'मिथिलांचल का दिल' कहे जाने वाला दरभंगा लोकसभा क्षेत्र में होगी इस बार दिलचस्प लड़ाई, कीर्ति झा आजाद का मुकाबला राजग से होगा
By एस पी सिन्हा | Updated: March 2, 2019 17:58 IST2019-03-02T17:49:33+5:302019-03-02T17:58:38+5:30
दरभंगा लोकसभा सीट पर इस बार का लोकसभा चुनाव काफी दिलचस्प होगा. कीर्ति झा आजाद कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरने की तौयारी में हैं तो इस सीट से चुनाव लड़ने के लिए जदयू के संजय झा अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं.

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बिहार का दरभंगा जिला मिथिला संस्कृति का केंद्र है. रामायण काल से ही यह राजा जनक तथा उत्तरवर्ती हिंदू राजाओं का शासन प्रदेश रहा है. मुसलमान शासकों का कब्जा होने पर भी यह हिंदू क्षत्रपों के अधीन रहा और अपनी खास पहचान बनाए रखने में सक्षम रहा. दरभंगा के उत्तर में मधुबनी, दक्षिण में समस्तीपुर, पूर्व में सहरसा एवं पश्चिम में मुजफ्फरपुर तथा सीतामढ़ी जिला है. दरभंगा 16वीं शताब्दी में स्थापित दरभंगा राज की राजधानी था.
'मिथिलांचल का दिल' कहे जाने वाला दरभंगा अपने समृद्ध अतीत और प्रसिद्ध दरभंगा राज के लिए जाना जाता है. यह जिला अपनी सांस्कृतिक और शाब्दिक परंपराओं के लिए मशहूर है और शहर बिहार की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में लोकप्रिय है. यहां का इतिहास रामायण और महाभारत काल से जुड़ा है, जिसका जिक्र भारतीय पौराणिक महाकाव्यों में भी है.
मंडन मिश्र और नागार्जुन की कर्मभूमि
दरभंगा बिहार का एक प्रमुख लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है. इस लोकसभा क्षेत्र में 6 विधानसभा क्षेत्र समाहित हैं. बागमती नदी के किनारे बसा यह क्षेत्र जिला एवं प्रमंडलीय मुख्यालय है. यह क्षेत्र 16वीं सदी में दरभंगा राज की राजधानी था. यह इलाका रामायण की महत्वपूर्ण घटनाओं का केंद्र माना जाता है. यहां देवी सीता के पिता जनक का राज था. बाद में मगध, शुंग, कण्व और गुप्त वंश और मुसलमान शासक ने राज किया. इस क्षेत्र में ही कुमारिल भट्ट, मंडन मिश्र, गदाधर पंडित, शंकर, वाचास्पति मिश्र, विद्यापति, नागार्जुन आदि महान विद्वानों ने अपना लेखनस्थली बनाया.
यह क्षेत्र आम और मखाना के उत्पादन के लिए मशहूर है. यहां के शैक्षिक संस्थानों में मिथिला शोध संस्थान, मखाना राष्ट्रीय शोध केंद्र, दरभंगा कॉलेज ऑफ इंजिनियरिंग, महिला अभियंत्रण महाविद्यालय आदि प्रमुख हैं. बिहार की प्रमुख रियासतों में एक था दरभंगा राज. संभवत: सबसे बड़ी रियासत रही. ये रोचक तथ्य है कि महाराज कामेश्वर सिंह अपनी ही रियासत के तहत आने वाले दरभंगा नॉर्थ से 1952 में लोकसभा चुनाव हार गए थे.
समाजवादी राजनीति और दक्षिणपंथी राजनीति का मिश्रण
दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह संविधान सभा के सदस्य भी थे. इस सीट से निर्वाचित श्रीनारायण दास, सुरेंद्र झा सुमन और एमएए फातमी ही इस संसदीय क्षेत्र के निवासी रहे हैं. अन्य सांसद दरभंगा के लिए बाहरी ही रहे हैं. बहरहाल, बीतते दौर के साथ दरभंगा ने कई बदलाव देखे हैं. कभी कांग्रेस की राजनीति का गढ़ रहा दरभंगा बदलते वक्त के साथ कभी समाजवादी राजनीति की प्रयोगशाला बनी तो कभी दक्षिणपंथी राजनीति की कर्मभूमि बन गई. 1971 तक दरभंगा लोकसभा सीट कांग्रेस का गढ़ रहा.
