पुण्यतिथि: जब 23 दिन में गिर गई थी चरण सिंह की सरकार, इंदिरा गांधी ने सत्ता दिलाकर खींच ली थी कुर्सी

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: May 29, 2018 07:19 AM2018-05-29T07:19:22+5:302018-05-29T07:19:22+5:30

चौधरी चरण सिंह मोरारजी देसाई सरकार में गृह मंत्री बनने से पहले दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके थे।

death anniversary of chaudhary charan singh india 5th pm whose government fell in 6 months | पुण्यतिथि: जब 23 दिन में गिर गई थी चरण सिंह की सरकार, इंदिरा गांधी ने सत्ता दिलाकर खींच ली थी कुर्सी

chaudhary charan singh

आज देश के पाँचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की पुण्यतिथि है। जाट किसान नेता चरण सिंह का निधन 29 मई 1987 को हुआ था। चरण सिंह भारतीय राजनीति के उन विरले नेताओं में हैं जो कभी चुनाव नहीं हारा। चरण सिहं ने 1937 में प्रांतीय विधान सभा के सदस्य बनकर राजनीति में कदम रखा। कांग्रेस के खिलाफ बगावत करके अलग राजनीतिक धारा पकड़ने वाले नेताओं चरण सिंह अग्रणी थे। उन्हें जवाहरलाल नेहरू के आलोचकों में माना जाता था। हालाँकि उन्होंने नेहरू के जीते जी कांग्रेस नहीं छोड़ी लेकिन उनके निधन के कुछ ही साल बाद 1967 में चरण सिंह ने कांग्रेस छोड़कर विपक्ष से हाथ मिला लिया और उत्तर प्रदेश के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री बन गये। चरण सिंह दूसरी बार 1970 में यूपी के सीएम बने। दोनों ही बार उनका कार्यकाल एक साल से कम रहा। 

चरण सिंह उन साफगो नेताओं में रहे जिसने कभी प्रधानमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षा को छिपाया नहीं। नेहरू की तरह इंदिरा गांधी से भी चरण सिंह थोड़ी चिढ़ थी। इंदिरा गांधी ने जब जून 1975 मे इमरजेंसी लगायी तो चरण सिंह को जेल में बंद करवा दिया। चरण सिंह इस पर काफी बिफर गये थे। अंग्रेजी पत्रकार वीरंद्र कपूर ने लिखा है कि इमरजेंसी के दौरान चरण सिंह को तिहाड़ जेल के वार्ड नंबर 14 में रखा गया था। वीरेंद्र सिंह के अनुसार चरण सिंह ने एक बार उन्हें अपनी कोठरी दिखाते हुए कहा था कि वो इंदिरा गांधी को इसी कोठरी में रखेंगे। 

इंदिरा गांधी ने जब इमरजेंसी हटाया और 1977 में जनता दल, भारतीय लोक दल और भारतीय जनसंघ इत्यादि ने मिलकर जनता पार्टी बनायी। 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की बुरी हार हुई। जनता पार्टी को बहुमत मिला तो उसके तीन बड़े नेताओं मोरारजी देसाी, जगजीवन राम और चरण सिंह के बीच प्रधानमंत्री बनने की होड़ शुरू हो गई। बाजी मोरारजी के हाथ लगी। सत्ता में आते ही इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गयी इमरजेंसी के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व करने वाले जयप्रकाश नारायण और नए पीएम मोरारजी देसाई इंदिरा गांधी के खिलाफ नरम पड़ने लगे। 

जयप्रकाश नारायण को शायद नेहरू से अपने सम्बन्धों का ख्याल था। वहीं मोरारजी देसाई को लगता था कि चुनाव में जनता ने सत्ता छीनकर इंदिरा को पर्याप्त सजा दे दी है। लेकिन चरण सिंह इंदिरा को सजा दिलवाने के लिए अड़े हुए थे। लोकप्रियता पर सवाल होकर सत्ता तक पहुँचने वाली जनता पार्टी सरकार एक साल बीतते-बीतते अपनी चमक खोने लगी। सरकार पर अपराध, महँगाई और भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे। फरवरी 1978 कर्नाटक और आंध्र प्रदेश विधान सभा चुनावों में इंदिरा गांधी की कांग्रेस-आई को जीत मिली। हाथ के पंजे के चुनाव चिह्न के साथ इंदिरा गांधी का यह पहला चुनाव था।  

राज्यों में मिली जीत के बाद इंदिरा गांधी का खोया हुआ आत्मविश्वास वापस आने लगा। इंदिरा और उनके बेटे संजय जनता पार्टी की एकता का धागा तोड़ने की फिराक में लग गये। दूसरी तरफ चरण सिंह ने मोरारजी देसाई के खिलाफ ही बगावत का बिगुल फूँक दिया। चरण सिंह चाहते थे कि इंदिरा गांधी के खिलाफ मामलों की जाँच के लिए विशेष अदालतों का गठन किया जाए। मोरारजी इससे सहमत नहीं थे। चरण सिंह को लगता था कि इंदिरा गांधी को जेल में होना चाहिए। चरण सिंह और उनके सिपहसालार माने जाने वाले राजनारायण ने मोरारजी को इंदिरा के खिलाफ कार्रवाई न करने के लिए नामर्द तक कह दिया।

