गैर मान्यता प्राप्त समलैगिंक विवाह या संबंध गैर-कानूनी नहीं हैं, सरकार ने उच्चतम न्यायालम में कहा, जानिए

By भाषा | Published: March 12, 2023 09:03 PM2023-03-12T21:03:14+5:302023-03-12T21:05:08+5:30

समलैंगिक विवाह को कानूनी वैधता प्रदान करने का अनुरोध करने वाली तमाम याचिकाओं का विरोध करते हुए एक हलफनामे में सरकार ने कहा है कि जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों में समलैंगिक विवाह की मंजूरी को अंतर्निहित नहीं माना जा सकता।

Central government opposes same-sex marriage plea in Supreme Court says Indian family concept involves biological man and woman | गैर मान्यता प्राप्त समलैगिंक विवाह या संबंध गैर-कानूनी नहीं हैं, सरकार ने उच्चतम न्यायालम में कहा, जानिए

सभी प्रकार के विषमलिंगी संबंधों को विवाह के समान दर्जा प्राप्त नहीं है।

Highlightsविपरीत लिंग के लोगों के बीच होने वाले विवाह को ही मान्यता देता है।समलैंगिक जोड़ों के साथ भेद-भाव या विपरीत लिंगी जोड़े के साथ विशेष व्यवहार नहीं माना जा सकता है।सभी प्रकार के विषमलिंगी संबंधों को विवाह के समान दर्जा प्राप्त नहीं है।

नई दिल्लीः समलैंगिक विवाहों या व्यक्तियों के बीच संबंधों को हालांकि मान्यता प्राप्त नहीं है, लेकिन वे गैरकानूनी नहीं हैं। केन्द्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में यह बात कही है।

समलैंगिक विवाह को कानूनी वैधता प्रदान करने का अनुरोध करने वाली तमाम याचिकाओं का विरोध करते हुए एक हलफनामे में सरकार ने कहा है कि जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों में समलैंगिक विवाह की मंजूरी को अंतर्निहित नहीं माना जा सकता।

सरकार ने कहा, हालांकि इस स्तर पर यह मानना आवश्यक है कि समाज में कई प्रकार के विवाह या संबंध या लोगों के बीच संबंधों पर व्यक्तिगत समझ हो सकती है, लेकिन राज्य सिर्फ विपरीत लिंग के लोगों के बीच होने वाले विवाह को ही मान्यता देता है।

हलफनामे में कहा गया है, ‘‘राज्य समाज में अन्य प्रकार के विवाह या संबंधों या लोगों के बीच संबंधों पर व्यक्तिगत समझ को मान्यता नहीं देता है, हालांकि ये गैरकानूनी नहीं हैं।’’ उच्चतम न्यायालय इस मामले पर सोमवार को सुनवाई करेगा। केन्द्र ने कहा कि विपरीत लिंग के लोगों के बीच होने वाले विवाह को जो विशेष दर्जा प्राप्त है उसे संविधान के अनुच्छेद 15(1) के तहत समलैंगिक जोड़ों के साथ भेद-भाव या विपरीत लिंगी जोड़े के साथ विशेष व्यवहार नहीं माना जा सकता है।

ऐसा इसलिए है क्योंकि विपरीत लिंग के बीच लिव-इन संबंधों सहित अन्य किसी भी प्रकार के ऐसे संबंधों को विपरीत लिंगों के बीच विवाह के समान दर्जा प्राप्त नहीं है। हलफनामे में कहा गया है, ‘‘इसलिए, स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि सभी प्रकार के विषमलिंगी संबंधों को विवाह के समान दर्जा प्राप्त नहीं है।

अनुच्छेद 15(1) का उल्लंघन होने के लिए लिंग के आधार पर भेद-भाव होना आवश्यक है। यह स्पष्ट है कि वर्तमान मामले में यह शर्त पूरी नहीं होती है। ऐसे में अनुच्छेद 15 लागू नहीं होता है और संबंधित वैधानिक प्रावधानों पर निशाना साधने के लिए इसका उपयोग नहीं किया जा सकता है।’’

केन्द्र ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त मौलिक अधिकार कानून के तहत तय प्रक्रिया पर आधारित है और इसमें विस्तार करके समलैंगिक विवाह को देश के कानूनों के तहत मान्यता प्रदान करने के मौलिक अधिकार को शामिल नहीं किया जा सकता है।

हलफनामे में सरकार ने कहा, ‘‘ऐसा सूचित किया गया है कि किसी विशेष सामाजिक संबंध को मान्यता प्रदान करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं हो सकता है। लेकिन यह भी सच है कि अनुच्छेद 19 के तहत सभी नागरिकों को संबंध बनाने/जोड़ने का अधिकार है, लेकिन साथ ही ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि इन संबंधों को राज्य द्वारा कानूनी मान्यता प्रदान की जानी चाहिए।

न ही अनुच्छेद 21 के तहत आने वाले जीवन व स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को समलैंगिक विवाह के लिये अंतर्निहित स्वीकृति को शामिल करते हुए पढ़ा जा सकता है।’’ हलफनामे में कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय ने 2018 में अपने फैसले में सिर्फ इतना ही कहा था कि वयस्क समलैंगिक लोग आपसी सहमति से यौन संबंध बना सकेंगे।

भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत उन्हें अपराधी नहीं माना जाएगा। केन्द्र ने हलफनामे में कहा, ‘‘मामले में इतना ही कहा गया है और इससे ज्यादा कुछ नहीं है। ऐसे संबंधों को अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया है, लेकिन इसे किसी भी रूप में कानूनी मान्यता नहीं दी गई है। वास्तव में, (2018 के फैसले में) अनुच्छेद 21 की व्याख्या में विवाह को शामिल नहीं किया गया है।’’ 

Web Title: Central government opposes same-sex marriage plea in Supreme Court says Indian family concept involves biological man and woman

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