कोरोना वायरस: देश का सबसे स्वच्छ शहर इंदौर का बुरा हाल, 47 लोगों की मौत

By भाषा | Updated: April 17, 2020 21:28 IST2020-04-17T21:28:18+5:302020-04-17T21:28:18+5:30

इंदौर जिले में कोविड-19 के 842 मरीज मिलने और इस महामारी से 47 लोगों की मौत की जानकारी दी गयी है। आंकड़ों की गणना से पता चलता है कि शुक्रवार सुबह तक जिले में कोविड-19 के मरीजों की मृत्यु दर 5.58 प्रतिशत थी जो राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है।

CoronaVirus: Indias cleanest city battling floods and high death rate of patients | कोरोना वायरस: देश का सबसे स्वच्छ शहर इंदौर का बुरा हाल, 47 लोगों की मौत

कोविड-19 के "हॉटस्पॉट" बने इंदौर में इस महामारी के पांच मरीजों की मौत बृहस्पतिवार को हुई।

Highlightsकोविड-19 के मरीज मिलने के साथ ही इनकी ऊंची मृत्यु दर के कारण देश का सबसे साफ शहर इंदौर इस महामारी से संघर्ष कर रहा है।शुक्रवार सुबह तक जिले में कोविड-19 के मरीजों की मृत्यु दर 5.58 प्रतिशत थी जो राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है।

मध्यप्रदेश:  सख्त कर्फ्यू के बावजूद एक महीने से भी कम वक्त में बड़ी तादाद में कोविड-19 के मरीज मिलने के साथ ही इनकी ऊंची मृत्यु दर के कारण देश का सबसे साफ शहर इंदौर इस महामारी से संघर्ष कर रहा है।

अधिकारियों द्वारा शुक्रवार सुबह तक की स्थिति में इंदौर जिले में कोविड-19 के 842 मरीज मिलने और इस महामारी से 47 लोगों की मौत की जानकारी दी गयी है। आंकड़ों की गणना से पता चलता है कि शुक्रवार सुबह तक जिले में कोविड-19 के मरीजों की मृत्यु दर 5.58 प्रतिशत थी जो राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है।

केंद्र सरकार द्वारा शुक्रवार सुबह जारी आंकड़ों के मुताबिक देश भर में अब तक कोविड-19 से 437 लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें से 10.75 प्रतिशत मौतें अकेले इंदौर जिले में दर्ज की गयी हैं। कोविड-19 के "हॉटस्पॉट" बने इंदौर में इस महामारी के पांच मरीजों की मौत बृहस्पतिवार को हुई। इनमें 63 वर्ष और 52 वर्ष की उम्र वाले दो सगे भाई शामिल हैं जो सर्राफा कारोबार से जुड़े थे।

दोनों भाइयों की मौत के बाद उनके परिवार पर दु:ख का पहाड़ टूट पड़ा है। सर्राफा कारोबारी के शोक में डूबे 35 वर्षीय बेटे ने "पीटीआई-भाषा" को बताया, "मैंने अपने पिता और चाचा (52 वर्षीय मृतक) को मंगलवार को शहर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया था। केवल दो दिन के इलाज के दौरान दोनों ने दम तोड़ दिया। हम समझ नहीं पा रहे हैं कि एकदम से यह सब कैसे हो गया?" उन्होंने बताया, "कोविड-19 से संक्रमित होने से पहले मेरे पिता को कोई बीमारी नहीं थी, जबकि मेरे चाचा को उच्च रक्तचाप की समस्या थी।" उन्होंने बताया, "संक्रमण से बचाव की सावधानी के चलते मेरे पिता का शव खास किस्म के कवर में बंद था।

मैं उनके चेहरे का अंतिम दर्शन भी नहीं कर सका। मैं और मेरे परिवार के तीन अन्य सदस्य ही उनके दाह संस्कार में शामिल हो सके।" दोनों परिजन की मौत के बाद उनके संयुक्त परिवार के 16 सदस्यों ने खुद को पृथक कर लिया है। इन लोगों की सेहत पर स्वास्थ्य विभाग नजर रख रहा है। राष्ट्रीय स्वच्छता रैंकिंग में तीन बार से लगातार अव्वल रहे शहर में कोविड-19 मरीजों की ऊंची मृत्यु दर के कारण सरकारी तंत्र पर भी सवाल उठ रहे हैं।