चरण सिंह ने मोरारजी पर निजी तौर पर भी निशाना साधना शुरू कर दिया। वजह बने मोरारजी देसाी के बेटे कांति देसाई। कांति देसाई पर अपने पिता के प्रधानमंत्री पद के दुरुपयोग का आरोप लगा था। मोरारजी देसाई सरकार में गृह मंत्री चरण सिंह ने पत्र लिखकर कांति भाई देसाई पर लगे आरोपों की जाँच कराने की माँग की। मोरारजी को ये बात बुरी लगी।  मोरारजी ने चरण सिंह और राजनारायण को चिट्ठी लिखकर स्पष्टीकरण माँगा और दोनों ने तुरंत कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। 

दूसरी तरफ जनता पार्टी की अंदरूनी फूट बढ़ी तो इसका फायदा संजय गांधी ने उठाया। संजय गांधी ने राजनारायण को मोरारजी देसाई के खिलाफ भड़काना शुरू किया। संजय गांधी चाहते थे कि चरण सिंह लोक दल को जनता पार्टी से अलग करके सरकार गिरा दें। लेकिन उस समय ऐसा नहीं हो सका। जनता पार्टी के अन्य नेताओं के बीचबचाव के बाद चरण सिंह की मोरारजी देसाी सरकार में उप-प्रधानमंत्री के रूप में वापसी हुई लेकिन ये समझौता ज्यादा दिन नहीं चला।

अक्टूबर 1978 में इंदिरा गांधी ने कर्नाटक के चिकमंगलूर से लोक सभा उपचुनाव जीत लिया। लेकिन इसी बीच संसद की प्रिविलेज कमेटी ने सदन में वो रिपोर्ट पेश की जिसमें इंदिरा गांधी को पद के दुरुपयोग का दोषी पाया गया था। इंदिरा की संसद सदस्यता रद्द कर दी गयी और उन्हें एक महीने तिहाड़ जेल में रहना पड़ा। रिपोर्ट में कहा गया कि इंदिरा के खिलाफ कानून कार्रवाई करने का पर्याप्त आधार है। वहीं शाह कमीशन ने इंदिरा गांधी को इमरजेंसी के लिए जिम्मेदार ठहराया।

दूसरी तरफ जनता पार्टी के अंदर की फूट दोबारा सिर उठाने लगी थी। संजय गांधी ने राजनारायण को दोबारा भरोसा दिलाया कि अगर चरण सिंह जनता पार्टी से अलग होकर सरकार बनाएंगे तो कांग्रेस उन्हें समर्थन देगी। हालिया चुनाव सफलता से उत्साहिस कांग्रेस ने मोरारजी देसाई सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला लिया। कांग्रेस नेता यशवंत राव चव्हाण ने संसद में प्रस्ताव पेश किया। अविश्वास प्रस्ताव पेश होते ही मोरारजी सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे। चरण सिंह और राजनारायण के समर्थक सासंदों ने इस्तीफा देना शुरू कर दिया। मोरारजी के भरोसेमंद साथी माने जाने वाले हेमवती नंदर बहुगुणा और जॉर्ज फर्नाडिंस ने इस्तीफा दे दिया। उप-प्रधानमंत्री जगजीवन राम ने भी इस्तीफे की धमकी दी। करीबियों के इस रुख से मोरारजी समझ गये कि उनके लिए संसद में बहुमत साबित करना संभव नहीं। मोरारजी ने मतदान से ठीक पहले पद से इस्तीफा दे दिया।

मोरारजी के इस्तीफे के बाद इंदिरा गांधी ने तुरंत ही चरण सिंह को समर्थन देने की घोषणा कर दी। 28 जुलाई 1979 को चरण सिंह ने देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेकर अपनी पुरानी हसरत पूरी कर ली। चरण सिंह का प्रधानमंत्री बनने का सपना उस इंदिरा की वजह से पूरा हुआ जिसे वो जेल भेजने का दावा करते थे। लेकिन चरण सिंह की यह खुशी ज्यादा दिन नहीं टिकी।  इंदिरा गांधी ने उन्हें ऐसा दाँव दिया जिसे वो जीते जी नहीं भूले होंगे। मात्र 23 दिन बाद कांग्रेस ने चरण सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया। इस तरह चरण सिंह देश के पहले प्रधानमंत्री बन गये जिसने 15 अगस्त (स्वतंत्रता दिवस) पर लाल किले से देश को सम्बोधित तो किया लेकिन संसद का मुँह नहीं देख सका। सरकार गिर जाने पर भी चरण सिंह 14 जनवरी 1980 तक देश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने रहे। 1980 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी ने सत्ता में वापसी की। चरण सिंह को इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री की कुर्सी सौंपनी पड़ी। 

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