काश, 1962 भारत-चीन युद्ध के दौरान वायुसेना को उतारा गया होता?, सीडीएस चौहान ने कहा-चीनी आक्रमण पर...
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 25, 2025 11:59 IST2025-09-25T11:57:57+5:302025-09-25T11:59:43+5:30
थल सेना को तैयारी के लिए काफ़ी समय मिल जाता। उन दिनों, मुझे लगता है, वायु सेना के इस्तेमाल को तनाव बढ़ाने वाला माना जाता था। मुझे लगता है कि अब यह सच नहीं है और ऑपरेशन सिंदूर इसका एक सटीक उदाहरण है।

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पुणेः प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने बुधवार को कहा कि 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान वायुसेना के इस्तेमाल से चीनी आक्रमण काफी धीमा पड़ जाता। उन्होंने कहा कि इस कदम को तब 'तनाव बढ़ाने वाला' कहा जा सकता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है जैसा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में हुआ। चीन के साथ 63 वर्ष पहले हुए युद्ध के बारे में उन्होंने कहा कि अग्रिम नीति को लद्दाख और नेफा (उत्तर-पूर्व सीमांत एजेंसी) या वर्तमान अरुणाचल प्रदेश पर समान रूप से लागू नहीं किया जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए क्योंकि दोनों क्षेत्रों के विवाद का इतिहास अलग है और भूभाग भी बिल्कुल अलग है, तथा समान नीतियों का पालन करना त्रुटिपूर्ण था। सीडीएस ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में सुरक्षा स्थिति बदल गई है और युद्ध का स्वरूप भी बदल गया है।
जनरल चौहान ने यह टिप्पणी पुणे में दिवंगत लेफ्टिनेंट जनरल एस पी पी थोराट की संशोधित आत्मकथा-'रेवेली टू रिट्रीट' के विमोचन के दौरान प्रसारित एक रिकॉर्डेड वीडियो संदेश में की। लेफ्टिनेंट जनरल थोराट भारत-चीन युद्ध से पहले पूर्वी कमान के ‘जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ’ थे।
सीडीएस ने कहा कि लेफ्टिनेंट जनरल थोराट ने भारतीय वायुसेना का इस्तेमाल करने के बारे में सोचा था, लेकिन तत्कालीन सरकार ने इस तरह के कदम की अनुमति नहीं दी। वायु सेना के इस्तेमाल पर सीडीएस ने कहा कि 1962 के युद्ध के दौरान इससे काफी फ़ायदा होता।
सीडीएस ने कहा कि हवाई शक्ति के इस्तेमाल से चीनी आक्रमण की गति काफ़ी धीमी हो जाती। उन्होंने कहा, "इससे थल सेना को तैयारी के लिए काफ़ी समय मिल जाता। उन दिनों, मुझे लगता है, वायु सेना के इस्तेमाल को तनाव बढ़ाने वाला माना जाता था। मुझे लगता है कि अब यह सच नहीं है, और ऑपरेशन सिंदूर इसका एक सटीक उदाहरण है।"