इस बारे में पूछे जाने पर इंदौर संभाग के आयुक्त (राजस्व) आकाश त्रिपाठी ने कहा, "शहर में कोविड-19 से जिन पहले 30 मरीजों की मौत हुई, उनमें से 22 लोग ऐसे थे जो इस महामारी के अलावा मधुमेह, उच्च रक्तचाप जैसी पुरानी बीमारियों से जूझ रहे थे। इनमें से ज्यादातर मरीज गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती हुए थे।" सामाजिक कार्यकर्ता प्रशासन पर यह आरोप लगाते हुए उसकी आलोचना कर रहे हैं कि उसने इंदौर जैसे घनी आबादी वाले शहर में कोविड-19 के शुरूआती मामले सामने आने के बाद तेज रफ्तार से नमूने जांचने की सुविधाएं विकसित करने में देरी की जिससे इस महामारी का प्रकोप बढ़ता चला गया।

त्रिपाठी इस आरोप को खारिज करते हुए कहते हैं, "शुरूआत में हम कोविड-19 की जांच के तहत शहर की एक सरकारी प्रयोगशाला में एक दिन में केवल 40 नमूने देख पा रहे थे। अब हम इस प्रयोगशाला में हर दिन ऐसे करीब 300 नमूने जांच रहे हैं। सरकार से निजी क्षेत्र की दो अन्य स्थानीय प्रयोगशालाओं में भी कोविड-19 की जांच की मंजूरी मांगी गयी है।" आयुक्त ने कहा, "हम अब तक अलग-अलग प्रयोगशालाओं में इंदौर के करीब 3,500 लोगों के नमूनों की जांच करा चुके हैं जिनमें कोविड-19 के उच्च जोखिम वाले ज्यादातर लोग शामिल हैं।

हमें उम्मीद है कि इंदौर में कोविड-19 का प्रकोप जल्द ही कम होगा।" अधिकारियों ने बताया कि शहर के 155 रिहाइशी इलाकों में कोरोना वायरस के मरीज मिलने के बाद इन्हें रोकथाम क्षेत्र (कंटेनमेंट जोन) घोषित करते हुए पूरी तरह सील कर दिया गया है जहां कुल छह लाख की आबादी रहती है।

कोरोना वायरस के पहले मरीज मिलने के बाद से पूरे शहर में 25 मार्च से कर्फ्यू लागू है। मध्यप्रदेश के 30 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहर के कई इलाकों में कोरोना वायरस के मरीज मिलने के बावजूद प्रदेश सरकार यहां इस बीमारी के सामुदायिक प्रसार से लगातार इंकार कर रही है। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) प्रवीण जड़िया ने कहा, "शहर में कोविड-19 के जो नये मरीज मिल रहे हैं, उनमें से ज्यादातर लोग इस महामारी के पुराने मरीजों के सगे-संबंधी या परिचित हैं। मरीजों के संपर्क में आये ऐसे सभी लोगों को सावधानी के तौर पर पहले ही अलग किया जा चुका है। इसलिये शहर में इस महामारी के सामुदायिक प्रसार का कोई सवाल ही नहीं उठता।

" इस बीच, स्वास्थ्य क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता अमूल्य निधि ने कहा कि शहर में कोविड-19 के प्रकोप से बेहतर तरीके से निपटने के लिये जिला प्रशासन को सरकार के अन्य विभागों के साथ ही नागरिक समाज से भी तालमेल बढ़ाना होगा। उन्होंने कहा, "इस महामारी से जंग में जिला प्रशासन, पुलिस, नगर निगम, स्वास्थ्य विभाग, चिकित्सा शिक्षा विभाग और नागरिक समुदाय की बराबरी की भागीदारी वाला सामूहिक नेतृत्व उभर कर सामने आना चाहिये।

" कोविड-19 के गंभीर हालात को देखते हुए राज्य सरकार ने 11 अप्रैल को अन्य जिलों के 102 डॉक्टरों को तुरंत इंदौर पहुंचने का आदेश दिया था। लेकिन इनमें से ज्यादातर डॉक्टरों ने अब तक शहर में अपनी आमद नहीं दी है। नतीजतन प्रदेश सरकार को चेतावनी देनी पड़ी है कि आदेश का पालन नहीं करने वाले चिकित्सकों के खिलाफ एस्मा अधिनियम के अंतर्गत कठोर अनुशासनात्मक कदम उठाये जायेंगे। 

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