नयी दिल्ली, 10 फरवरी उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को उस याचिका पर नोटिस जारी किया जिसमें यवतमाल जिले में 2018 में कथित ‘नरभक्षी’ बाघिन ‘अवनी’ को मारने वालों को पुरस्कृत करने पर महाराष्ट्र के प्रधान सचिव विकास खड़गे और आठ अन्य के खिलाफ अवमानना कार्रवाई करने का आग्रह किया गया था।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एस एस बोपन्ना तथा न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन की पीठ को पशु अधिकार कार्यकर्ता संगीता डोगरा ने बताया कि बाघिन नरभक्षी नहीं थी जो उसकी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से स्पष्ट है।
पीठ ने कहा, ‘‘नोटिस जारी कीजिए जिसका जवाब दो सप्ताह के भीतर दिया जाए। इस बीच, आवश्यक दस्तावेज दायर किए जाएंगे।’’
सुनवाई के दौरान पीठ ने डोगरा से पूछा कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से यह कैसे पता चल सकता है कि कोई जानवर नरभक्षी है या नहीं।
डोगरा ने उत्तर दिया कि यदि जानवर नरभक्षी होता है तो इसका पता डीएनए रिपोर्ट से लगाया जा सकता है क्योंकि बाल और नाखूनों के अवशेष आंतों में छह महीने से अधिक समय तक बने रहते हैं।
उन्होंने दावा किया, ‘‘जिस बाघिन को मारा गया, उसका पेट खाली था।’’
डोगरा ने कहा कि राज्य के वन अधिकारियों ने यह कहकर ‘अवनी’ को मारने का आदेश दिया कि वह नरभक्षी है और क्षेत्र में तेरह लोगों को मार चुकी है।
उन्होंने कहा कि बाघिन को मारने वालों को पुरस्कृत किया गया और जश्न मनाया गया जो शीर्ष अदालत के आदेश का उल्लंघन है।
न्यायालय ने कहा कि अदालत जश्न पर रोक नहीं लगा सकती, लेकिन यदि लोग उच्चतम न्यायालय के आदेश का उल्लंघन कर रहे हैं तो नोटिस जारी कर सकती है।
अदालत ने डोगरा से यह साबित करने के लिए अतिरिक्त दस्तावेज भी दायर करने को कहा कि बाघिन नरभक्षी नहीं थी।
दो नवंबर 2018 को महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में ‘अवनी’ को गोली से मार दिया गया था।
शीर्ष अदालत ने 11 सितंबर 2018 को बंबई उच्च न्यायालय के फैसले में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया था और कहा था कि वन विभाग को उनका खुद का यह आदेश मानना होगा कि बाघिन को पहले बेहोश किया जाए और इसमें सफलता न मिलने पर उसे गोली से मारा जाए।
इसने कहा था कि यवतमाल के मुख्य वन संरक्षक उक्त आदेश को क्रियान्वित करने के लिए अधिकृत हैं, लेकिन वह किसी इनाम या इस तरह के किसी लाभ की घोषणा नहीं करेंगे।
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