संविधान में अदालतों के मूकदर्शक बनने की परिकल्पना नहीं की गई है : उच्चतम न्यायालय
By भाषा | Published: June 2, 2021 09:08 PM2021-06-02T21:08:44+5:302021-06-02T21:08:44+5:30
नयी दिल्ली, दो जून उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि भारतीय संविधान में यह परिकल्पित है कि जब कार्यपालिका की नीतियां नागरिकों के अधिकारों का अतिक्रमण करती हैं तो अदालतें खामोश नहीं रह सकतीं।
न्यायालय ने यह टिप्पणी केन्द्र की इस दलील के संदर्भ में की कि कोविड-19 के प्रबंधन के बारे में उसके फैसलों में अदालतों को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि वह नागरिकों के जीवन के अधिकारों की रक्षा के लिए अपने अधिकारों का इस्तेमाल करना जारी रखेगा और यह देखेगा कि जो नीतियां हैं, वे तार्किकता के अनुरूप हैं या नहीं।
न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एल. एन. राव और न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट की एक विशेष पीठ ने कहा कि यह कहना सही नहीं होगा कि शक्तियों का पृथक्करण संविधान की मूल संरचना का एक हिस्सा है और नीति-निर्माण कार्यपालिका के एकमात्र अधिकार क्षेत्र में है।
पीठ ने 31 मई को दिये अपने आदेश में कहा, ‘‘हमारे संविधान में यह परिकल्पित नहीं है कि जब कार्यपालिका की नीतियां नागरिकों के अधिकारों का अतिक्रमण करती हैं तो अदालतें मूक दर्शक बनी रहें। न्यायिक समीक्षा और कार्यपालिका द्वारा तैयार की गई नीतियों के लिए संवैधानिक औचित्य को परखना एक आवश्यक कार्य है, और यह काम न्यायालयों को सौंपा गया है।’’
इस आदेश को बुधवार को उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड किया गया।
न्यायालय ने कहा कि वर्तमान में वह विभिन्न हितधारकों को महामारी के प्रबंधन के संबंध में संवैधानिक शिकायतों को उठाने के लिए एक मंच प्रदान कर रहा है।
पीठ ने कोविड प्रबंधन पर स्वत: संज्ञान मामले में अपना आदेश पारित किया।
Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।