बर्फ के नीचे दफन हो गई है और इन पोस्टों से सैनिकों को हटा लिए जाने का मतलब साफ होता कि घुसपैठियों को कश्मीर की एलओसी पर दूसरा करगिल प्रकरण तैयार करने का मौका प्रदान करना।