चंद्रयान-3: सफल लॉन्चिंग के बाद अब सबसे बड़ा चैलेंज क्या है? इसरो ने चंद्रयान-2 से सबक लेकर किए हैं ये उपाय
By शिवेन्द्र कुमार राय | Updated: July 14, 2023 15:52 IST2023-07-14T15:50:15+5:302023-07-14T15:52:10+5:30
लैंडर को सफलतापूर्वक चांद की सतह पर उतारने के लिए इसमें कई तरह के सुरक्षा उपकरणों को लगाया गया है। इसरो इस बार कोई खतरा उठाना नहीं चाहता और यही कारण है कि अगर अनुकूल परिस्थितियां नहीं रहीं तो लैंडिंग का समय बढ़ाकर इसे सितंबर में भी किया जा सकता है।

चंद्रयान-3, आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च हो गया
नई दिल्ली: भारत का तीसरा चंद्र मिशन चंद्र मिशन-‘चंद्रयान-3’ आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च होने के बाद चंद्रमा की कक्षा में भी सफलतापूर्वक स्थापित हो गया। इसकी पुष्टि इसरो की ओर से की गई है। अब करीब 40 दिन बाद यानी आगामी 24 अगस्त को चंद्रयान 3 मिशन का रोबोटिक उपकरण चंद्रमा पर उस जगह उतरेगा जहां अब तक दुनिया का कोई भी देश अपने अभियान को सफलता पूर्वक अंजाम नहीं दे पाया है।
यही भारत के चंद्र मिशन चंद्र मिशन-‘चंद्रयान-3’ की सबसे बड़ी चुनौती भी है। दरअसल साल 2019 में चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर की हार्ड लैंडिंग की वजह से मिशन खराब हो गया था। इस बार इसरो का लक्ष्य लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग कराना है। अगर लैंडर और रोवर सफलता पूर्वक चांद की सबसे मुश्किल सतह पर उतरते हैं तो ये दोनों 14 दिन तक चांद पर एक्सपेरिमेंट करेंगे।
जिस जगह रोबोटिक उपकरण उतरेगा उसका नाम है शेकलटन क्रेटर (Shackleton Crater)। शेकलटन क्रेटर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर स्थित है। इस जगह का तापमान -267 डिग्री फारेनहाइट रहता है। माना जाता है कि शेकलटन क्रेटर जैसे पीएसआर में पानी की बर्फ और अन्य सामग्रियां होती हैं जो आसानी से गैस में बदल जाती हैं क्योंकि ये क्षेत्र इतने ठंडे और अंधेरे में होते हैं। यदि पीएसआर में महत्वपूर्ण जल बर्फ जमा होने की पुष्टि हो जाती है तो भविष्य में मानव अन्वेषण के लिए संसाधन के रूप में उपयोग किया जा सकता है। चंद्रयान-3 का उद्देश्य चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी का पता लगाना ही है। इसके अलावा यहां पर अमोनिया, मिथेन, सोडियम, मरकरी और सिल्वर जैसे जरूरी संसाधन मिल सकते हैं।
लैंडर को सफलतापूर्वक चांद की सतह पर उतारने के लिए इसमें कई तरह के सुरक्षा उपकरणों को लगाया गया है। इसरो इस बार कोई खतरा उठाना नहीं चाहता और यही कारण है कि अगर अनुकूल परिस्थितियां नहीं रहीं तो लैंडिंग का समय बढ़ाकर इसे सितंबर में भी किया जा सकता है। इस बार चंद्रयान-3 का लैंडर चंद्रयान-2 के मुकाबले 40 गुना बड़ी जगह पर लैंड होगा।
चंद्रयान-3 के लैंडर का नाम 'विक्रम' और रोवर का नाम 'प्रज्ञान' ही रखा गया है। चांद की सतह के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाने के मकसद से भेजे गए चंद्रयान-3 अगर अपने अभियान में सफल होता है तो हमें अपने सौरमंडल के बारे में काफी अहम जानकारियां हासिल करने में मदद मिल सकेंगी।