नंदीग्राम में मुकाबला ममता के नरम हिंदुत्व व शुभेंदु के आक्रामक हिंदुत्व के बीच

By भाषा | Updated: March 12, 2021 19:07 IST2021-03-12T19:07:07+5:302021-03-12T19:07:07+5:30

Contest between Mamata's soft Hindutva and Shubhendu's aggressive Hindutva in Nandigram | नंदीग्राम में मुकाबला ममता के नरम हिंदुत्व व शुभेंदु के आक्रामक हिंदुत्व के बीच

नंदीग्राम में मुकाबला ममता के नरम हिंदुत्व व शुभेंदु के आक्रामक हिंदुत्व के बीच

(प्रदीप्त तापदार)

नंदीग्राम (पश्चिम बंगाल), 12 मार्च पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने "नरम हिंदुत्व" अपनाते हुए बुधवार को यहां कहा कि वह हिंदू परिवार की बेटी हैं तथा उन्होंने यहां चंडी पाठ भी किया। चुनाव प्रचार के दौरान हादसे का शिकार होने और अस्पताल में भर्ती कराए जाने से पहले वह दो दिनों में 12 मंदिरों में गयीं।

नंदीग्राम पहली बार 2000 के दशक में राष्ट्रीय सुर्खियों में आया जब भूमि अधिग्रहण के खिलाफ ममता बनर्जी के नेतृत्व में आंदोलन हुआ था। इसके बाद यह क्षेत्र उस समय फिर खबरों में आ गया जब मुख्यमंत्री ने शुभेंदु अधिकारी से मुकाबला करने के लिए नंदीग्राम सीट से ही विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की। अधिकारी कभी ममता के करीबी होते थे लेकिन बाद में वह भाजपा में शामिल हो गए।

बनर्जी इस सप्ताह नंदीग्राम में अपने चुनाव प्रचार के दौरान 12 मंदिरों और एक मजार पर गयीं। लेकिन हादसे में घायल हो जाने के कारण उन्हें अपनी यात्रा बीच में ही छोड़नी पड़ी।

अधिकारी ने दावा किया कि ममता ने सही तरीके से चंडी पाठ नहीं किया। उन्होंने ममता को "मिलावटी हिंदू बताया जो तुष्टीकरण की राजनीति के पाप से अलग नहीं हो सकतीं।"

ममता द्वारा मंदिरों का दौरा और रैली में श्लोकों के पाठ को भाजपा के आक्रामक हिंदुत्व का मुकाबला करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। साथ ही उनके कथित मुस्लिम पक्षपात की आलोचना को भी रोकने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है।

उन्होंने मंगलवार को एक रैली में कहा, "मेरे साथ हिंदू कार्ड मत खेलो।"

नंदीग्राम में 30 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी है, जो पिछले एक दशक में तृणमूल के साथ है। अधिकारी की नजर शेष 70 फीसदी मतों पर है और इससे हिंदू वोटों की लड़ाई तेज होती दिख रही है।

अधिकारी अपनी चुनावी रैलियों में अक्सर कहते हैं कि उन्हें "70 प्रतिशत मतदाताओं पर पूरा विश्वास है और शेष 30 प्रतिशत को लेकर वह चिंतित नहीं हैं।"

हालांकि तृणमूल के वरिष्ठ नेताओं का जोर है कि ममता द्वारा मंदिरों की यात्रा पार्टी की "समावेशी नीतियों" का हिस्सा है। वहीं प्रतिद्वंद्वी भाजपा का कहना है कि इसका मकसद भगवा पार्टी के हिंदू समर्थन आधार में सेंध लगाना है क्योंकि उन्होंने महसूस कर लिया है कि केवल मुस्लिम वोट विजय के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

शुरू में फुरफुरा शरीफ के मौलवी अब्बास सिद्दीकी की पार्टी आईएसएफ को वाम नेतृत्व वाले महागठबंधन के हिस्से के रूप में यहां से उम्मीदवार उतारना था। लेकिन इस कदम से मुस्लिम वोटों में विभाजन हो सकता था। हालाँकि, बाद में गठबंधन ने यह सीट माकपा के लिए छोड़ने पर सहमति व्यक्त की और उसने तृणमूल को राहत देते हुए मीनाक्षी मुखर्जी को मैदान में उतारा है जो माकपा की युवा शाखा डीवाईएफआई की राज्य अध्यक्ष हैं।

वरिष्ठ तृणमूल सांसद सौगत रॉय ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘हम भाजपा के विपरीत सांप्रदायिक राजनीति में विश्वास नहीं करते हैं। शुभेंद्र विश्वासघाती हैं और उन सभी आदर्शों को भूल गए हैं जो उन्होंने कांग्रेस और तृणमूल में सीखे थे। यही कारण है कि वह इसे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच लड़ाई बनाने की कोशिश कर रहे हैं। हमारा कोई धार्मिक एजेंडा नहीं है।’’

इस पर पलटवार करते हुए अधिकारी ने मुख्यमंत्री द्वारा इतने मंदिरों की यात्रा करने की आवश्यकता पर सवाल किया।

उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘उन्होंने एक विशिष्ट समुदाय की 30 प्रतिशत आबादी के कारण इस सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया। आप उन नेताओं को देखिए जो नंदीग्राम में उनके साथ घूम रहे हैं और आप समझ जाएंगे।

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Web Title: Contest between Mamata's soft Hindutva and Shubhendu's aggressive Hindutva in Nandigram

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