ललित नारायण मिश्रा की राजनीतिक कर्मभूमि
बिहार के कद्दावर नेता रहे और भूतपूर्व रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा ने भी इस क्षेत्र का प्रनिधित्व किया.1980 में कांग्रेस यहां आखिरी बार जीती थी. तब पंडित हरिनाथ मिश्र लोकसभा चुनाव जीते थे. उसके बाद यहां से समाजवादी और संघ की पृष्ठभूमि के उम्मीदवार चुनाव जीतते रहे हैं. चुनावी राजनीति में दरभंगा का इतिहास बहुत पुराना है. ब्रिटिश भारत में यहां पहली बार 1893 में चुनाव हुआ था. इस चुनाव में दरभंगा राज परिवार के लक्ष्मेश्वर सिंह निर्वाचित हुए थे. इसके बाद कई चुनावों में दरभंगा राज परिवार के सदस्य जीतते रहे थे. कालांतर में दरभंगा की जनता ने अपने क्षेत्र से कई दिग्गज नेताओं को लोकसभा और विधानसभा भेजा. ये अलग-अलग सरकारों में मंत्री भी रहे.
आम और मखाना के लिए मशहूर
यह जिला आम और मखाना के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है. दरभंगा में कमला, बागमती, कोशी, करेह और अधवारा नदियों से उत्पन्न बाढ़ हर वर्ष लाखों लोगों के लिए तबाही लाती है. दरभंगा से वर्तमान सांसद हैं पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद. वह बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद के बेटे हैं. कीर्ति आजाद दरभंगा से भाजपा के टिकट पर 3 बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं. दिल्ली डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट बोर्ड में घोटाले के आरोप लगाते हुए उन्होंने भाजपा के सीनियर नेता और केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. इसके बाद कीर्ति आजाद को भाजपा से निलंबित कर दिया गया. अब कीर्ति आजाद कांग्रेस का दामन थामन कर चुके हैं और महागठबंधन उम्मीदवार के रूप में 2019 चुनाव में उतरने की पूरी तैयारी में हैं.
लोकसभा चुनाव 1957 में यहां से पीएसपी के अब्दुल जलील जीतकर दिल्ली गए थे. 1972 में यहां से ललित नारायण मिश्रा चुनाव जीते थे. मोहम्मद अली अशरफ फातमी ने पहले जनता दल और बाद में आरजेडी के टिकट पर यहां से 4 बार 1991, 1996, 1998 और 2004 में चुनाव जीता. 1999 में पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद यहां से मैदान में उतरे और जीतकर लोकसभा की सदस्यता हासिल की. लेकिन 2004 में राजद के टिकट पर फिर मोहम्मद अली अशरफ फातमी ने यहां से जनादेश हासिल किया. इसके बाद 2009 और 2014 के दो चुनावों में कीर्ति आजाद ने भारी अंतर से ये सीट जीती. दोनों बार उनके सामने राजद के नेता मोहम्मद अली अशरफ फातमी मैदान में थे.
दरभंगा यादव, मुसलमान और ब्राह्मणों का प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता है. इस सीट पर मुसलमान वोटरों की संख्या साढ़े तीन लाख है, जबकि यादव व ब्राह्मण वोटरों की संख्या तीन-तीन लाख के करीब है. सवर्ण जातियों में राजपूत व भूमिहार वोटरों की आबादी एक-एक लाख के करीब है. दरभंगा सीट काफी हाईप्रोफाइल मानी जाती है खासकर मिथिला की सियासत का ये केंद्र रहा है.
मुस्लिम बहुल क्षेत्र
इस क्षेत्र में वोटरों की कुल संख्या है 1,307,067. इसमें महिला मतदाताओं की संख्या 601,794 और पुरुष मतदाताओं की संख्या 705,273 है. दरभंगा संसदीय क्षेत्र में विधानसभा की 6 सीटें आती हैं- गौरा बौरम, बेनीपुर, अलीनगर, दरभंगा ग्रामीण, दरभंगा और बहादुरपुर. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में इन 6 सीटों में से 3 सीट राजद के खाते में गए, 2 जदयू और एक सीट भाजपा ने जीती. माना जाता है कि यहां यादव, मुस्लिम और ब्राह्मण जाति के वोटर निर्णायक होते हैं.
जाति-धर्म की परवान चढ़ती राजनीति और सामाजिक आंदोलनों का गवाह रहे दरभंगा की राजनीति में हर दौर में विकास ही मुख्य मुद्दा रहा है. विडंबना ये है कि एक से एक दिग्गज नेताओं की कर्मभूमि रही यह धरती आज भी बाढ़ के कहर से निजात नहीं पा सकी. रोजगार के लिए पलायन आज भी यहां की सबसे बड़ी समस्या है. देश के किसी भी कोने में जाएंगे तो दरभंगावासी आपको जरूर मिल जाएंगे जो दूसरे प्रदेशों में रोजगार के लिए गए हैं.
बहरहाल, दरभंगा लोकसभा सीट पर इस बार का लोकसभा चुनाव काफी दिलचस्प होगा. कीर्ति झा आजाद कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरने की तौयारी में हैं तो इस सीट से चुनाव लड़ने के लिए जदयू के संजय झा अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं. संजय झा का कहना है कि जब को लंबे समय से इस क्षेत्र के लिए काम कर रहे हैं तो उन्हें उम्मीद है जनता साथ देगी.
