नई दिल्ली: द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को देश के 15वें राष्ट्रपति के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ ले ली। वह देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति हैं। उन्हें संसद भवन के सेंट्रल हॉल में भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ने देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद की शपथ दिलाई। इसके बाद उन्हें 21 तोपों की सलामी दी गई। द्रौपदी मुर्मू आजादी के बाद पैदा होने वाली पहली और शीर्ष पद पर काबिज होने वाली सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति भी बन गई हैं। साथ ही वह राष्ट्रपति बनने वाली दूसरी महिला हैं।
इससे पहले द्रौपदी मुर्मू ने सुबह दिल्ली के राजघाट जाकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित की। बाद में वे राष्ट्रपति भवन पहुंची जहां रामनाथ कोविंद ने उनका स्वागत किया। इसके बाद रामनाथ कोविंद और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति भवन से संसद के लिए रवाना हुए।
64 साल की द्रौपदी मुर्मू ने पिछले हफ्ते विपक्षी दलों के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को हराकर इतिहास रच दिया था। मुर्मू ने निर्वाचक मंडल सहित सांसदों और विधायकों के 64 प्रतिशत से अधिक वैध वोट प्राप्त किए और उन्होंने भारी मतों के अंतर से चुनाव जीता। मुर्मू को सिन्हा के 3,80,177 वोटों के मुकाबले 6,76,803 वोट मिले थे।
द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में एक संताल परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम बिरंचि नारायण टुडु है। उनके दादा और उनके पिता दोनों ही उनके गाँव के प्रधान रहे। मुर्मू मयूरभंज जिले की कुसुमी तहसील के गांव उपरबेड़ा में स्थित एक स्कूल से पढ़ी हैं। यह गांव दिल्ली से लगभग 2000 किमी और ओडिशा के भुवनेश्वर से 313 किमी दूर है।
उन्होंने श्याम चरण मुर्मू से विवाह किया। अपने पति और दो बेटों के निधन के बाद द्रौपदी मुर्मू ने अपने घर में ही स्कूल खोल दिया, जहां वह बच्चों को पढ़ाती थीं। उस बोर्डिंग स्कूल में आज भी बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं। उनकी एकमात्र जीवित संतान उनकी पुत्री विवाहिता हैं और भुवनेश्वर में रहती हैं।
द्रौपदी मुर्मू ने एक अध्यापिका के रूप में अपना व्यावसायिक जीवन शुरू किया और उसके बाद धीरे-धीरे सक्रिय राजनीति में कदम रखा। साल 1997 में उन्होंने रायरंगपुर नगर पंचायत के पार्षद चुनाव में जीत दर्ज कर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी।
(भाषा इनपुट)