जानिए नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी में क्या है अंतर

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: December 19, 2019 15:42 IST2019-12-19T15:42:07+5:302019-12-19T15:42:07+5:30

अमित शाह ने संसद में कहा कि एनआरसी में धार्मिक आधार पर नागरिकों की पहचान का कोई प्रावधान नहीं है। इसमें सभी धर्मों के लोगों को शामिल किया जाएगा।

citizenship amendment act different from nrc know all about it | जानिए नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी में क्या है अंतर

पीटीआई फोटो

Highlightsनेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप (एनआरसी) या राष्ट्रीय नागरिक पंजी को असम में लागू किया गया है। असम ही नहीं पूरे देश में एनआरसी लागू करने की बात भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने कही है।

पूरे देश में नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय पंजीयन कानून (एनआरसी) की चर्चा हो रही है। संसद द्वारा पारित होने के बाद अब संशोधित नागरिकता कानून लागू हो चुका है। वहीं गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि पूरे देश में एनआरसी लागू किया जाएगा और 2024 से पहले घुसपैठियों को निकाल बाहर फेंक दिया जाएगा। विपक्षी दल एनआरसी को संविधान विरोधी बता रही है।

आइये पहले जानते हैं क्या है नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी

नागरिकता संशोधन अधिनियम के अनुसार हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के जो सदस्य 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हैं और जिन्हें अपने देश में धार्मिक उत्पीड़न का सामना पड़ा है, उन्हें गैरकानूनी प्रवासी नहीं माना जाएगा, बल्कि भारतीय नागरिकता दी जाएगी।

कानून के अनुसार, यह असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा, क्योंकि ये क्षेत्र संविधान की छठी अनुसूची में शामिल हैं। इसके साथ ही यह कानून बंगाल पूर्वी सीमा विनियमन, 1873 के तहत अधिसूचित इनर लाइन परमिट (आईएलपी) वाले इलाकों में भी लागू नहीं होगा। इनर लाइन परमिट अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिज़ोरम में लागू है।

विपक्षी पार्टियाों का कहना है कि यह कानून मुस्लिमों के साथ भेदभाव करता है क्योंकि उन्हें इसमें शामिल नहीं किया गया है। सरकार ने स्पष्ट किया कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश इस्लामिक रिपब्लिक हैं जहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। इस वजह से उनका धार्मिक उत्पीड़न नहीं हो सकता। सरकार ने यह भी भरोसा दिलाया कि प्रत्येक आवेदन का परीक्षण करके ही नागरिकता दी जाएगी। 

नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप (एनआरसी) या राष्ट्रीय नागरिक पंजी को असम में लागू किया गया है। एनआरसी को पहली बार 1951 में तैयार किया गया था, जिसका उद्देश्य असम में घुसे आए घुसपैठियों की संख्या पता करना था। इसके तहत 24 मार्च 1971 से पहले बांग्लादेश से भारत आए अप्रवासी कानूनी रूप से भारतीय नागरिकता का दावा कर सकते हैं। असम में दशकों से बड़ी संख्या में लोग बांग्लादेश से अवैध तरीके से आ रहे हैं। इसलिए 1985 में हुए असम समझौते की एक शर्त अवैध प्रवासियों की पहचान कर उन्हें बाहर निकालने की है। अब सिर्फ असम ही नहीं पूरे देश में एनआरसी लागू करने की बात भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने कही है।

क्या है अंतर

असम में हुई एनआरसी प्रक्रिया और नागरिकता संशोधिन बिल में सबसे प्रमुख अंतर ये है कि एनआरसी धर्म के आधार पर नहीं हुई थी। वहीं नागरिकता संशोधन बिल में गैर-मुस्लिम (छह प्रमुख धर्म) के लोगों को जगह दी गई है। अमित शाह ने संसद में कहा कि एनआरसी में धार्मिक आधार पर नागरिकों की पहचान का कोई प्रावधान नहीं है। इसमें सभी धर्मों के लोगों को शामिल किया जाएगा।

Web Title: citizenship amendment act different from nrc know all about it

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